भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि के विकास पर सामान्यतः किन कारकों का प्रभाव पड़ता है? विस्तार से बताइएँ।
14 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलभारत को प्रदेश विशेष की भौतिक दशाओं और वहाँ अपनाई जाने वाली कृषि विधियों के आधार पर 15 कृषि जलवायुविक प्रदेशों में विभक्त किया गया है। यहाँ कृषि के विकास पर सामान्यतः निम्नलिखित कारकों का प्रभाव पड़ता है-
(i) भौतिक कारकः इसके अंतर्गत जलवायु की विभिन्न दशाओं जैसे वर्षा, तापमान, आर्द्रता, मिट्टी की उर्वरता, स्थालाकृति ढाल एवं भौगोलिक उच्चावच्च को शामिल किया जाता है।
(ii) संस्थागत कारकः इसके अंतर्गत भूमि सुधार अर्थात् बिचौलियों का अंत, चकबंदी, हदबंदी एवं काश्तकारी सुधार जिसमें लगान का नियमन, काश्त अधिकार की सुरक्षा तथा काश्तकारों का भूमि पर मालिकाना अधिकार आता है। इसके अतिरिक्त भूमि का पुनर्वितरण और पुराने भूमि संबंधों को समाप्त करना भी इसमें शामिल हैं।
(iii) संरचनात्मक कारकः इसके अंतर्गत कृषि में आधुनिकता एवं उत्पादकता बढ़ाने वाले तकनीकी उपकरण, कृषि शोध पद्धतियों एवं विज्ञान आधारित निवेश को शामिल किया जाता है। उर्वरक, सिंचाई, ऊर्जा, मशीनीकरण व कीटनाशक के साथ-साथ कृषि विपणन, कृषि साख एवं पर्यावरण अनुकूल कृषि प्रमुख है।
(iv) राजनीतिक व प्रशासनिक प्रयासः न्यूनतम समर्थन मूल्य, कृषि बीमा, साख की उपलब्धता, कृषि वित्त, ऋण प्रवाह, विपणन व भंडारण केंद्रों तथा अन्य आधारभूत कृषि संरचना का विकास राजनीतिक व प्रशासनिक प्रयासों पर निर्भर होता है। संस्थागत व संरचनात्मक कारकों की सफलता भी काफी हद तक राजनीतिक व प्रशासनिक निर्णयों व प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है।
(v) तकनीकी दक्षताः किसान कॉल सेंटर, ग्रामीण ज्ञान केंद्र, ई-चौपाल, कृषि उपज भंडारण, बागवानी एवं रोपण, ऊर्जा संरक्षण एवं कृषि प्रशिक्षण आदि कृषि व्यवस्था को प्रभावित करने वाले सबसे गतिशील कारक हैं।
इस प्रकार, इन विभिन्न कारकों के सकारात्मक समन्वय या सम्मिलन से कृषि विकास को गति मिलती है। परंतु, इनमें भी भौतिक कारक और राजनीतिक व प्रशासनिक प्रयास किसानों की आर्थिक स्थिति को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं।