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27 Aug 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 4
सैद्धांतिक प्रश्न
दिवस- 44: नैतिक दुविधा एक दर्पण की तरह है जो हमारे वास्तविक नैतिक दिशा-निर्देशों को दर्शाती है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- नैतिक दुविधा के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- नैतिक दुविधाओं की नैतिक दिशासूचक के रूप में चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
नैतिक दुविधा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को ऐसे दो या दो से अधिक परस्पर विरोधी नैतिक विकल्पों का सामना करना पड़ता है, जहाँ एक नैतिक सिद्धांत का पालन करने से दूसरे का उल्लंघन हो सकता है। इस परिदृश्य में अक्सर व्यक्तियों के मूल्यों और विश्वासों का परीक्षण होता है, जिससे उनकी वास्तविक नैतिक प्रवृत्ति (नैतिक मानकों का आंतरिक सेट जो उनके निर्णयों और कार्यों का मार्गदर्शन करता है) प्रकट होती है।
मुख्य भाग:
नैतिक दुविधाएँ नैतिक दिशासूचक के रूप में:
- प्रमुख मूल्यों को महत्त्व:
- नैतिक दुविधाओं के संबंध में व्यक्तियों को कुछ मूल्यों को अन्य मूल्यों से ऊपर प्राथमिकता देनी पड़ती है।
- सत्येंद्र दुबे (एक युवा भारतीय इंजीनियरिंग सेवा अधिकारी) ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में भ्रष्टाचार को उजागर करने के क्रम में व्यक्तिगत जोखिम के बावजूद संगठनात्मक निष्ठा की अपेक्षा सच्चाई को प्राथमिकता दी।
- नैतिक दुविधाओं के संबंध में व्यक्तियों को कुछ मूल्यों को अन्य मूल्यों से ऊपर प्राथमिकता देनी पड़ती है।
- नैतिक सत्यनिष्ठा का परीक्षण:
- दुविधाएँ व्यक्तियों को उनके निर्दिष्ट विश्वासों के अनुरूप कार्य करने के लिये चुनौती उत्पन्न करती हैं। जब किसी कठिन विकल्प का सामना करना पड़ता है तो लिये गए निर्णय से पता चल सकता है कि किसी व्यक्ति के कार्य उसके निर्दिष्ट नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप हैं या नहीं, इस प्रकार यह नैतिक सत्यनिष्ठा की परीक्षा के रूप में कार्य करता है।
- अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिये जाने जाने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने अपने कॅरियर के दौरान कई भ्रष्टाचार संबंधी घोटालों को उजागर किया, बावजूद इसके कि उन्हें कई स्थानांतरणों और धमकियों का सामना करना पड़ा।
- दुविधाएँ व्यक्तियों को उनके निर्दिष्ट विश्वासों के अनुरूप कार्य करने के लिये चुनौती उत्पन्न करती हैं। जब किसी कठिन विकल्प का सामना करना पड़ता है तो लिये गए निर्णय से पता चल सकता है कि किसी व्यक्ति के कार्य उसके निर्दिष्ट नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप हैं या नहीं, इस प्रकार यह नैतिक सत्यनिष्ठा की परीक्षा के रूप में कार्य करता है।
- नैतिक अनुकूलन पर प्रकाश डालना:
- नैतिक दुविधाओं में प्रायः जटिल एवं संदर्भ-विशिष्ट परिस्थितियाँ शामिल होती हैं, जहाँ किसी एक सिद्धांत के कठोर पालन से अवांछनीय परिणाम मिल सकते हैं।
- वर्ष 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले में आईपीएस अधिकारी छाया शर्मा ने जाँच में तेजी लाने और न्याय सुनिश्चित करने के लिये व्यावहारिक निर्णयों के साथ कानूनी प्रोटोकॉल के सख्त पालन को संतुलित करते हुए नैतिक अनुकूलन का परिचय दिया।
- नैतिक दुविधाओं में प्रायः जटिल एवं संदर्भ-विशिष्ट परिस्थितियाँ शामिल होती हैं, जहाँ किसी एक सिद्धांत के कठोर पालन से अवांछनीय परिणाम मिल सकते हैं।
- छिपे हुए पूर्वाग्रहों को उजागर करना:
- नैतिक दुविधाओं को सुलझाने में पूर्वाग्रह या पूर्वधारणाएँ सामने आ सकती हैं।
- सबरीमाला मंदिर प्रवेश विवाद (2018) में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का केरल में व्यापक विरोध हुआ, जिससे गहरी जड़ें जमाए हुए लैंगिक पूर्वाग्रह के परिवर्तन के प्रति सांस्कृतिक प्रतिरोध उजागर हुआ।
- नैतिक दुविधाओं को सुलझाने में पूर्वाग्रह या पूर्वधारणाएँ सामने आ सकती हैं।
निष्कर्ष:
नैतिक दुविधाओं का सामना करने के लिये किसी को अपने वास्तविक मूल्यों को समझना चाहिये, अपने कार्यों के परिणामों का आकलन करना चाहिये और विविध दृष्टिकोणों पर विचार करना चाहिये। परस्पर विरोधी नैतिक विकल्पों के समाधान से न केवल नैतिक ढाँचों के प्रति पालन प्रदर्शित होता है बल्कि व्यक्ति के सच्चे चरित्र एवं नैतिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता भी प्रकट होती है, पारदर्शिता को समर्थन मिलता है और सार्वजनिक कल्याण को प्राथमिकता मिलती है।