फूड फोर्टिफिकेशन (Food Fortification) क्या है एवं भारत में इसकी आवश्यकता क्यों हैं? फूड फोर्टिफिकेशन से होने वाले लाभों का उल्लेख करते हुए इस दिशा में भारत में अब तक किये गए प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर :
फूड फोर्टिफिकेशन चावल, दूध, नमक, आटा आदि खाद्य पदार्थों में लौह, आयोडिन, जिंक, विटामिन A एवं D जैसे प्रमुख खनिज पदार्थ एवं विटामिन जोड़ने अथवा वृद्धि करने की प्रक्रिया है जिससे कि इन खाद्यों के पोषण स्तर में वृद्धि हो। इस प्रसंस्करण प्रक्रिया से पहले मूल खाद्य पदार्थों में ये पोषण तत्त्व मौजूद हो भी सकते हैं और नहीं भी।
भारत में फूड फोर्टिफिकेशन की आवश्यकताः
- FSSAI (Food Safety and Stanadard Authority of India) के अनुसार भारत में 70% लोग विटामिन एवं खनिज जैसे सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्त्वों का पर्याप्त उपभोग नहीं करते हैं। लगभग 70% स्कूल-पूर्व बच्चों में लौह (Fe) की कमी के कारण एनीमिया (रक्ताल्पता) की स्थिति पाई जाती है तो 57% स्कूल-पूर्व बच्चों में विटामिन A की कमी है।
- भारत में जन्मजात तंत्रिका दोषों से पीड़ित बच्चों की संख्या काफी अधिक है। एक अनुमान के अनुसार पोषक तत्त्वों की पर्याप्त आपूर्ति से इस प्रकार के दोषों में 50-70% तक की कमी लाई जा सकती है।
- सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्त्वों की कमी के कारण भारत में बड़ी आबादी में छिपी हुई भूख (hidden hunger) के कारण गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पाया गया है। जो लोग गरीब और वंचित हैं उनकी सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन तक पर्याप्त पहुँच नहीं है एवं अन्य लोगों के भोजन में भी पर्याप्त विविधता न होने अथवा खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण के दौरान पोषक तत्त्वों के नष्ट हो जाने के उनमें पोषक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती।
इन मुद्दों से निपटने के लिये FSSAI ने मानकों का एक सेट जारी किया एवं फूड फोर्टिफिकेशन के बारे में जागरूकता एवं आम सहमति निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अब अनेक उद्यमों ने अपने प्रमुख खाद्य ब्रांडों में पोषक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने पर सहमति जताई है।
फूड फोर्टिफिकेशन के लाभ-
- इस प्रक्रिया में पोषक तत्त्व मुख्य खाद्य पदार्थों (जैसे-आटा, चावल, नमक, दूध आदि) में जोड़े जाते हैं अतः इनकी आपूर्ति जनसंख्या के बड़े हिस्से तक संभव हो पाती है।
- यह लोगों में स्वास्थ्य सुधार का सुरक्षित एवं जोखिम-मुक्त तरीका है। मिलाए गए पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यल्प एवं निर्धारित मानकों के अनुरूप होती है।
- यह लोगों के खान-पान की आदतों एवं व्यवहार में किसी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा नहीं करता तथा सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तरीका है।
- यह अपेक्षाकृत कम समय में तेजी से स्वास्थ्य सुधार में सक्षम है एवं लागत प्रभावी भी है। कोपेनहेगन सहमति (Copenhagen Consensus) का आकलन है कि फूड फोर्टिफिकेशन पर यदि 1 रुपए खर्च किया जाता है तो यह अर्थव्यवस्था में 9 रुपए का लाभ पहुँचाता है। और, फोर्टिफिकेशन के पश्चात खाद्य पदार्थों की कीमतों में केवल 1-2% की ही वृद्धि होती है।
फूड फोर्टिफिकेशन के संबंध में भारत में किये गए प्रयास-
- पंजाब हरियाणा, राजस्थान, असम और महाराष्ट्र की दुग्ध सहकारी समितियाँ अपने दुग्ध उत्पादों का ‘फोर्टिफिकेशन’ कर रही हैं।
- बच्चों को लक्षित करने के लिये हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों ने अपनी मिड-डे-मील योजना में ‘फोर्टिफाइड तेल’ का उपयोग प्रारंभ कर दिया है।
- पश्चिम बंगाल और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से फोर्टिफाइड गेहूँ के आटे का वितरण किया जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने भी ऐसा पायलट प्रोजक्ट प्रारंभ किया है।
- FSSAI स्थानीय छोटे आपूर्तिकर्ताओं, जैसे-स्थानीय आटा पिसाई मिलों के साथ काम कर रहा है ताकि वे अपने उत्पादों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का मिश्रण मिलाएँ।
- FSSAI द्वारा जारी मानकों के सेट के आधार पर आशीर्वाद, अन्नपूर्णा, पतंजली, पिल्सबरी जैसे उद्यमों ने अपने कई खाद्य उत्पादों में पोषक मिश्रण मिलाने पर सहमति दी है।
इस प्रकार के प्रयासों से न केवल कूपोषण को कम किया जा सकता है बल्कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGS) की उपलब्धि की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाकर एवं जनता का स्वास्थ्य सुनिश्चित कर ‘स्वस्थ एवं सशक्त भारत’ का निर्माण किया जा सकता है।