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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जीन साइलेंसिंग में प्रयुक्त RNAi तकनीक क्या हैं एवं यह एंटीसेंस तकनीक से किस प्रकार अलग है? क्या ये तकनीकें वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए भारत के लिये उपयोगी साबित होंगी? इनके उपयोग के समक्ष प्रस्तुत बाधाओं का उल्ल्ेख करते हुए उनके निवारण के सुझाव भी दें।

    09 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    RNA हस्तक्षेप (RNA Interference: RNAi) एक प्रक्रिया है जिसका उपयोग कर कोशिका अवांछित अथवा हानिकारक जीन को निष्क्रिय अथवा ट्रर्न ऑफ अथवा साइलेंस (turn off or silence) कर देती है। यह प्रक्रिया ‘डबल स्टै्रंडेड RNA (double stranded RNA: dsRNA)' द्वारा की जाती है। सामान्य परिस्थितियों में कोशिका में सिंगल स्ट्रैंडेड RNA (ssRNA) ही पाया जाता है लेकिन कुछ बीमारियों के दौरान विशिष्ट प्रोटीनों के अत्यधिक मात्रा में उत्पत्ति से प्रेरित होकर यह  ssRNA ‘एंडोराइबोन्युक्लिएज-Dicer / हेलिकेज एंजाइम’ के द्वारा dsRNA में परिवर्तित हो जाता है। यह dsRNA उस रोग से संबंधित जीन को निष्क्रिय कर लक्षित कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण रोककर रोग का उपचार संभव बनाता है।

    एंटिसेंस तकनीक RNAi तकनीक के समान ही है लेकिन इसमें dsRNA के स्थान  ssRNA के माध्यम से जीन साइलेंसिंग कर प्रोटीन संश्लेषण रोका जाता है।

    भारत के लिये उपयोगिता-

    • भारतीय संदर्भ में RNAi एवं एंटीसेंस तकनीकों का विशेष महत्त्व है। Bt-कपास एवं जिनेटीकली मोडिफाइड फसलों (GM crops) का व्यापक विरोध हो रहा है अतः RNAi तकनीक के माध्यम से तैयार रोग प्रतिरोधक फसलें इन GM फसलों का व्यावहारिक विकल्प हो सकती हैं।
    • RNAi तकनीक अब ऐसी दवाओं के निर्माण में सक्षम है जिनके माध्यम से कॉलेस्ट्रोल के स्तर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। AIDS जैसे खतरनाक वायरस संक्रमण, कैंसर एवं डायबिटीज जैसे रोगों के उपचार में भी यह तकनीक योगदान दे सकती है।
    • एंटीसेंस तकनीक के माध्यम से टमाटर की ‘फ्लाव्र साव्र’ (Flavr Savr) नामक किस्म के उत्पादन में आशानुरूप परिणाम आए हैं।

    बाधाएँः

    • RNAi एवं एंटीसेंस तकनीकों की प्रगति के समक्ष भारत में दो प्रमुख बाधाएँ हैं-

      1. कुशल एवं लक्षित ‘डिलिवरी वेहिकल्स’ की कमी-हालाँकि कुछ भारतीय संस्थानों ने प्रोटीन की लक्षित डिलिवरी में सक्षम वेहिकल्स का विकास किया है लेकिन RNAi तकनीक में प्रयुक्त 'Small Interfering RNA (siRNA)' जैसे जीन साइलेंसिंग अभिकर्मकों की सफल डिलिवरी के लिये उपयुक्त वेहिकल्स का विकास नहीं हो पाया है।
      2.जीन साइलेंसिंग अभिकर्मकों (Gene Silencing Reagents) का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है।

    बाधाओं के निवारण के सुझाव-

    • पहली बाधा निवारण के लिये घरेलू स्तर पर नैनो तकनीक पर आधारित लक्षित RNA डिलिवरी उत्पादों के विकास की आवश्यकता है। इसके लिये सरकार को बहुआयामी रणनीति अपनाते हुए सभी मंत्रालयों, अनुसंधान संस्थाओं, निजी क्षेत्र एवं विदेशी संस्थानों के मध्य सहयोग एवं साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
    • दूसरी चुनौती के निवारण के लिये भारत को जैव सूचना विज्ञान (Bio-informatics) के क्षेत्र में अपनी क्षमता बढ़ानी चाहिये। इसके लिये सरकार को ऐसे स्टार्टअप को बढ़ावा देना चाहिये जो सुरक्षित, कम विषैले एवं अधिक स्थिर जीन साइलेंसिंग अभिकर्मकों (Gene Silencing reagents) के विकास के लिये काम करते हों। बायोइन्फोर्मेटिक्स के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना एवं इस क्षेत्र के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन देना भी आवश्यक है।

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