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आईएएस अधिकारी राजेश कुमार ने हाल ही में मध्य प्रदेश के एक महत्त्वाकांक्षी ज़िले में ज़िला कलेक्टर का कार्यभार संभाला है। मनरेगा परियोजनाओं की समीक्षा के दौरान राजेश कुमार ने गंभीर अनियमितताओं का पता लगाया, जिनमें अधूरी परियोजनाएँ और फर्जी जॉब कार्ड के ज़रिए मज़दूरी में गड़बड़ी शामिल थीं। ज़िला सतर्कता समिति के निरीक्षण के दौरान, राजेश कुमार ने पाया कि समिति के अध्यक्ष, स्थानीय विधायक, परियोजनाओं को बिना समुचित सत्यापन के मंज़ूरी दे रहे थे। इस बीच, कुछ ग्रामीणों ने पंचायत अधिकारियों और ठेकेदारों से जुड़े भ्रष्टाचार के सबूत गुप्त रूप से प्रस्तुत किये। उल्लेखनीय रूप से, पिछले कलेक्टर को इसी तरह के मुद्दों की जाँच करने का प्रयास करते समय तुरंत स्थानांतरित कर दिया गया था और मुख्यमंत्री से निकटता से जुड़े प्रभावशाली विधायक ने सूक्ष्म रूप से सुझाव दिया कि सहयोग राजेश का कार्यकाल और संभावित पुरस्कार सुरक्षित कर सकता है।
राजेश जब इस चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना कर रहे थे, एक स्थानीय कार्यकर्त्ता समूह ने परियोजनाओं में पाई गई विसंगतियों पर आरटीआई दायर कर दी। उन्होंने इन मुद्दों को सार्वजनिक करने और मीडिया में उजागर करने की चेतावनी दी, जिससे प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव बढ़ गया। राजेश एक गंभीर दुविधा में हैं: गहन जाँच से उनकी ज़िम्मेदारी पूरी होगी, लेकिन राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो सकता है, जिससे उनके कॅरियर पर नकारात्मक प्रभाव और विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न करता है। हालाँकि, इन अनियमितताओं को नज़रअंदाज़ करने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और अपनी आजीविका के लिये मनरेगा पर निर्भर रहने वाले कमज़ोर ग्रामीणों का विश्वास भंग होगा।
प्रश्न:
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?
2. इस स्थिति में राजेश के सामने कौन-से मुख्य नैतिक मुद्दे हैं?
3. इस स्थिति से निपटने के समाधान हेतु राजेश को क्या कदम उठाने चाहिये?