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अदिति, एक भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी हैं, जो जनजाति बहुल क्षेत्र में प्रभागीय वन अधिकारी (DFOO) के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें जनजातीय नेताओं के माध्यम से एक निजी बुनियादी अवसंरचना कंपनी द्वारा वन भूमि के बड़े हिस्से का निर्वनीकरण करने की शिकायतें मिली हैं। उनकी जाँच से पुष्टि होती है कि परियोजना वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करती है, लेकिन राज्य सरकार इसे एक प्रमुख विकास पहल के रूप में बढ़ावा देती है। जनजातीय विस्थापन और पारिस्थितिकी विनाश के डर से परियोजना का सख्त विरोध करते हैं, जबकि कुछ कार्यकर्त्ता विरोध की धमकी देते हैं।
जैसे ही अदिति कार्रवाई करने के लिये तैयार होती है, मुख्य सचिव उसे ‘विकास के व्यापक हित’ में ‘सहयोग’ करने की सलाह देते हैं और यह संकेत देते हैं कि अगर वह विरोध करती है तो उसका तबादला भी हो सकता है। अदिति अब दुविधा का सामना कर रही है। अगर वह परियोजना पर रोक लगाती है, तो उसे राजनीतिक प्रतिक्रिया और कॅरियर के परिणामों का जोखिम उठाना पड़ता है। अगर वह ऐसा करने देती है, तो वह अपनी ईमानदारी और कानून से समझौता करती है। अगर वह जानकारी लीक करती है, तो वह राष्ट्रीय जाँच को आमंत्रित करती है, लेकिन उस पर कदाचार का आरोप लगाया जा सकता है।
प्रश्न:
1. इस मामले में कानूनी दायित्वों, शासन नैतिकता, पर्यावरण न्याय और व्यक्तिगत अखंडता पर ध्यान केंद्रित करते हुए नैतिक दुविधाओं का परीक्षण कीजिये।
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
2. एक नैतिक लोक सेवक के रूप में, अदिति के लिये उपलब्ध संभावित कार्यवाई के तरीकों और उनके नैतिक एवं व्यावसायिक निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये।
3. पारिस्थितिक संधारणीयता और हितधारक भागीदारी सुनिश्चित करते हुए भारत की पर्यावरणीय अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के उपाय सुझाइये।