उत्तर-पूर्व भारत के राज्य न केवल आंतरिक विकास अपितु भारत के विदेशी संबंधों के निर्धारण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, परंतु विकास की कमी ने न केवल इन राज्यों में अशांति एवं विद्रोह को जन्म दिया है बल्कि यहाँ के निवासियों को भावनात्मक तौर पर भी अलग कर दिया है। परीक्षण करें।
10 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा
उत्तर की रूपरेखा
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पूर्वोत्तर भारत एक महत्त्वपूर्ण भू-रणनीतिक क्षेत्र होने के साथ-साथ भू-आर्थिक दृष्टिकोण से भी प्रभावशाली क्षेत्र है। इसकी सीमाएँ बांग्लादेश, म्याँमार, चीन, नेपाल और भूटान से लगती हैं तथा यह क्षेत्र एक संकीर्ण गलियारा ‘चिकन नेक’ द्वारा शेष भारत से जुड़ा हुआ है।
यह क्षेत्र भारत के आंतरिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। समृद्ध जैव और सांस्कृतिक विविधता इसे महत्त्वपूर्ण पर्यटन केंद्र बनाते हैं, तो प्राकृतिक संसाधन, जैसे- खनिज तेल, गैस, नदियाँ आदि इसे ऊर्जा सुरक्षा के गंतव्य क्षेत्र के रूप में स्थान दिलाते हैं। साथ ही, चाय के बागान, विदेशी मुद्रा प्राप्ति के स्रोत उपलब्ध कराते हैं।
इसके अलावा, विदेशी संबंधों के निर्धारण में भी पूर्वोत्तर भारत की मुख्य भूमिका रही है। यह क्षेत्र केवल अन्य देशों के साथ सीमा ही नहीं बनाता अपितु प्रजातीय, सांस्कृतिक, भाषागत समानताएँ भी रखता है। यह दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के संदर्भ में भारत का मुख्य द्वार है। इस कारण यह सार्क, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, बिम्सटेक आदि पहलों के लिये महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इसलिये भू-रणनीतिक, भू-आर्थिक, आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक और आर्थिक न्याय की प्राप्ति आदि के लिये इस क्षेत्र का विकास किया जाना महत्त्वपूर्ण है किंतु यह अब भी विकास के मामले में पिछड़ा है जिसके निम्नलिखित कारण हैं :
इन सभी कारणों ने इस क्षेत्र में अशांति एवं विद्रोह को जन्म दिया। उल्फा, नेफा जैसे संगठनों ने इस क्षेत्र में तनाव को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, ड्रग ट्रेफिकिंग, अवैध व्यापार, आर्म्स ट्रेफिकिंग आदि ने स्थिति को और संवेदनशील बना दिया। आर्थिक पिछड़ापन और प्रजातीय भिन्नता ने इस क्षेत्र को भावनात्मक रूप से भी अलग कर दिया।
सरकार के प्रयास-
इसके अतिरिक्त समावेशी विकास और शांति, राजनैतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक सपोर्ट और प्रतिबद्धता, गुड गवर्नेंस, पीपीपी मॉडल, शैक्षणिक तंत्र की मज़बूती, रोज़गार का सृजन, अवैध अप्रवासी मुद्दे का हल, विद्रोह के खिलाफ प्रभावी पहल आदि पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है।
उपर्युक्त सुझावों को शामिल करते हुए विदेश नीति पर पर्याप्त कार्य किये जाने की आवश्यकता है। तभी भारत के इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा में शामिल किया जा सकेगा और इस प्रकार वास्तव में भारत एक एकीकृत और कल्याणकारी राज्य की संकल्पना को पूरा कर सकेगा।