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15 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भारतीय समाज
दिवस-7: भारत और पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता को लेकर होने वाली चर्चाएँ विभिन्न मोर्चों पर स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। विवेचना कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत और पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता पर चर्चा के मतभेदों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
धर्मनिरपेक्षता, सभी धर्मों के प्रति सरकार की तटस्थता सुनिश्चित करने के लिये धर्म को राज्य के मामलों से अलग रखने का सिद्धांत है। इसका उद्देश्य धार्मिक संस्थाओं को सरकारी निर्णयों और सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करने से रोकना है, जिससे व्यक्तिगत अधिकारों तथा स्वतंत्रता की रक्षा हो सके। ऐतिहासिक संदर्भों में, सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्यों और सांस्कृतिक कारकों में अंतर के कारण भारत एवं पश्चिमी देशों के बीच धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा काफी भिन्न है।
मुख्य बिंदु:
ऐतिहासिक संदर्भ:
- पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता:
- उत्पत्ति: पश्चिम में, धर्मनिरपेक्षता प्रबुद्धता के विचार और सुधार से उभरी, जिसका उद्देश्य धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने तथा धार्मिक संघर्ष को रोकने के लिये चर्च एवं राज्य को अलग करना था। फ्राँसीसी क्रांति और अमेरिकी क्रांति जैसी ऐतिहासिक घटनाओं ने पश्चिमी लोकतंत्रों में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- कार्यान्वयन: पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में अक्सर राज्य संस्थानों और सार्वजनिक जीवन से धर्म के सख्त अलगाव की विशेषता निहित है। यह मॉडल धार्मिक मामलों में राज्य की तटस्थता पर ज़ोर देता है और साथ ही यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि धार्मिक विश्वास सरकारी नीतियों को प्रभावित न करें।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता:
- उत्पत्ति: भारत में धर्मनिरपेक्षता विविध धार्मिक परिदृश्य और स्वतंत्रता के संघर्ष से प्रभावित था। जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भारत के बहुलवाद को समायोजित करने तथा विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये एक धर्मनिरपेक्ष राज्य पर ज़ोर दिया।
- कार्यान्वयन: भारतीय धर्मनिरपेक्षता एक सकारात्मक या हस्तक्षेपवादी दृष्टिकोण की विशेषता है, जहाँ राज्य सभी धार्मिक समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने और समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये धर्म के साथ सक्रिय रूप से जुड़ता है। यह दृष्टिकोण भारत की अपनी बहुलवादी विरासत को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
सैद्धांतिक ढाँचा:
- पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता:
- अलगाव: पश्चिमी मॉडल आमतौर पर धर्म और सरकार के बीच स्पष्ट अलगाव की वकालत करता है। जिसमे सार्वजनिक संस्थानों से धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध लगाना और सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षाओं पर रोक लगाना शामिल है।
- तटस्थता: राज्य से सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहने की अपेक्षा की जाती है, कि किसी विशेष धर्म को राज्य के द्वारा विशेष महत्त्व न दिया जाए।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता:
- सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता: धर्मनिरपेक्षता के प्रति भारत के दृष्टिकोण में धर्म के साथ सकारात्मक जुड़ाव शामिल है। राज्य विभिन्न धार्मिक प्रथाओं और संस्थाओं को मान्यता प्रदान करता है तथा उनका समर्थन करता है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी धर्मों को समान सम्मान एवं व्यवहार प्राप्त हो।
- बहुलवाद: भारतीय धर्मनिरपेक्षता "विविधता में एकता" के विचार को बढ़ावा देती है, जहाँ राज्य धार्मिक विविधता को प्रबंधित करने और विभिन्न धार्मिक समुदायों की शिकायतों को दूर करने में सक्रिय भूमिका निभाती है।
कानूनी और संवैधानिक ढाँचा
- पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता:
