उन संस्थागत सुधारों, प्रशासनिक व राजनीतिक प्रयासों, संरचनात्मक उपायों एवं नवाचारी तरीकों को सुझाइये जिससे किसानों को आत्महत्या करने से रोका जा सके तथा उन्हें आंदोलन करने की आवश्यकता भी न पड़े।
उत्तर :
भरपूर कृषि उत्पादन, सिंचाई सुविधाओं में सुधार, कृषि-ऋण की उपलब्धता और विभिन्न किसान हितैषी सरकारी उपायों जैसे- न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड के वितरण आदि के बावजूद देश के विभिन्न भगों में किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें आती रहती हैं। हाल ही में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन भी कर रहे हैं। इन दोनों स्थितियों में सुधार लाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निरंतर विविधीकरण को बढ़ावा देने के प्रयास करने चाहियें। इस दिशा में पशुपालन एवं मत्स्यपालन जैसी गतिविधियाँ कारगर सिद्ध होंगी।
- किसानों को पारिस्थितिकीय कृषि अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। यह जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी उचित है तथा इससे कृषि एक लाभकारी विकल्प भी बन सकता है। जैविक कृषि करने से किसान सिंथेटिक उर्वरकों एवं रसायनों पर निर्भरता त्याग देंगे जिससे कृषि लागत में काफी कमी आएगी। अतः सरकार को चाहिये कि पारिस्थितिकीय कृषि को बढ़ावा देने हेतु एक व्यापक सब्सिडी पैकेज की घोषणा करे।
- सूखाग्रस्त क्षेत्रों में ज्यादा पानी की आवश्यकता वाली फसलों से ध्यान हटाकर कम जल आवश्यकता वाली फसलों जैसे दाल, मोटे अनाज आदि पर ध्यान देना चाहिये। ये फसलें पोषक तत्त्वों से युक्त भी होती है और इनसे देश के गरीब तबके के लोगों की प्रोटीन संबंधी आवश्यकताओं को भी पूरा किया जायेगा। सरकार को भी उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य द्वारा इन दालों व मोटे अनाजों की व्यापक सरकारी खरीद सुनिश्चित करनी चाहिये।
- कृषि प्रसंस्करण उद्योगों से संबंधित बुनियादी ढाँचे में भी निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है ताकि किसानों की आय व रोजगार दोनों बढ़ाए जा सकें।
- देश के लगभग 85 प्रतिशत किसान छोटे व सीमांत किसान हैं। उनकी फसल बीमा तक पहुँच सुनिश्चित की जाए।
- सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को समय-समय पर संशोधित करती रहे ताकि वह सदैव फसल लागत से ज्यादा ही रहे।
- कृषि को समवर्ती सूची का विषय बनाया जाये ताकि केंद्र भी राज्य सरकारों से इस विषय पर समन्वय रख किसानों के हित में समन्वित प्रयास कर सके।
इस प्रकार देश की कृषि नीति में व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है। नई नीति बनाते समय सभी हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिये ताकि भविष्य में हितधारक भी नीति क्रियान्वयन में सहयोग करें तथा आत्महत्या या आंदोलन करने की नौबत ही न आए।