15 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में महिला आंदोलन के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत में महिला आंदोलन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये।
- निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
भारत में महिला आंदोलन ने लैंगिक समानता की दिशा में चल रही प्रगति की नींव रखी है तथा भारत और विश्व स्तर पर महिलाओं के अधिकारों के लिये प्रयासों को प्रेरित करना जारी रखा है। इस आंदोलन ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत करके और पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देकर उन्हें सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि निम्न सामाजिक वर्ग की महिलाओं के सामने आने वाले मुद्दों को संबोधित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
मुख्य भाग:
महिला आंदोलन ने कई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं:
- कानूनी सुधार: मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (1993) ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये तंत्र स्थापित किये, जबकि घरेलू हिंसा अधिनियम (2005) घरेलू दुर्व्यवहार से बचे लोगों के लिये कानूनी उपाय प्रदान करता है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व: 73वें और 74वें संविधान संशोधनों ने स्थानीय शासन में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित कीं, जिससे निर्णय लेने में उनकी भागीदारी बढ़ी।
- संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिये सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिसमें SC तथा ST के लिये आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।
- सार्वजनिक अभियान: #MeToo आंदोलन यौन उत्पीड़न को उजागर करने में सहायक रहा है, जिससे सार्वजनिक चर्चा और कानूनी सुधारों में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिये, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश इन अभियानों से प्रभावित थे।
- शैक्षणिक पहल: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) जैसी योजनाओं का उद्देश्य महिला शिक्षा और सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है। इस कार्यक्रम से स्कूलों में छात्राओं का नामांकन बढ़ाने में सफलता मिली है।
निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- गरीबी: गरीबी आर्थिक कठिनाई बुनियादी आवश्यकताओं और अवसरों तक पहुँच को सीमित करती है। उदाहरण के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब अक्सर अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा से जूझते हैं, जिससे मातृ और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
- सेवाओं तक सीमित पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त शैक्षिक बुनियादी ढाँचा महिलाओं को राष्ट्रीय कार्यक्रमों से पूरी तरह से लाभान्वित होने से रोकता है।
- बाल विवाह: कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद (खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में) बाल विवाह किये जाते हैं।
- भारत में हर साल 18 वर्ष से कम आयु की कम-से-कम 1.5 मिलियन लड़कियों की शादी कर दी जाती है।
- भेदभाव: भारत में दलित महिलाओं को जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह दोहरा हाशिये पर होना अक्सर उनकी भेद्यता को बढ़ाता है और संसाधनों, अवसरों तथा न्याय तक उनकी पहुँच को सीमित करता है।
- शहर-केंद्रित: शहरों की अपेक्षा ग्रामीण मुद्दों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। उदाहरण के लिये जबकि शहरी महिलाओं के कार्यस्थल की स्थितियों में सुधार देखा गया है, जबकि ग्रामीण महिलाओं को अनौपचारिक श्रम बाज़ारों में शोषण का सामना करना पड़ रहा है।
- अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: महिला संगठनों में नेतृत्व की भूमिकाओं में अक्सर निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से प्रतिनिधित्व की कमी होती है। इससे आंदोलन की प्राथमिकताओं और हाशिये पर पड़ी महिलाओं की ज़रूरतों के बीच एक अलगाव पैदा हो गया है।
- कार्यान्वयन में कमी: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रमों को ग्रामीण क्षेत्रों में खराब क्रियान्वयन के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है। रिपोर्टों से पता चला है कि अक्सर फंड का दुरुपयोग किया जाता है या उनका उचित तरीके से आवंटित नहीं किया जाता है।
निष्कर्ष:
निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्ग की महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दों को संबोधित करने के लिये सतही स्तर के सुधारों से परे एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के मूल कारणों को लक्षित करने वाली नीतियों को लागू करना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को बढ़ाना तथा असमानता को बनाए रखने वाली सांस्कृतिक एवं सामाजिक बाधाओं को दूर करना शामिल है। प्रभावी नीति कार्यान्वयन, ज़मीनी स्तर पर भागीदारी में वृद्धि और समावेशी प्रतिनिधित्व पर ध्यान देना अंतर को पाटने के लिये आवश्यक है।