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16 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भारतीय समाज
दिवस- 8: भारत में गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से कई सरकारी पहलों के बावजूद, गरीबी बनी हुई है। आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में गरीबी का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- भारत में गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से सरकार द्वारा शुरू की गई प्रमुख पहलों का उल्लेख कीजिये।
- भारत में लगातार गरीबी के कारणों पर प्रकाश डालिये।
- गरीबी उन्मूलन के उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
गरीबी एक बहुआयामी अवधारणा है जो मुख्य रूप से वित्तीय संसाधनों की कमी और आवश्यक सेवाओं तक पहुँच जैसे अभाव के विभिन्न आयामों को समाहित करती है। नीति आयोग के अनुसार, भारत में बहुआयामी गरीबी में वर्ष 2013-14 में 29.17% से वर्ष 2022-23 में 11.28% (यानी 17.89 प्रतिशत अंकों की कमी) तक की उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। भारत में महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास और गरीबी को कम करने के व्यापक सरकारी प्रयासों के बावजूद, आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी गरीबी के विभिन्न रूपों का सामना कर रहा है।
मुख्य बिंदु:
गरीबी उन्मूलन के लिये सरकारी पहल:
- आर्थिक सुधार और विकास: 1990 के दशक में शुरू की गई आर्थिक उदारीकरण नीतियों का उद्देश्य विकास को प्रोत्साहित और रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना था।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसे कार्यक्रमों ने ग्रामीण परिवारों को रोज़गार और मज़दूरी की गारंटी प्रदान की है।
- सामाजिक कल्याण कार्यक्रम: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और स्वच्छ भारत मिशन जैसी विभिन्न योजनाएँ आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने तथा जीवन स्तर में सुधार करने के लिये डिज़ाइन की गई हैं।
- शिक्षा और कौशल विकास: सर्व शिक्षा अभियान (SSA) और राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन जैसी पहल शैक्षिक अवसरों तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिसका उद्देश्य गरीबों के बीच रोज़गार और आय के स्तर में सुधार करना है।
- स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच तथा सामर्थ्य में सुधार कर गरीबी से बचने के लिये महत्त्वपूर्ण बाधाओं में से एक को संबोधित करना है।
गरीबी के कारण:
- असमानता और बहिष्करण: समान रूप से आर्थिक विकास नहीं हुआ है, जिसके कारण आय में काफी असमानता देखने को मिलती है।
- अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और महिलाओं सहित हाशिये पर पड़े समूहों को अक्सर प्रणालीगत बहिष्कार तथा संसाधनों तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ता है, जिससे गरीबी में वृद्धि होती है।
- कार्यान्वयन में अंतराल: कई कार्यक्रमों का उचित कार्यान्वयन न होने में भ्रष्टाचार, अकुशलता और जवाबदेही की कमी जैसे मुद्दे शामिल हैं।
- सब्सिडी वितरण में अनियमितताएँ और अपर्याप्त निगरानी तंत्र गरीबी उन्मूलन प्रयासों की प्रभावशीलता को कमज़ोर करते हैं।
- संरचनात्मक मुद्दे: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, बाज़ारों तक सीमित पहुँच और ग्रामीण क्षेत्रों में खराब कनेक्टिविटी जैसी संरचनात्मक समस्याएँ आर्थिक विकास में बाधा डालती हैं तथा गरीबी में वृद्धि करती हैं।
- ग्रामीण-शहरी विभाजन और क्षेत्रीय असमानताएँ भी असमान प्रगति में योगदान देती हैं।
- शिक्षा और कौशल में बेमेल: यद्यपि शैक्षिक कार्यक्रमों का विस्तार हुआ है, फिर भी कौशल और श्रम बाज़ार की मांग के बीच अक्सर असंतुलन बना रहता है।
- इसके परिणामस्वरूप गरीबों में बेरोज़गारी और अल्परोज़गार की स्थिति में वृद्धि हो जाती है तथा उन्हें उपयुक्त रोज़गार पाने के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
- स्वास्थ्य और सामाजिक चुनौतियाँ: खराब स्वास्थ्य स्थितियाँ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच की कमी व्यक्तियों की कार्य करने की क्षमता तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने में बाधा डालती है।
- इसके अतिरिक्त, घरेलू हिंसा और लैंगिक भेदभाव जैसी सामाजिक चुनौतियाँ गरीबी को और भी प्रभावित करती हैं।
- वित्तपोषण एवं संसाधन की कमी: गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिये वित्तपोषण एवं संसाधनों की कमी अक्सर उनकी पहुँच और प्रभाव को सीमित कर देती है।
- बजटीय आवंटन में कमी और प्रतिस्पर्द्धात्मक प्राथमिकताओं के कारण कार्यक्रमों को पर्याप्त रूप से वित्त न मिलने से सबसे कमज़ोर आबादी के उत्थान में बाधा उत्पन्न होती है।
- प्रशासनिक अकुशलताएँ: नौकरशाही में अकुशलताएँ और कार्यक्रम क्रियान्वयन में देरी गरीबी उन्मूलन प्रयासों की प्रभावशीलता को कम कर सकती है।
- बेहतर परिणामों के लिये प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के अनुसार, गरीबी को केवल आय की कमी के रूप में नहीं बल्कि बुनियादी क्षमताओं से वंचित होने के रूप में देखा जाना चाहिये। लोगों को स्वस्थ, शिक्षित और सामाजिक रूप से सक्रिय होने जैसे विभिन्न कार्य करने की स्वतंत्रता, जो वास्तविक गरीबी उन्मूलन के लिये महत्त्वपूर्ण है, को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। गरीबी के मूल कारणों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये आर्थिक, सामाजिक और संस्थागत सुधारों को एकीकृत करने वाले समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है।