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प्रश्न :
भारत में एक तरफ बड़ी ऊर्जा परियोजनाओं से संबंधित विद्युत खरीद समझौते गंभीर चिंता के कारण बन गए हैं तो दूसरी तरफ सौर ऊर्जा परियोजनाओं में भी इनका ही अनुसरण किया जा रहा है। इस मुद्दे को स्पष्ट करते हुए सौर ऊर्जा परियोजनाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करें एवं उपयुक्त समाधान भी सुझाएँ।
13 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाल ही के एक निर्णय में टाटा पॉवर एवं अडाणी पॉवर के मूंद्रा स्थित इंडोनेशियाई कोयले पर आधारित अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट्स (UMPPs) की टैरिफ दरों में संशोधन की अनुमति नहीं दी है। इंडोनेशिया सरकार द्वारा कोयले की कीमतों के निर्यात को अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से संलग्न करने के कारण इन परियोजनाओं को प्राप्त होने वाले कोयले के दाम बढ़ गए थे जिससे इनसे उत्पन्न विद्युत की दरों में वृद्धि की आवश्यकता महसूस हुई। किंतु, 25 साल के कार्यकाल के लिये किये गए विद्युत खरीद समझौते (Power purchase agreement: PPA) के अनुसार टैरिफ दरों में संशोधन नहीं किया जा सकता। वर्ष 2006 में UMPPs बनाने का फैसला किया गया था। आवंटन 'Reverse tariff competitive bidding' प्रक्रिया के माध्यम से किया गया तथा घरेलू एवं आयातित कोयले पर आधारित UMPPs के लिये टैरिफ दरें क्रमशः 1.19 ` एवं 2.26 ` के निम्न स्तर पर थी। अतः जब कोयला कीमतों में वृद्धि हुई तो ये परियोजनाएँ अलाभकारी हो गईं।
सौर ऊर्जा के मामले में भी तापीय सयंत्रों के अनुभवों को ही दोहराया जा रहा है। इसमें PPA एक निश्चित अवधि (25 वर्ष) के लिये है जिसमें संशोधन का प्रावधान नहीं है। इस प्रवृत्ति को देखते हुए समय के साथ सौर ऊर्जा के लिये टैरिफ बोली (tariff bid) लगातार घट रही है।
इसके अलावा भारत के सौर ऊर्जा कार्यक्रम के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ है-
- भारत का सौर ऊर्जा कार्यक्रम मुख्यतः चीन से आयातित ‘सोलर सेल’ पर आधारित है। चीन भारत में सोलर सेल पर एंटी डंपिंग ड्यूटी के अभाव में सस्ती एवं पतली फिल्म पर आधारित सोलर सेल डंप करता है जिससे इनकी घरेलू विनिर्माण की कोशियों को बाधा पहुँच रही है।
- पतली फिल्म पर आधारित सोलर सेल प्रौद्योगिकी पर निर्भरता में ‘रेयर अर्थ धातुओं’ (rare earth metals) पर भारत की निर्भरता बढ़ा दी है, जिसमें चीन का एकाधिकार है। ऐसी परिस्थितियों में, मुद्रा में उतार-चढ़ाव की स्थिति अथवा चीन की नीति के परिवर्तन का प्रयास सोलर सेल की कीमतों पर पड़ेगा जो सौर परियोजनाओं को अलाभकारी बना देगा।
- भारत में इन सेलों के लिये कोई मजबूत विनिर्माण आधार भी नहीं है। इनके कच्चे माल के उत्पादन के लिये भी कोई आधारभूत ढाँचा नहीं है।
क्या किया जाना चाहिए?
- बोली प्रक्रिया में अनिश्चितता को समाप्त करने के लिये एक ‘गतिशील नीलामी प्रारूप’ (dyanamic auction format) लागू किया जा सकता है जिसमें बोली लगाने वाला अधिकतम टैरिफ से शुरू कर सकता है एवं दूसरों के बोली लगाने के पैटर्न का निरीक्षण कर कम टैरिफ की तरफ बढ़ सकता है।
- अनिश्चितता समाप्त करने के लिये निविदा परियोजनाओं की एक प्रति-चक्रीय नीति (counter-cyclic policy) को अपनाना चाहिये।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी कंपनियों को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये एवं परियोजनाओं को शीघ्र मंजूरी प्रदान करनी चाहिये।
- बिजली खरीद समझौतों (PPAs) की समीक्षा होनी चाहिये एवं उनमें टैरिफ दरों में वृद्धि का प्रावधान भी होना चाहिये।
इस प्रकार, मजबूत इच्छा शक्ति के साथ-साथ इन उपायों को लागू किया जाए तो भारत का सौर ऊर्जा मिशन अवश्य सफल होगा एवं 2022 तक 100 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब होगा।
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