- फ़िल्टर करें :
- अर्थव्यवस्था
- विज्ञान-प्रौद्योगिकी
- पर्यावरण
- आंतरिक सुरक्षा
- आपदा प्रबंधन
-
प्रश्न :
क्या भारत में कृषि आय पर कर लगाया जाना चाहिये ?अपने उत्तर को तर्कों से पुष्ट करें?
02 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
कृषि आय को कराधान ढांचे के अंतर्गत लाये जाने का विचार स्वतंत्रतापूर्व काल से ही विवाद का विषय रहा है। स्वतंत्रतापूर्व काल में डॉ.बी.आर.अम्बेडकर ने यह कहा था कि वे कृषि आय पर कर लगाये जाने के पक्षधर हैं परन्तु ये ‘कर’ व्यक्ति की क्षमता व आय के सापेक्ष आरोपित किये जाने चाहियें। 1972 में गठित के.एन.राज समिति की रिपोर्ट में बड़े कृषकों पर कर लगाने का प्रस्ताव था परन्तु उस प्रस्ताव पर कभी विचार नही किया गया। हाल ही में दो सांसदों ने संसद में प्रश्न उठाया की सरकार बड़े किसानों और कृषि से जुडी कंपनियों पर आयकर क्यों नहीं लगा रही?
कृषि पर आयकर लगाये जाने के पक्ष में तर्क:
बड़े उद्योग समूह व बड़े किसान स्वयं कृषि कार्य में प्रत्यक्षत: नहीं जुड़े होते हैं परन्तु कृषि में अपनी पूंजी का निवेश कर खूब लाभ कमाते हैं. प्रत्यक्ष खेती तो छोटे किसान और मजदूर करते हैं। इसलिए आयकर की तरह यह भी विभिन्न कर स्लैब की व्यवस्था कर एक निश्चित सीमा से अधिक आय वाले किसानों व उद्योग समूहों पर कर लग्न ही चाहिये। चूँकि कृषि राज्य सूची का विषय है इसलिए अगर राज्य यह कर लगायेंगे तो उनके राजस्व में वृद्धि होगी और उनकी वित्तीय स्थिति भी मजबूत होगी।
कृषि पर आयकर लगाये जाने के विपक्ष में तर्क:
1991 से 2016 तक के काल में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 32% से घटकर 15% तक पहुँच गया है जबकि कृषि पर आश्रित आबादी का हिस्सा अभी भी 49.7% है। स्पष्ट है की कृषि पर आबादी का अत्यधिक बोझ है। ग्रामीण कृषकों की दशा अत्यंत दयनीय है। युवा वर्ग कृषि से विमुख हो रहा है और जो कृषि से जुड़े हैं, वो संकट में हैं।
2012-13 के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के आंकडों के अनुसार एक कृषि परिवार की औसत आय सिर्फ 6491 रूपए प्रतिमाह है। पर्यावरण और तकनीकी अवरोधों के कारण वैसे भी कृषि उत्पादकता अपने न्यूनतम स्तर पर बनी हुई है। ऐसे में कर का बोझ ग्रामीण कल्याण को प्रभावित करेगा। अतः कृषि आय पर कर लगाना युक्तियुक्त प्रतीत नही होता।
दरअसल स्वतंत्रता के बाद गठित सभी समितियों ने कृषि आय पर तर्कसंगत सीमा के बाद कर लगाने की अनुशंसा की है परन्तु दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में किसानों के बड़े वोट बैंक की खातिर कभी भी इन अनुशंसाओं पर गौर नहीं किया गया। अब समय है कि छोटे व मंझले किसानों के हितों को सुरक्षित रखते हुए इस विषय पर चर्चा की जानी चाहिये।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print