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  • 12 Jul 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-5: प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध दोनों में ही जर्मनी की गतिविधियाँ एवं नीतियाँ महत्त्वपूर्ण कारक थीं, लेकिन केवल इन्हीं को ज़िम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • विश्व युद्धों के दौरान व्यापक भू-राजनीतिक गतिशीलता का वर्णन करके उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • प्रथम विश्व और द्वितीय विश्व युद्ध दोनों में जर्मनी की केंद्रीय भूमिका का उल्लेख कीजिये।
    • उस अवधि के दौरान अन्य देशों की भूमिकाओं और गठबंधनों एवं राष्ट्रीय हितों के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    भूमिका:

    प्रथम विश्व और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी की गतिविधियाँ तथा नीतियाँ वास्तव में महत्त्वपूर्ण थीं। हालाँकि जर्मनी को पूरी तरह से ज़िम्मेदार ठहराना व्यापक भू-राजनीतिक गतिशीलता एवं अन्य देशों द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं को नज़रअंदाज़ करना है।

    मुख्य बिंदु:

    प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका

    • सैन्यवाद और गठबंधन प्रणालियाँ:
      • जर्मनी की आक्रामक सैन्य नीतियों और सैन्य क्षमताओं में महत्त्वपूर्ण निवेश ने यूरोपीय शक्तियों के बीच तनाव तथा प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया। गठबंधन प्रणाली में जर्मनी की भागीदारी, विशेष रूप से ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं इटली के साथ ट्रिपल एलायंस ने एक बड़े संघर्ष के लिये अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया। इन गठबंधनों का अर्थ था कि कोई भी क्षेत्रीय विवाद कई शक्तियों को शामिल करते हुए पूर्ण रूप से युद्ध में बदल सकता था।
    • आर्कड्यूक फ्रांज़ फर्डिनेंड की हत्या:
      • वर्ष 1914 में एक सर्बियाई राष्ट्रवादी द्वारा ऑस्ट्रिया-हंगरी के आर्कड्यूक फ्रांज़ फर्डिनेंड की हत्या ने एक शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया को जन्म दिया।
      • सर्बिया के विरुद्ध ऑस्ट्रिया-हंगरी का सख्त रुख के के साथ जर्मनी का समर्थन, जिसमें "ब्लैंक चेक" आश्वासन भी शामिल था, ने संघर्ष को एक व्यापक युद्ध में बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • श्लिफेन योजना और बेल्जियम पर आक्रमण:
      • जर्मनी द्वारा श्लिफेन योजना का क्रियान्वयन, जिसमें फ्राँस को आसानी से पराजित करने के लिये तटस्थ बेल्जियम पर आक्रमण करना शामिल था, ने संघर्ष को व्यापक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • इस आक्रमण ने ब्रिटेन को युद्ध में शामिल कर अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया, जिससे जर्मनी की आक्रामक सैन्य रणनीतियों की तत्परता प्रदर्शित हुई।

    द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका

    • नाज़ीवाद का उदय और हिटलर की नीतियाँ :
      • एडोल्फ हिटलर और जर्मनी में नाज़ी शासन के उदय ने अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल दिया।
      • हिटलर की विस्तारवादी नीतियों, जिसमें राइनलैंड का पुनः सैन्यीकरण, ऑस्ट्रिया के साथ एन्सक्लस और चेकोस्लोवाकिया में मांगें शामिल थीं, ने स्पष्ट आक्रामकता तथा प्रथम विश्व युद्ध के बाद की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति स्पष्ट उपेक्षा को प्रदर्शित किया।
    • वर्साय की संधि :
      • प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर लगाई गई वर्साय की संधि की दंडात्मक शर्तों से असंतोष और आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हुई।
      • इस संधि के कठोर प्रतिपूर्ति और क्षेत्रीय नुकसान से राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हुई जिससे हिटलर एवं नाज़ियों के उदय में मदद मिली, जो द्वितीय विश्व युद्ध का आधार बना ।
    • पोलैंड पर आक्रमण: द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण सितंबर 1939 में जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण था।

    प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध में अन्य देशों की भूमिकाएँ

    प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918)

    • ऑस्ट्रिया-हंगरी
      • आर्कड्यूक फर्डिनेंड की हत्या: एक सर्बियाई राष्ट्रवादी द्वारा आर्कड्यूक फ्रांज़ फर्डिनेंड की हत्या युद्ध का कारण बनी।
      • आक्रामक रुख: ऑस्ट्रिया-हंगरी द्वारा सर्बिया पर आक्रमण की घोषणा से युद्ध की शुरुआत हुई।
    • रूस
      • सर्बिया के लिये समर्थन: सर्बिया की रक्षा के लिये रूस की प्रतिबद्धता ने तनाव को बढ़ा दिया और ऑस्ट्रिया-हंगरी के खिलाफ लामबंदी में वृद्धि हुई।
    • ब्रिटेन
      • एंटेंटे कॉर्डियाल: फ्राँस और रूस के साथ ब्रिटेन के गठबंधन (ट्रिपल एंटेंटे) का उद्देश्य जर्मन शक्ति को संतुलित करना था।
    • फ्राँस
      • बदला लेने की इच्छा: फ्राँस ने फ्रेंको-प्रुशियन युद्ध में अलसेस-लोरेन को वापस पाने की कोशिश के परिणाम स्वरुप युद्ध में उसका प्रवेश हुआ।
      • सैन्य गठबंधन: रूस और ब्रिटेन के साथ फ्राँस के सैन्य गठबंधन मित्र राष्ट्रों के गठन में महत्त्वपूर्ण थे।
    • इटली
      • पक्ष बदलना: इटली, जो शुरू में जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी के साथ त्रिपक्षीय गठबंधन का हिस्सा था, वर्ष 1915 में क्षेत्रीय वादों से प्रेरित होकर मित्र राष्ट्रों में शामिल हो गया।

    द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945)

    • इटली
      • फासीवादियों का विस्तारवाद: मुसोलिनी के नेतृत्व में इटली ने अपने क्षेत्र का विस्तार करने का प्रयास में जर्मनी के साथ मिलकर फ्राँस और बाल्कन पर आक्रमण किया।
      • धुरी शक्तियों के रूप में भागीदारी: एक प्रमुख धुरी शक्ति के रूप में इटली ने युद्ध को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • जापान
      • साम्राज्यवादी महत्त्वकांक्षाएँ: चीन और प्रशांत क्षेत्र में जापान के आक्रामक विस्तार का उद्देश्य एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना था, जिसके फलस्वरूप पश्चिमी शक्तियों के साथ संघर्ष हुआ।
      • पर्ल हार्बर पर हमला: वर्ष 1941 में अमेरिका पर जापान के हमले के साथ ही अमेरिका युद्ध में शामिल हो गया, जिससे युद्ध की गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका
      • भागीदारी के प्रति तटस्थता: शुरू में तटस्थ रहते हुए, अमेरिका ने मित्र राष्ट्रों को भौतिक रूप से सहायता प्रदान की।
      • निर्णायक सैन्य कार्रवाई: पर्ल हार्बर पर हमले के बाद, अमेरिका ने धुरी शक्तियों को हराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से यूरोप और प्रशांत क्षेत्र में।
    • सोवियत संघ
      • अनाक्रमण संधि: जर्मनी के साथ मोलोटोव-रिबेंट्रॉप संधि के द्वारा पूर्वी यूरोप के विभाजन की अनुमति दे गई, लेकिन वर्ष 1941 में जर्मनी द्वारा सोवियत संघ पर आक्रमण ने सोवियत संघ को धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध कर दिया।
    • ब्रिटेन
      • जर्मनी के खिलाफ अवज्ञा: फ्राँस के पतन के बाद ब्रिटेन धुरी शक्तियों के खिलाफ अकेले खड़ा था, और जर्मनी की विस्तारवादी नीति का विरोध कर रहा था।
      • रणनीतिक गठबंधन: मित्र देशों के गठबंधन के लिये ब्रिटेन के गठबंधन और अन्य देशों के साथ समन्वय आवश्यक थे।

    निष्कर्ष:

    इस प्रकार गठबंधनों, आर्थिक संकट, राष्ट्रीय हितों और कई देशों की कार्रवाइयों के अंतर्संबंध ने इन वैश्विक युद्ध के विस्तार में योगदान दिया। वैश्विक समुदाय को अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता के लिये खतरा उत्पन्न करने वाली विस्तारवादी नीतियों एवं सत्तावादी शासन के उदय के प्रति सतर्क रहना चाहिये।

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