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16 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भारतीय समाज
दिवस- 8: भारत में शहरी व्यवस्था से जुड़े कारणों, परिणामों और चिंताओं पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- शहरीकरण की घटना का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- भारत में शहरी व्यवस्था से जुड़े कारणों, परिणामों और चिंताओं का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में शहरीकरण एक गतिशील और बहुआयामी प्रक्रिया है, जो देश के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन को दर्शाती है। भारत में शहरी प्रवास के अभूतपूर्व स्तर के कारण, शहर आर्थिक, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और नवाचार के केंद्र के रूप में उभर रहे हैं। हालाँकि शहरी विस्तार अपने साथ कई जटिल चुनौतियाँ और परिणाम लेकर आता है।
मुख्य भाग:
शहरी व्यवस्था के कारण:
- आर्थिक अवसर: भारत में शहरीकरण के प्राथमिक चरण में से एक बेहतर आर्थिक अवसर प्रदान करना है। शहर विभिन्न क्षेत्रों जैसे उद्योग, सेवाओं और प्रौद्योगिकी में नौकरियों, उच्च वेतन तथा विविध रोज़गार विकल्पों का एकीकरण प्रदान करते हैं।
- शैक्षणिक और स्वास्थ्य सुविधाएँ: शहरी क्षेत्र आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर शैक्षणिक संस्थान और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ प्रदान करते हैं। यह असमानता उन व्यक्तियों को आकर्षित करती है जो अपने और अपने परिवार के लिये बेहतर अवसर चाहते हैं।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: परिवहन नेटवर्क, आवास और सार्वजनिक सुविधाओं जैसे बुनियादी ढाँचे में सुधार ने शहरी क्षेत्रों को अधिक सुलभ तथा आकर्षक बना दिया है। बेहतर कनेक्टिविटी और शहरी नियोजन कम विकसित क्षेत्रों से लोगों को आकर्षित करता है।
- ग्रामीण पुश कारक: ग्रामीण क्षेत्रों में स्थितियाँ, जिनमें गरीबी, रोज़गार के अवसरों की कमी और खराब जीवन स्तर शामिल हैं, बेहतर जीवन स्तर की तलाश में व्यक्तियों को शहरी केंद्रों की ओर आकर्षित करती है।
- सरकारी नीतियाँ: विकास कार्यक्रमों और औद्योगीकरण के लिये प्रोत्साहन सहित शहरों में शहर-केंद्रित नीतियाँ तथा निवेश, शहरी प्रवास को बढ़ाने में मदद करते हैं।
शहरी व्यवस्था के परिणाम
- आर्थिक विकास: शहरीकरण से संसाधनों, प्रतिभा और पूंजी को केंद्रित करके आर्थिक विकास में गति मिल सकती है। शहर अक्सर आर्थिक केंद्र के रूप में विकसित हो जाते हैं जो विभिन्न उद्योगों और सेवाओं के माध्यम से राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- संसाधनों की बढ़ती मांग: तेज़ी से शहरीकरण के कारण पानी, ऊर्जा और भूमि जैसे संसाधनों की मांग में वृद्धि होती है। इससे बुनियादी ढाँचे पर दबाव पड़ सकता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- सामाजिक स्तरीकरण: शहरी क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सामाजिक असमानता देखी जा सकती है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के बीच वित्त का अंतर अधिक हो जाता है, जिससे अनौपचारिक रूप से बस्तियों और मलिन बस्तियों का प्रसार होता है।
- सांस्कृतिक एकीकरण: शहरीकरण सांस्कृतिक विविधता और एकीकरण को बढ़ावा देता है। शहर विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं, भाषाओं और जीवन शैली का समृद्ध मिश्रण के रूप में विकसित होते है।
शहरी व्यवस्था से संबद्ध चिंताएँ:
- पर्यावरण क्षरण: शहरी विकास के परिणामस्वरूप अक्सर वनों की कटाई, हरित क्षेत्रों का नुकसान और प्रदूषण में वृद्धि होती है। शहरों में उद्योगों और वाहनों की अधिकता से वायु तथा जल प्रदूषण जैसी गतिविधियाँ देखने को मिलती हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
- बुनियादी ढाँचे पर दबाव: तेज़ी से हो रहे शहरी विकास से मौजूदा बुनियादी ढाँचा प्रभावित होता है, जिसमें परिवहन प्रणाली, अपशिष्ट प्रबंधन और सार्वजनिक सेवाएँ शामिल हैं। इससे भीड़भाड़, स्वच्छता और अक्सर सेवा में व्यवधान हो सकता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे: भीड़भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उच्च तनाव और प्रदूषण के कारण संक्रामक रोगों तथा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का प्रसार शामिल है। गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच भी तनावपूर्ण हो सकती है।
- सामाजिक असमानता: शहरी-ग्रामीण विभाजन सामाजिक असमानताओं को बढ़ा सकता है। सेवाओं, रोज़गार के अवसरों और जीवन की गुणवत्ता तक पहुँच में असमानताएँ अधिक देखने को मिलती हैं, जिससे अक्सर सामाजिक अशांति उत्पन्न होती है।
निष्कर्ष:
भारत में शहरी व्यवस्था आर्थिक, शैक्षिक और बुनियादी ढाँचे के कारकों के संयोजन से प्रेरित है, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था तथा समाज दोनों प्रभावित होते हैं। शहरीकरण के लाभों को अधिकतम और इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये व्यापक शहरी नियोजन, सतत् विकास प्रथाओं तथा प्रभावी शासन की आवश्यकता है।