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डॉ. शर्मा, एक प्रसिद्ध जैव प्रौद्योगिकी कंपनी की वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, जो एक नए विषाणु संक्रामक रोग के तेज़ी से प्रसारित हो रहे प्रकार के उपचार हेतु एक दवा विकसित करने वाले अनुसंधान दल का नेतृत्व कर रही हैं। विश्वभर में और भारत में मामलों में वृद्धि के साथ, डॉ. शर्मा के दल पर दवा परीक्षणों में तेज़ी लाने का बहुत दबाव है। कंपनी महत्त्वपूर्ण बाज़ार क्षमता का लाभ उठाना चाहती है और प्रथम-प्रवर्तक का लाभ प्राप्त करना चाहती है।
टीम मीटिंग के दौरान, वरिष्ठ सदस्य क्लिनिकल ट्रायल में तीव्रता लाने और त्वरित मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये लघु पथन का प्रस्ताव देते हैं। इनमें नकारात्मक प्रतिफलों को निष्कर्षित करने और चुनिंदा रूप से सकारात्मक प्रतिफलों की रिपोर्ट करने के लिये डेटा का छलसाधन, सूचित सहमति प्रक्रियाओं को उपपथन और स्वयं के द्वारा विकसित करने के बजाय प्रतिद्वंद्वी कंपनी के पेटेंट यौगिकों का उपयोग करना शामिल है। डॉ. शर्मा इन लघुपथन मार्गों से असहज महसूस करती हैं, परंतु उन्हें अनुभव होता है कि ऐसे साधनों का उपयोग किये बिना लक्ष्यों को प्राप्त करना असंभव है। अब उन्हें एक कठिन निर्णय का सामना करना पड़ रहा है जो बाज़ार के दबावों और उपचार की तत्काल आवश्यकता के विरुद्ध वैज्ञानिक सत्यनिष्ठता और रोगी सुरक्षा को चुनौती देता है।
1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
2. डॉ. शर्मा को किन नीतिपरक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है?
3. इस परिदृश्य में डॉ. शर्मा को क्या कदम उठाना चाहिये?