जनता के लिये सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने एवं दवा कंपनियों तथा चिकित्सकों के गठजोड़ को समाप्त करने के लिये डॉक्टर द्वारा परामर्श-पत्र (Prescription) में केवल दवा के साल्ट का नाम लिखने की अनिवार्यता लागू करने के समक्ष क्या समस्याएँ है? विश्लेषण करें।
उत्तर :
सरकार ने घोषणा की है कि वह ऐसे नियम बनाएगी जिसमें डॉक्टर पर्ची पर केवल सॉल्ट का नाम लिखेंगे एवं मरीज दवा की दुकान पर जाकर अपनी पसंद का ब्रांड चुन सकता है। इससे जहाँ मरीजों को दवाएँ सस्ती दरों पर उपलब्ध हो सकेंगी वहीं दवा कंपनियों एवं डॉक्टरों का गठजोड़ भी समाप्त होगा।
किन्तु, इस योजना के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं-
- इस योजना के तहत ब्रांड का चुनाव करने की ताकत डॉक्टर के हाथ से निकल दवा-दुकानदार के पास आ जाएगी, न कि मरीज के पास (क्योंकि मरीज को सामान्यतः दवा के ब्रांड की जानकारी नहीं होती)। ऐसी स्थिति में दवा दुकानदार वे ब्रांड देगा जिसमें उसे अधिक मुनाफा प्राप्त होता हो। इस प्रकार अब कंपनी-डॉक्टर गठजोड़ के स्थान पर कंपनी -दवा दुकानदार गठजोड़ बन जाएगा।
- इस निर्णय को लागू करने में एक तकनीकी समस्या भी है। वर्तमान नियमों के तहत किसी दवा का पेटेंट समाप्त होने के बाद के पहले 4 वर्षों में जेनेरिक संस्करण शुरू करने की अनुमति केंद्र देता है और कंपनियों को जैव-समानता अध्ययन (Bio - equivalence study) कर उसका स्टैबिलिटी डाटा सौंपना होता है। ऐसी दवाओं को ‘जेनेरिक्स’ कहा जाता है। इन 4 वर्षों में पश्चात दवाओं को अनुमति प्रदान की जिम्मेदारी राज्यों पर आ जाती है और कंपनियों के लिये Bio-equivalence study एवं Stability data स्थापित करना अनिवार्य नहीं होता। ऐसी दवाएँ वास्तव में ‘नकल’ होती हैं जो कम प्रभावी हो सकती हैं। लेकिन, दोनों श्रेणियों में विभेद नहीं किया गया है एवं सभी जेनेरिक दवाओं के Bio- equivalence अध्ययन को भी अनिवार्य नहीं बनाया गया है।
इस प्रकार, सभी जेनेरिक दवाओं के Bio- equivalence अध्ययन को अनिवार्य कर दवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सकता है तो दूसरी तरफ सरकार द्वारा बनाई गई ‘दवा विपणन संहिता’ का उचित क्रियान्वयन कर कंपनी -डॉक्टर गठजोड़ पर अंकुश लगाया जा सकता है।