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दिवस-5: वर्ष 1980 के दशक तक, सोवियत संघ की साम्यवादी प्रणाली अपने आप को महाशक्ति के रूप में बनाए रखने में सक्षम नहीं थी। इस पतन के प्रमुख कारकों का विश्लेषण करते हुए इसके निहितार्थों पर चर्चा कीजिये । (250 शब्द)

12 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • 1980 के दशक में सोवियत संघ की महाशक्ति की स्थिति में गिरावट का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • गिरावट के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिये।
  • गिरावट के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
  • गिरावट के बाद बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था के उदय पर चिंतन के साथ निष्कर्ष लिखिये।

भूमिका:

वर्ष 1922 में स्थापित सोवियत संघ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद महाशक्ति का दर्जा प्राप्त कर चुका था, जो शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ प्रतिद्वंदी था। इस अवधि के दौरान महत्त्वपूर्ण औद्योगिक और सैन्य विकास हुए, जिससे सोवियत संघ को पूर्वी यूरोप को प्रभावित करने तथा अंतरिक्ष एवं परमाणु हथियारों के निर्माण में प्रतिस्पर्द्धा करने का मौका मिला। हालाँकि 1980 के दशक तक सोवियत साम्यवादी व्यवस्था विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और भू-राजनीतिक कारकों के कारण अपनी महाशक्ति की स्थिति को बनाए नहीं रख सकी।

मुख्य भाग:

गिरावट के प्रमुख कारक:

  • आर्थिक स्थिरता: सोवियत अर्थव्यवस्था केंद्रीय रूप से नियोजित प्रणाली में निहित अक्षमताओं से ग्रस्त थी। बाज़ार तंत्र की कमी के कारण संसाधनों का खराब आवंटन के साथ ही उपभोक्ता वस्तुओं में लगातार कमी आई।
  • तकनीकी पिछड़ापन: सोवियत संघ तकनीकी नवाचार, विशेष रूप से कंप्यूटिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स में पश्चिम देशों का सामना न कर सका। इस तकनीकी अंतर के कारण नागरिक उद्योगों तथा सैन्य क्षमताएँ दोनों ही बाधित हुई, जिससे वैश्विक क्षेत्र में सोवियत संघ की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त कम हो गई।
  • राजनीतिक भ्रष्टाचार और नौकरशाही: राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्टाचार और अक्षमता से ग्रस्त थी। नामकरण प्रणाली ने साम्यवादी अभिजात वर्ग के विशेषाधिकारों को मज़बूत किया, जिससे आम नागरिकों में व्यापक असंतोष पैदा हुआ।
  • सैन्य विस्तार: संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा से सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को भारी वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ा। देश के सकल घरेलू उत्पाद का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा सैन्य-औद्योगिक क्षेत्र में खर्च किया गया, जिससे आवश्यक घरेलू आवश्यक संसाधनों में कमी आई।
  • वैचारिक कठोरता: पश्चिम देशों ने वैश्वीकरण और तकनीकी उन्नति को अपनाया, जबकि सोवियत संघ मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिद्धांतों में उलझा रहा जिसके कारण आर्थिक तथा राजनीतिक सुधारों में बाधा डाली जिसने सोवियत संघ को वैश्विक आर्थिक रुझानों से अलग-थलग कर दिया।
  • राष्ट्रवाद और जातीय तनाव का उदय: 1980 के दशक के दौरान सोवियत गणराज्यों के भीतर राष्ट्रवादी गतिविधियाँ तीव्र हुई। जातीय और क्षेत्रीय शिकायतों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में केंद्र सरकार की अक्षमता ने स्वायत्तता तथा स्वतंत्रता की बढ़ती मांगों को जन्म दिया।
  • नेतृत्व और सुधार: मिखाइल गोर्बाचेव की ग्लासनोस्ट (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) की नीतियों का उद्देश्य सोवियत प्रणाली को पुनर्जीवित करना था, लेकिन अनजाने में इसके पतन को गति मिली। जबकि ग्लासनोस्ट ने राजनीतिक खुलेपन और पारदर्शिता को प्रोत्साहित किया, इसने गहरे मुद्दों को भी उजागर किया तथा सार्वजनिक आलोचना को बढ़ाया। पेरेस्त्रोइका के आर्थिक सुधार त्वरित परिणाम देने में विफल रहे, जिससे आर्थिक गिरावट में और भी वृद्धि आई।

गिरावट के निहितार्थ:

  • शीत युद्ध का अंत: सोवियत संघ के पतन के साथ ही शीत युद्ध प्रभावी रूप से समाप्त हो गया, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व वाली एकध्रुवीय दुनिया विकसित हुई।
  • नए राज्यों का उदय: सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप कई स्वतंत्र गणराज्यों का उदय हुआ। इस विघटन ने यूरेशिया के राजनीतिक मानचित्र को नया आकार दिया और राष्ट्रीय पहचान, क्षेत्रीय विवाद तथा आर्थिक बदलावों के मुद्दों सहित भू-राजनीतिक गतिशीलता एवं चुनौतियों का एक नया समूह विकसित हुआ।
  • आर्थिक और राजनीतिक बदलाव: पूर्व सोवियत गणराज्यों ने आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के विभिन्न मार्गों पर कदम रखा। जबकि कुछ (जैसे बाल्टिक राज्य) सफलतापूर्वक बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं तथा लोकतांत्रिक शासन में परिवर्तित हो गए, अन्य आर्थिक कठिनाई, भ्रष्टाचार एवं निरंकुशता से जूझते रहे।
  • वैश्विक आर्थिक प्रभाव: साम्यवादी ब्लॉक के अंत ने व्यापार और निवेश के लिये नए बाज़ार तथा अवसर प्रदान किये, जिसने विश्व अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण में योगदान दिया।

निष्कर्ष:

सोवियत संघ के पतन के साथ उत्पन्न हुई शक्ति ने चीन, भारत और यूरोपीय संघ जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के उदय का मार्ग प्रशस्त किया। इन संस्थाओं ने वैश्विक मामलों में अपना प्रभुत्त्व स्थापित करना शुरू कर दिया, जिससे बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के उदय में योगदान मिला।