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नगरीय अर्थतंत्र के सहायक श्रमिक बल के रूप में मूक रह कर सेवा प्रदान करते हुए, प्रवासी श्रमिक सदैव हमारे समाज के सामाजिक-आर्थिक हाशिये पर रहे हैं। महामारी ने उन्हें राष्ट्रीय केंद्र बिंदु पर ला दिया है।
देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा से, प्रवासी श्रमिकों की एक बड़ी संख्या ने अपने रोज़गार स्थानों से अपने मूल गाँवों में लौटने का निर्णय लिया। आवागमन की अनुपलब्धता ने अपनी समस्याएँ खड़ी कर दीं। इसके अलावा अपने परिवारों की भुखमरी और असुविधा का डर भी उन्हें सता रहा था।
इनके चलते प्रवासी श्रमिकों ने अपने गाँवों को लौटने के लिये मजदूरी और आवागमन की सुविधाएँ मांगी। उनकी मानसिक व्यथा बहु कारणों से और भी बढ़ गई जैसे आजीविका का आकस्मिक नुक्सान, भोजन के अभाव की संभावना और समय पर घर नहीं पहुँच पाने से रवि की फसल की कटाई में मदद नहीं करने की असमर्थता। उनकी आशंकाएँ ऐसी खबरों से और भी बढ़ गईं जिनमें रास्ते में कुछ ज़िलों में रहने और खाने के अपर्याप्त प्रबंध के बारे में बताया गया था।
जब आपको अपने ज़िले के ज़िला आपदा मोचन बल की कार्यवाही का संचालन करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी तो इस परिस्थिति से आपने अनेक सबक हासिल किये। आपके मतानुसार सामयिक प्रवासी संकट में क्या नीतिपरक मुद्दे उभर कर आए? एक नीतिपरक सेवा प्रदाता राज्य से आप क्या समझते हैं? समान परिस्थितियों में प्रवासियों की पीड़ाओं को कम करने में सभी समाज क्या सहायता प्रदान कर सकता है? (250 शब्द)
सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न