- कानूनी ढाँचा: संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्राँस जैसे पश्चिमी देशों में संवैधानिक प्रावधान हैं जो चर्च तथा राज्य के पृथक्करण को सुनिश्चित करते हैं। उदाहरण के लिये, अमेरिकी संविधान का पहला संशोधन कॉन्ग्रेस द्वारा धर्म की स्थापना को प्रतिबंधित करता है।
- न्यायिक व्याख्या: पश्चिमी लोकतंत्रों में न्यायालय अक्सर धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या ऐसे फैसलों के माध्यम से करते हैं जो धर्म को सार्वजनिक जीवन से अलग करते हैं तथा व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता:
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को शामिल किया गया है, जिसमें अनुच्छेद 15, 16 और 25-30 धार्मिक स्वतंत्रता तथा समानता की गारंटी प्रदान करते हैं।
- न्यायिक व्याख्या: भारतीय न्यायालय धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या इस तरह से करते हैं कि यदि धार्मिक प्रथाओं में मौलिक अधिकारों को बनाए रखने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये कार्य किया जाता है, तो राज्य को हस्तक्षेप करने की अनुमति है।
सामाजिक-राजनीतिक गतिशीलता
- पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता:
- धार्मिक बहुलवाद: पश्चिमी समाजों में अक्सर धार्मिक बहुलवाद अधिक है, जहाँ धर्मनिरपेक्षता किसी एक धर्म को सार्वजनिक जीवन पर हावी होने से रोकने का कार्य करती है। ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि कई पश्चिमी देशों में धार्मिक संबद्धता और व्यवहार में गिरावट देखी गई है, जिसके धार्मिक विश्वास सार्वजनिक नीति को प्रभावित न करें।
- धर्मनिरपेक्षता के रुझान: कई पश्चिमी देशों में धार्मिक संबद्धता और आचरण में गिरावट देखी गई है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र अधिक धर्मनिरपेक्षी हो गया है तथा सार्वजनिक जीवन में धर्म का प्रभाव कम हो गया है।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता:
- धार्मिक विविधता: भारत की धर्मनिरपेक्षता गहन धार्मिक विविधता के संदर्भ में संचालित होती है। सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और अंतर-धार्मिक संघर्षों को संबोधित करने के लिये धार्मिक मामलों के प्रबंधन में राज्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
- सक्रिय भागीदारी: धार्मिक मामलों में भारतीय राज्य की भागीदारी में धार्मिक संस्थानों के लिये धन मुहैया कराना, धार्मिक तीर्थयात्राओं का प्रबंधन करना और धार्मिक समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करना शामिल है। यह सक्रिय भागीदारी देश की अपने विविध धार्मिक परिदृश्य को समायोजित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
- पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता:
- धार्मिक स्वतंत्रता: आलोचकों का तर्क है कि सख्त अलगाव से सार्वजनिक जीवन में धार्मिक प्रथाओं और विश्वासों को हाशिये की ओर ले जाया जा रहा है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता को नुकसान पहुँच सकता है।
- सांस्कृतिक प्रभाव: कुछ लोगों का तर्क है कि राज्य के मामलों से धर्म को सख्त रूप से अलग करने से धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी हुई सांस्कृतिक परंपराएँ और सांप्रदायिक मूल्य नष्ट हो सकते हैं।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता:
- पूर्वाग्रह की धारणाएँ: भारतीय धर्मनिरपेक्षता के आलोचकों का तर्क है कि धार्मिक मामलों में राज्य की सक्रिय भागीदारी से कुछ समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह और पक्षपातपूर्ण व्यवहार की धारणाएँ पैदा हो सकती हैं।
- धार्मिक राजनीति: राजनीति में धर्म की भागीदारी कभी-कभी सांप्रदायिक तनाव तथा धार्मिक मुद्दों के राजनीतिकरण को बढ़ावा दे सकती है।
निष्कर्ष:
भारत और पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा विभिन्न रूप से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों को दर्शाती है। दोनों मॉडल अद्वितीय चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करते हैं, जो विविध समाजों में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को लागू करने की जटिलताओं को दर्शाते हैं। इन अंतरों को समझने से विभिन्न वैश्विक संदर्भों में धर्मनिरपेक्षता के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोणों की सराहना करने में मदद मिलती है।