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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन के लिये हाल ही में लाए गए अध्यादेश द्वारा इस अधिनियम में जोड़े गए प्रावधानों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (Non Performing Assets: NPA) से निपटने की क्षमता की आलोचनात्मक समीक्षा करें।

    19 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    राष्ट्रपति ने बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन संबंधी अध्यादेश को मंजूरी दे दी है जो ‘बेड लोन’ (Bad Loan)  एवं गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की बढ़ती समस्या से निपटने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को अधिक शक्ति प्रदान करेगा। RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने ‘बेड लोन’ की पहचान करने के लिये 2015 में ‘परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा’ (Asset Quality Review: AQR) की प्रक्रिया प्रारंभ की थी और मार्च 2017 तक बैंकों को अपनी बैलेंस शीट्स साफ करने का निर्देश दिया था, लेकिन आज भी यह समस्या विद्यमान है। वर्तमान में कुल  NPA का आकार 6.7 लाख करोड़ रुपए से अधिक है जिसमें से लगभग 6 लाख करोड़ का NPA सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का है।

    इन समस्याओं से निपटने के लिये राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद-123 का प्रयोग कर अध्यादेश जारी किया जिसके माध्यम से बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35 में दो नए प्रावधान जोड़े गए-

    1. प्रथम, सरकार ने RBI को यह अधिकार दिया कि वह डिफॉल्टरों के खिलाफ ‘इनसोलवेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016’ के प्रावधानों के तहत बैंकिंग कंपनियों को निर्देश दे सकती है।

    2. द्वितीय, RBI दबावग्रस्त परिसंपत्तियों (Stressed assets) के समाधान के लिये कार्रवाई करने के लिये समय-समय पर बैंकिंग कंपनियों को दिशा-निर्देश जारी कर सकती है। अध्यादेश यह भी अनुमति देता है कि रिज़र्व बैंक NPA के जल्द समाधान के लिये बैंकों के लिये ‘निरीक्षण समितियाँ’ भी स्थापित कर सकती है। 

    यद्यपि अध्यादेश के ये प्रावधान निश्चित ही RBI को बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋणों के निरीक्षण की अधिक शक्ति प्रदान करेंगे, बैंकों के खातों को साफ-सुथरा बनाएंगे एवं भविष्य में कानूनी कार्रवाई कर सकने की क्षमता के कारण बैंकों को प्रतिरक्षा प्रदान करेंगें। किंतु, अब भी अनेक मुद्दे हैं जिनका समाधान नहीं किया गया हैं-

    • अध्यादेश में इस मूल मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया है कि NPA क्यों पैदा होते हैं।
    • अध्यादेश इस प्रकार के डिफॉल्ट को दण्डनीय अपराध नहीं घोषित करता। विलफुल-डिफॉल्टरों (Wilful defaulters) से निपटने के लिये सख्त प्रावधान होने चाहिये।
    • बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 के तहत पहले से ही RBI के पास बैंकों को निर्देश देने की व्यापक शक्तियाँ हैं फिर भी NPA एवं ‘बेड लोन’ से निपटने के प्रयास सफल नहीं हो पाए हैं।
    • भविष्य में NPA को नियंत्रित करने के लिये सूचना-प्रौद्योगिकी के उन्नयन की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है लेकिन इस अध्यादेश में इस बारे में जिक्र नहीं है।
    • NPA से निपटने के लिये 5/25 योजना, JLF (Joint Lender Forum), S4A (Scheme for Sustainable Structuring of Stressed Assets) जैसी योजनाएँ लाई गई हैं, जिनके उपयुक्त कार्यान्वयन पर जोर देना चाहिये।

    बेड लोन एवं NPA अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत घातक हैं अतः उनका समुचित समाधान करना आवश्यक है। इसके लिये अध्यादेश के माध्यम से कुछ संशोधनों के स्थान पर संसद में व्यापक चर्चा कर एक अधिनियम पारित करना चाहिये जो इन चुनौतियों से समग्र रूप से निपटने में सफल हो सके।

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