वित्त विधेयक 2017 के द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 मेंकिए गए प्रमुख संशोधनों का उल्लेख करते हुए बताएँ कि क्या इससे ‘कर आतंकवाद’ (Tax Terrorism) को बढ़ावा मिलेगा?
उत्तर :
वित्त विधेयक, 2017 के द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 में किए गए प्रमुख संशोधन निम्नलिखित हैंः-
- आयकर अधिकारियों को छापा मारने, खोज-बीन करने और संपत्ति की जब्ती के संबंध में व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गई है। छापा मारने के लिए आयकर प्राधिकारी किसी व्यक्ति की संपत्ति और उसके विभिन्न स्रोतों को उसकी आय के आकलन में शामिल कर सकता है।
- आयकर अधिनियम की धारा 132 A में संशोधन किया गया है जिससे अब आयकर विभाग सूचना-प्रदाता के नाम का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं होगा एवं ‘यह कार्य करने का कारण’ अर्थात् रिजन टू बिलीव या रिजन टू सस्पेक्ट ('Reason to believe' or 'Reason to suspect') बताने के लिए भी बाध्य नहीं होगा।
- इस संशोधन को 1962 से भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव से लागू किया जा सकता है।
यद्यपि अनेक विशेषज्ञों का मत है कि ये संशोधन कर आतंकवाद को बढ़ाएंगे। उनके तर्क निम्नलिखित हैं-
- आयकर अधिकारियों को विस्तृत शक्तियाँ दी गई हैं जिनका उनके द्वारा दुरूपयोग किया जा सकता है।
- कर अधिकारियों को कई वर्ष पुराने मामलों की छानबीन का अधिकार भी इस संशोधन के भूतलक्षी प्रभाव के द्वारा प्रदान किया गया है अतः इससे ईमानदार कर दाता भी परेशान हो सकते हैं।
- अपीलीय ट्रिब्यूनल के सामने ‘रिजन टू बिलीव’ बताने की बाध्यता नहीं होगी, जिससे कर अधिकारियों द्वारा मनमर्जी की जा सकती है।
किंतु, इन संशोधनों के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं- जिस प्रकार विमुद्रीकरण के दौर में अनेक लोगों ने अवेध धन को बेनामी खातों में जमा करने एवं नई कंपनी खोलने का प्रयास किया, ऐसी स्थिति में तत्काल कार्रवाई के लिए सख्त कर कानून की आवश्यकता थी।
- सूचना-प्रदाता या ‘व्हिसलब्लोअर’ का नाम उजागर न करना उसकी सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
- नियमों को सख्त ईमानदार कर दाताओं को परेशान करने के लिए नहीं बल्कि बेईमानों को सजा देने के लिए किया गया।
निष्कर्षः इस प्रकार, फिलहाल आयकर प्राधिकारियों को प्रदान की गई शक्तियाँ कठोर लग सकती हैं लेकिन कर राजस्व बढ़ाने, सूचना-प्रदाताओं की सुरक्षा एवं बेईमानों को सजा देने के लिए एक सख्त कानून आवश्यक था।