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एक युवा और ईमानदार IAS अधिकारी स्नेहा वर्मा, महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त ज़िले में ज़िला ग्रामीण विकास एजेंसी (DRDA) की CEO के रूप में कार्यरत हैं। वह जल शक्ति अभियान के तहत एक महत्त्वपूर्ण ₹50 करोड़ की जल संरक्षण परियोजना के कार्यान्वयन की देखरेख कर रही हैं, जिसका उद्देश्य फसल की विफलता और बड़े पैमाने पर पलायन को रोकना है। निविदाओं को अंतिम रूप देते समय, सबसे कम बोली लगाने वाला— XYZ प्राइवेट लिमिटेड, मज़बूत साख के साथ उभरता है। हालाँकि, स्नेहा को सहकर्मियों द्वारा अनौपचारिक रूप से फर्म के दूसरे राज्य में घटिया काम और रिश्वतखोरी में कथित संलिप्तता के बारे में चेतावनी दी जाती है, जबकि कोई औपचारिक दोषसिद्धि या ब्लैकलिस्ट स्थिति नहीं है।
स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब एक स्थानीय विधायक स्नेहा से मिलने आता है तथा उसे सरस्वती इंफ्रा को ठेका देने के लिये दबाव डालता है, उसे तत्काल कार्रवाई करने का हवाला देता है और उसके आगामी तबादले के परिणामों का संकेत देता है। अगली सुबह, उसे एक अज्ञात ईमेल प्राप्त होता है जिसमें फर्म द्वारा पिछली परियोजनाओं में गुणवत्ता रिपोर्ट में हेरफेर करने के कथित साक्ष्य होते हैं। ग्रामीणों को मानसून-पूर्व परियोजना के निष्पादन की प्रतीक्षा है जिसमें स्नेहा ईमानदारी सुनिश्चित करने और विलंब से बचने के बीच उलझी हुई है जो आजीविका को नुकसान पहुँचा सकती है तथा राजनीतिक प्रतिक्रिया को आमंत्रित कर सकती है।
प्रश्न:
1. मामले में शामिल नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण कर और उन पर चर्चा कीजिये।
2. स्नेहा के पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं? उनमें से प्रत्येक का मूल्यांकन कीजिये। स्नेहा के लिये सबसे उपयुक्त कार्यवाही क्या होगी?3.दीर्घकाल में, सार्वजनिक संस्थाओं को विकासात्मक आवश्यकताओं की तात्कालिकता को संतुलित करते हुए सार्वजनिक खरीद में नैतिक अखंडता और पारदर्शिता किस प्रकार सुनिश्चित की जानी चाहिये?
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