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प्रश्न :
इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के पर्यावरणीय प्रभावों एवं ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 के संदर्भ में, इसके निपटान के श्रेष्ठ तरीकों पर चर्चा कीजिये। ई-अपशिष्ट के उचित उपयोग और निपटान के लिये प्रोत्साहन हेतु कुछ उपाय सुझाए।
12 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकीउत्तर :
ई-अपशिष्ट से तात्पर्य पुराने व अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं जैसे-रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर, DVD आदि से है। इन पदार्थों में कई प्रकार के विषाक्त तत्त्व-सीसा, पारा, बेरीलियम, कैडमियम व कुछ रेडियोसक्रिय तत्व आदि होते हैं।
ई-अपशिष्टों का पर्यावरण पर प्रभावः
- ई-अपशिष्टों में पाए जाने वाले रसायन मृदा, जल व वायु के प्रदूषण का कारण बनते हैं।
- पारा जैसे रसायन विभिन्न जीवों व मछलियों में संचित होकर आहारशृंखला को प्रभावित करते हैं।
- जब ई-अपशिष्ट का खुले में भस्मीकरण किया जाता है तो यह विषैले धूएँ को उत्पन्न करता है। यह विषैला धूआँ सूक्ष्म पार्टिकुलेट मैटर को बढ़ाता है जो फेफड़े व हृदय के लिये नुकसानदायक है।
वर्तमान में ‘लैंडफिल डंपिंग के माध्यम से ई-कचरा का निपटान किया जाता है जिससे भू-जल में विषाक्त रसायन जाने का खतरा बढ़ गया है। ई-अपशिष्ट के निपटान हेतु सबसे उपर्युक्त विधि में अनुपयोगी समानों का संग्रह व नियंत्रण है। इसके अतिरिक्त सामानों का रीफर्बिशिंग कर उसके उपयोग बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 में ई-अपशिष्ट के दायरे को सरकार ने विस्तृत किया है। अब इसके अंतर्गत CFL व मरकरी वाले अन्य लैम्पों को भी शामिल किया गया है।- इस नियम के तहत उत्पादकों को ई-कचरा इकट्ठा करने और आदान-प्रदान करने के लिये जिम्मेदार बनाया गया है।
- यह नियम ‘विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR)’ के अंतर्गत उत्पादकों को लाता है और इनके लक्ष्य का निर्धारण करता है। इस नियम द्वारा ई-कचरे को निपटाने व रिसाइकिल करने की प्रक्रिया सरल बनाई गई है। जिससे लोगों में इससे संबंधित जोखिमों की आशंका कम हो सके।
इसके अतिरिक्त उपभोक्ताओं के लिये ‘बाइ-बैंक स्कीम’, ई-अपशिष्ट को एकत्र करने वाले लोगों को आर्थिक लाभ और अधिक समय तक चलने वाली वस्तुओं की कम कीमत रखकर, साथ ही, नगरपालिका व जनसमुदाय की भागीदारी के माध्यम से ई-कचरे का बेहतर निष्पादन किया जा सकता है।
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