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  • 17 Jul 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    दिवस- 9: भारत में क्षेत्रवाद का उदय बढ़ती सांस्कृतिक दृढ़ता के साथ गहन रूप से जुड़ा हुआ है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में क्षेत्रवाद का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • सांस्कृतिक दृढ़ता से जुड़े क्षेत्रवाद को प्रेरित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिये।
    • क्षेत्रवाद के प्रभाव पर प्रकाश डालिये।
    • क्षेत्रवाद को राष्ट्रीय एकता के साथ संतुलित करने की रणनीतियाँ सुझाइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत में क्षेत्रवाद का तात्पर्य राजनीतिक और सामाजिक घटना से है, जहाँ देश के अलग-अलग क्षेत्र अपनी पहचान तथा हितों पर ज़ोर देते हैं, जो अक्सर केंद्रीय या राष्ट्रीय ढाँचे के विरोध में होता है। क्षेत्रवाद में यह वृद्धि बढ़ती सांस्कृतिक मुखरता से जुड़ी हुई है क्योंकि विभिन्न क्षेत्र वैश्वीकरण तथा राष्ट्रीय एकीकरण के सामने अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने का प्रयास करते हैं।

    मुख्य भाग:

    क्षेत्रवाद और सांस्कृतिक मुखरता को बढ़ावा देने वाले कारक:

    • स्वतंत्रता के बाद के घटनाक्रम: स्वतंत्रता के बाद क्षेत्रों द्वारा अपनी अनूठी सांस्कृतिक और भाषायी पहचान की मांग ने क्षेत्रवाद जैसी गतिविधियाँ को तीव्र कर दिया। भाषायी आधार पर आंध्र प्रदेश, गुजरात एवं महाराष्ट्र जैसे राज्यों का गठन इस प्रवृत्ति को दर्शाता है।
    • भाषायी पहचान: भाषा क्षेत्रीय पहचान का एक मुख्य घटक है। तमिल ईलम और गोरखालैंड जैसे आंदोलन अन्य भाषायी समूहों द्वारा कथित प्रभुत्त्व के खिलाफ भाषायी विरासत को संरक्षित तथाबढ़ावा देने की इच्छा में निहित हैं।
      • राज्य शिक्षा, प्रशासन और मीडिया में अपनी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये नीतियों को लागू करते हैं।
    • सांस्कृतिक पुनरुत्थान: विभिन्न सांस्कृतिक प्रथाओं, त्योहारों, व्यंजनों और परंपराओं वाले क्षेत्र राष्ट्रीय मुख्यधारा से स्वयं को अलग करने के लिये इन तत्त्वों पर ज़ोर देते हैं। सांस्कृतिक उत्सव और क्षेत्रीय साहित्य इस पुनरुत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिये असम में बिहू, पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा एवं तमिलनाडु में पोंगल को सांस्कृतिक दृढ़ता के साथ मनाया जाता है।
    • आर्थिक असमानताएँ: क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानताएँ क्षेत्रवाद को बढ़ावा देती हैं। पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्र, अपने मज़बूत आर्थिक आधार के साथ, अक्सर केंद्र सरकार के साथ बेहतर आर्थिक शर्तों पर संवाद करने के लिये अपनी क्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक पहचान पर ज़ोर देते हैं।
    • राजनीतिक स्वायत्तता: अधिक राजनीतिक स्वायत्तता की इच्छा क्षेत्रवाद को बढ़ावा देती है। राज्य अपनी अनूठी सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक मांगों को बेहतर ढंग से संबोधित करने के लिये स्थानीय संसाधनों, शासन एवं नीति-निर्माण पर अधिक नियंत्रण की मांग करते हैं।
    • राजनीतिक आंदोलन: तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), महाराष्ट्र में शिवसेना और आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी (TDP) जैसी क्षेत्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय मुद्दों तथा सांस्कृतिक पहचान का समर्थन करके सत्ता में आई।

    बढ़ते क्षेत्रवाद के प्रभाव:

    • सकारात्मक प्रभाव:
      • सांस्कृतिक संरक्षण: क्षेत्रवाद विविध सांस्कृतिक विरासतों को संरक्षित करने में मदद करता है, जिससे विश्व में एकरूपता को रोका जा सकता है।
      • विकेंद्रीकृत शासन: यह विकेंद्रीकृत शासन को बढ़ावा देता है, जिससे क्षेत्रों द्वारा स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित किया जाता है।
    • नकारात्मक प्रभाव:
      • सामाजिक तनाव: अत्यधिक क्षेत्रवाद अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-जातीय संघर्षों को जन्म दे सकता है, जैसा कि राज्य तथा स्वायत्तता के लिये संघर्षों में देखा गया है।
      • राजनीतिक विखंडन: यह राजनीतिक विखंडन और अस्थिरता को जन्म दे सकता है, जिससे राष्ट्रीय शासन एवं नीति कार्यान्वयन में कठिनाई आ सकती है।

    क्षेत्रवाद और राष्ट्रीय एकता में संतुलन:

    • संघीय संरचना: भारत का संघीय ढाँचा राष्ट्रीय एकता को बनाए रखते हुए क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित करने की अनुमति देता है। प्रभावी संघवाद में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का संतुलन शामिल होता है।
    • समावेशी विकास: क्षेत्रों में समान विकास सुनिश्चित करने से क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाली आर्थिक असमानताओं को कम किया जा सकता है। नीतियों को समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित और कम विकसित क्षेत्रों की ज़रूरतों को पूरा करना चाहिये।
    • राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना: क्षेत्रीय पहचान का जश्न मनाते हुए, राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देना आवश्यक है। शैक्षिक पाठ्यक्रम, राष्ट्रीय सेवा कार्यक्रम और सांस्कृतिक आदान-प्रदान विभिन्न क्षेत्रों के बीच समझ तथा सामंजस्य को बढ़ावा दे सकते हैं।

    निष्कर्ष:

    भारत में क्षेत्रवाद का उदय सांस्कृतिक मुखरता में वृद्धि के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, जो देश की समृद्ध विविधता और क्षेत्रों की अपनी विशिष्ट पहचान को संरक्षित तथा बढ़ावा देने की इच्छा को दर्शाता है। क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता के लिये चुनौतियों के साथ-साथ विकेंद्रीकृत शासन तथा सांस्कृतिक संरक्षण के अवसर भी प्रदान करता है। राष्ट्रीय एकीकरण के साथ क्षेत्रीय आकांक्षाओं को संतुलित करने के लिये ऐसी नीतियों की आवश्यकता है, जो समावेशी विकास एवं भारत की बहुलवादी विरासत के प्रति सम्मान को बढ़ावा दे सकता है।

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