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प्रश्न :
‘पेरिस जलवायु समझौते’ से अमेरिका का अलग होना जलवायु परिवर्तन को रोकने के वैश्विक प्रयासों पर एक बड़ा आघात है। विश्लेषण कीजिये।
03 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणउत्तर :
जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने तथा वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने के लिये वर्ष 2015 में पेरिस में 195 देशों के मध्य एक समझौता हुआ था, जिसके तहत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये कदम उठाने पर सहमति बनी थी। इस ‘पेरिस जलवायु समझौते’ में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वर्ष 2020 से 100 अरब डॉलर की आर्थिक मदद की प्रतिबद्धता भी जताई गई थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिका द्वारा वर्ष 2025 तक वर्ष 2005 के स्तर से 26-28 प्रतिशत तक ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन घटाने का संकल्प लिया था। यूरोप, भारत, चीन आदि ने भी अपने-अपने लक्ष्य तय कर दिये थे। यह पेरिस जलवायु समझौता वर्ष 2020 से लागू होना है, परंतु हाल ही में अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अमेरिका को अलग करने की घोषणा की है।
ट्रंप के इस समझौते से अलग होने के पीछे तर्कः
- इस समझौते के प्रावधान भारत और चीन जैसे देशों के हित में हैं। यह समझौता जहाँ चीन को सैकड़ों नये थर्मल प्लांट लगाने की अनुमति देता हैं, वहीं भारत को वर्ष 2020 तक कोयले के दोगुने उत्पादन की अनुमति तथा अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता का प्रावधान करता है। जबकि, यह अमेरिका पर उत्सर्जन कम करने और अन्य देशों को आर्थिक मदद देने की जिम्मेदारी ही डालता है। अतः यह अमेरिका के हित में नहीं है।
- इस समझौते से लाखें अमेरिकी लोगों की नौकरियों को खतरा है। अतः अमेरिका इस समझौते की शर्तों को नये सिरे से बनाने के पक्ष में है।
ट्रंप की घोषणा वैश्विक प्रयासों पर आघात कैसे?
- अमेरिका विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक देश है। साथ ही, एक महाशक्ति भी है। यदि अमेरिका इस समझौते में रहता तो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तो कम होता ही, विकासशील देशों को आर्थिक मदद मिलती तथा अन्य देशों पर भी दबाव रहता कि वे समझौते की शर्तों का पालन करें। परंतु, ट्रंप की घोषणा के पश्चात् निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन को रोकने के वैश्विक प्रयासों को एक बड़ा आघात पहुँचा है।
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