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दिवस-7: अपनी बहुआयामी सांस्कृतिक विविधता को अपनाकर भारत सामाजिक सद्भाव एवं समावेशिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूती प्रदान कर रहा है। व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)

15 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में सांस्कृतिक विविधता के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • सामाजिक सद्भाव, सांस्कृतिक विविधता और समावेशिता के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारत की बहुआयामी सांस्कृतिक विविधता इसके सामाजिक निर्माण की आधारशिला है। इस विविधता को अपनाकर भारत सामाजिक सद्भाव और समावेशिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूत करता है। अपने विविध सांस्कृतिक परिदृश्य को प्रबंधित करने के लिये देश का दृष्टिकोण व्यक्तिगत पहचान और परंपराओं का सम्मान करते हुए एकीकृत समाज के निर्माण के प्रति उसके समर्पण को दर्शाता है।

मुख्य भाग:

  • इतिहास में निहित सांस्कृतिक विरासत:
    • भारत की सांस्कृतिक विविधता इसके इतिहास में गहराई से निहित है। हज़ारों वर्षों से, उपमहाद्वीप ने विभिन्न सभ्यताओं के प्रभाव को देखा है जिसने भारत की सांस्कृतिक आधार के निर्माण में योगदान दिया है-
      • मौर्य और गुप्त साम्राज्य धार्मिक तथा सांस्कृतिक बहुलवाद को बढ़ावा देने के लिये जाने जाते थे।
      • मुगल काल में चुनौतियों के बावजूद, विशेष रूप से कला, वास्तुकला और भोजन के तरीकों में महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ।
      • औपनिवेशिक काल में पश्चिमी शिक्षा और प्रशासनिक प्रथाओं की शुरुआत के साथ विविधता की परतें और भी बढ़ गईं।
  • संवैधानिक और कानूनी ढाँचा:
    • भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता और समावेशिता के सिद्धांतों को मूर्त रूप देता है तथा सांस्कृतिक विविधता के प्रबंधन के लिये एक मज़बूत ढाँचा प्रदान करता है।
      • अनुच्छेद 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है तथा सभी नागरिकों के लिये समान व्यवहार सुनिश्चित करता है।
      • अनुच्छेद 29 और 30: व्यक्तियों की अपनी संस्कृति को संरक्षित करने तथा शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के अधिकारों की रक्षा करता है, जिससे सांस्कृतिक संरक्षण और विविधता को बढ़ावा मिलता है।
  • सामाजिक-राजनीतिक पहल:
    • भारत ने सामाजिक सद्भाव और समावेशिता को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कई सामाजिक-राजनीतिक पहलों को लागू किया है।
    • राष्ट्रीय एकता परिषद (NIC) की स्थापना राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के मुद्दों को संबोधित करने के लिये की गई थी।
  • पार-सांस्कृतिक समझ:
    • सांस्कृतिक उत्सव और कार्यक्रम भारत की विविधता का जश्न मनाने तथा उसे एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत के विविध त्योहार, जैसे दिवाली, ईद और क्रिसमस, विभिन्न समुदायों में उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। ये त्योहार न केवल देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रमाण हैं, बल्कि अंतर-धार्मिक और पार-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के लिये मंच के रूप में भी कार्य करते हैं।
  • शिक्षण कार्यक्रम:
    • NCERT पाठ्यक्रम सहित शैक्षिक पहल, विभिन्न सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यों को शामिल करती है, जिससे छात्रों को भारत के बहुलवादी समाज की सराहना और सम्मान करने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष:

अपनी उपलब्धियों के बावजूद, भारत को अपनी सांस्कृतिक विविधता को प्रबंधित करने में सांप्रदायिक तनाव और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। फिर भी, सांस्कृतिक विभाजन को दूर करने, हाशिये पर पड़े समुदायों का समर्थन करने और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिये देश के निरंतर प्रयास इसकी विविध सांस्कृतिक रूपरेखा के भीतर एकता तथा समावेशिता बनाए रखने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं।