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दिवस- 44: भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। देश में कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं की प्रभावशीलता में सुधार के लिये कौन-से सुधार आवश्यक हैं? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

27 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • कॉर्पोरेट प्रशासन के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन की चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार के लिये आवश्यक सुधारों पर प्रकाश डालिये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

कॉर्पोरेट प्रशासन नियमों और प्रक्रियाओं का एक समूह है जो यह बताता है कि किसी कंपनी का प्रबंधन किस प्रकार होता है। कॉर्पोरेट प्रशासन का प्राथमिक लक्ष्य कॉर्पोरेट लालच को रोकना और ज़िम्मेदार तथा पारदर्शी व्यावसायिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना है। भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन निवेशकों का विश्वास बनाए रखने के साथ नैतिक व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों में सुधार के बावजूद इसमें कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो शासन की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं।

मुख्य भाग:

भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन की प्रमुख चुनौतियाँ

  • बोर्ड संरचना और स्वतंत्रता
    • बोर्ड सदस्यों का चयन एवं कार्यकाल: बोर्ड सदस्यों की चयन प्रक्रिया एवं कार्यकाल की अवधि का दुरुपयोग किया जा सकता है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2016 में टाटा-मिस्त्री विवाद से स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति और बोर्ड की स्थिरता से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश पड़ा था।
    • निदेशकों की स्वतंत्रता: प्रवर्तकों या प्रबंधन के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण निदेशकों की स्वतंत्रता से अक्सर समझौता हो जाता है।
      • वर्ष 2018 में आईसीआईसीआई बैंक विवाद इस मुद्दे का उदाहरण है, जहाँ सीईओ द्वारा लाभ के बदले ऋण की मंजूरी देने से निदेशक की स्वतंत्रता के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं थीं।
  • प्रदर्शन मूल्यांकन और जवाबदेही
    • निदेशकों का मूल्यांकन: बोर्ड के प्रदर्शन के मूल्यांकन की प्रक्रिया पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ होनी चाहिये।
      • सेबी द्वारा वर्ष 2018 में कंपनियों को मूल्यांकन मानदंड प्रकट करने के निर्देश का उद्देश्य इस चुनौती का समाधान करना था। हालांकि यह सुनिश्चित करना कि निदेशकों के प्रदर्शन के मूल्यांकन से सार्थक सुधार हो, एक चुनौती बनी हुई है।
    • स्वतंत्र निदेशकों को हटाना: स्वतंत्र निदेशकों को चिंता जताने या असहमति जताने के कारण नहीं हटाया जाना चाहिये।
      • अधिग्रहण पर चिंता जताने के बाद वर्ष 2018 में फोर्टिस हेल्थकेयर से एक स्वतंत्र निदेशक को हटा दिया जाना इस मुद्दे को स्पष्ट करता है।
  • हितों का टकराव और पारदर्शिता
    • हितों का टकराव: संबंधित पक्ष लेनदेन और कार्यकारी मुआवजा से हितों का टकराव हो सकता है।
      • वर्ष 2018 में सेबी द्वारा संबंधित पक्ष लेनदेन का खुलासा करने का निर्देश, इस मुद्दे को हल करने की दिशा में एक कदम था। हालाँकि हितों का टकराव अभी भी व्याप्त है, जिससे निर्णय निर्माण प्रभावित हो सकता है।
    • पारदर्शिता और डेटा संरक्षण: पारदर्शिता सुनिश्चित करना और संवेदनशील डेटा की सुरक्षा करना महत्त्वपूर्ण है।
      • ग्राहकों के डेटा की सुरक्षा के क्रम में बैंकों को दिये गए आरबीआई के 2018 के निर्देश में बेहतर डेटा सुरक्षा प्रथाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
  • संस्थापक/प्रवर्तक प्रभाव और शासन संरचना
    • संस्थापकों/प्रवर्तकों की व्यापक भूमिका: संस्थापकों या प्रवर्तकों की भूमिकाएँ अक्सर व्यापक होती हैं, जिससे हितों के टकराव के साथ पारदर्शिता में कमी आ सकती है।
      • सेबी का 2019 का निर्देश (जिसमें संस्थापक को बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त करने के कारणों को बताने का निर्देश दिया गया है), इस चुनौती का समाधान करता है, लेकिन संस्थापकों/प्रवर्तकों का प्रभाव एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है।
    • व्यावसायिक संरचना और आंतरिक संघर्ष: संघर्षों से बचने के लिये एक स्पष्ट और अच्छी तरह से परिभाषित व्यावसायिक संरचना आवश्यक है।
      • वर्ष 2019 में इंडिगो एयरलाइंस में सीईओ नियुक्तियों को लेकर हुआ सार्वजनिक विवाद प्रभावी संघर्ष समाधान तंत्र की आवश्यकता को दर्शाता है।
  • नैतिक कदाचार और विनियामक प्रवर्तन
    • इनसाइडर ट्रेडिंग: इनसाइडर ट्रेडिंग में गोपनीय जानकारी का इस्तेमाल निजी लाभ के लिये किया जाता है और कमज़ोर जाँच तंत्र अपराधियों को न्याय से बचने में सक्षम बना सकता है। इस चुनौती से निपटने के लिये सेबी के जाँच दृष्टिकोण को मज़बूत करना ज़रूरी है।
    • हितधारकों के प्रति दायित्व: कंपनियों को प्रमोटरों या प्रबंधन के हितों की तुलना में हितधारकों के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
      • कुप्रबंधन और वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में विफलता के कारण उत्पन्न वर्ष 2019 का IL&FS संकट, हितधारक-केंद्रित शासन के महत्त्व को रेखांकित करता है।

कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार के लिये आवश्यक सुधार

  • बोर्ड की स्वतंत्रता को मज़बूत करना:
    • कोटक पैनल और कुमार मंगलम बिड़ला समिति की सिफारिशों का पालन करते हुए, स्वतंत्र निदेशकों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित करने के साथ अध्यक्ष और सीईओ की भूमिकाओं को अलग करना चाहिये।
  • पारदर्शिता और प्रकटीकरण बढ़ाना:
    • कोटक पैनल और कुमार मंगलम बिड़ला समिति की सलाह के अनुसार कठोर वित्तीय रिपोर्टिंग लागू करने के साथ वित्तीय और गैर-वित्तीय दोनों प्रकार के प्रदर्शन का खुलासा करना चाहिये।
  • शेयरधारकों को सशक्त बनाना और जवाबदेही में सुधार करना:
    • कोटक पैनल और टीके विश्वनाथन समिति की सिफारिशों के अनुरूप शेयरधारकों की सक्रियता का समर्थन करने के साथ जवाबदेही बढ़ाने के लिये प्रॉक्सी सलाहकार सेवाओं का उपयोग करना चाहिये।
  • जोखिम प्रबंधन और नैतिक आचरण को मज़बूत बनाना:
    • कोटक पैनल और टीके विश्वनाथन समिति के दिशानिर्देशों के अनुरूप जोखिम प्रबंधन समितियों की स्थापना करने के साथ मुखबिरों की सुरक्षा के साथ व्यापक आचार संहिता विकसित करनी चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें विनियमनों को मज़बूत करना, पारदर्शिता बढ़ाना और बोर्ड की प्रभावशीलता में सुधार करना शामिल है। इन सुधारों को लागू करके भारत एक अधिक मज़बूत और नैतिक कॉर्पोरेट प्रशासन वातावरण को बढ़ावा दे सकता है जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ने के साथ धारणीय व्यावसायिक प्रथाओं को बढ़ावा मिलेगा।