26 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता और विवेक के संकट का संक्षिप्त परिचय के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- कीजिये कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों का त्याग किये बिना विवेक के संकट को हल करने में कैसे मदद करती है।
- अपने जीवन में एक ऐसी घटना का वर्णन कीजिये, जब आप इसी तरह किसी संकट का सामना कर रहे थे और आपने उसका समाधान किस प्रकार किया।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय :
भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) से तात्पर्य अपनी और दूसरों की भावनाओं को पहचानने, समझने तथा प्रबंधित करने की क्षमता से है। विवेक का संकट तब होता है जब कोई व्यक्ति नैतिक दुविधा का सामना करता है, अपने नैतिक विश्वासों के साथ संघर्ष करने वाले कार्यों के बीच चयन करने के लिये संघर्ष करता है। विवेक के संकट को हल करने में EI महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्तियों को उनके नैतिक मूल्यों से समझौता किये बिना जटिल परिस्थितियों से निपटने के लिये मार्गदर्शन करता है।
मुख्य भाग:
भावनात्मक बुद्धिमत्ता से विवेक के संकट का समाधान:
- आत्म-जागरूकता: आत्म-जागरूकता व्यक्तियों को दुविधा के प्रति अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को पहचानने में मदद करती है, जिससे उन्हें अपनी समस्या उन मूल्यों को समझने में मदद मिलती है जिन्हें चुनौती दी जाती है।
- ज़िला कलेक्टर के रूप में, एक अधिकारी को आर्थिक लाभ प्रदान करने वाली एक निर्माण परियोजना को मंज़ूरी देने के लिये दबाव का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके कारण कई निवासियों को विस्थापित करने की ज़रूरत थी। उनके भावनात्मक संघर्ष को पहचानते हुए, अधिकारी ने महसूस किया कि उनकी असुविधा प्रभावित परिवारों के प्रति निष्पक्षता और ज़िम्मेदारी के मूल्यों में निहित थी।
- स्व-नियमन: ईआई व्यक्तियों को अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है, आवेगपूर्ण निर्णयों को रोकता है जो नैतिक मानकों का उल्लंघन कर सकते हैं। यह धैर्य और विचारशील विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करता है।
- ऐसी स्थिति में जहाँ किसी व्हिसल ब्लोअर को अनैतिक प्रथाओं की रिपोर्ट करने की आवश्यकता होती है, स्व-नियमन भय और चिंता को प्रबंधित करने में मदद करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तिगत जोखिम के बावजूद सही कार्रवाई की जाए।
- सहानुभूति: सहानुभूति व्यक्तियों इस विचार पर ज़ोर देता है कि उनके निर्णय दूसरों को कैसे प्रभावित करेंगे, जिससे दुविधा को हल करने हेतु एक अधिक व्यापक और मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सकता है।
- एक शिक्षक को पता चलता है कि एक छात्र ने परीक्षा में नकल की है। छात्र की स्थिति के साथ सहानुभूति रखते हुए, शिक्षक छात्र को दंडित करने के बजाय व्यवहार के मूल कारण, जैसे व्यक्तिगत या शैक्षणिक दबाव को संबोधित करना चुन सकता है।
- सामाजिक कौशल: ईआई खुले और ईमानदार संचार की सुविधा प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति दूसरों के साथ नैतिक दुविधा पर चर्चा कर सकता है, सलाह ले सकता है और निर्णय लेने से पहले विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार कर सकता है।
- कॉर्पोरेट जगत में, भ्रष्ट आचरण में संलग्न होने के दबाव का सामना करने वाले नेता, सहकर्मियों के बीच नैतिक आचरण के लिये समर्थन जुटाने हेतु सामाजिक कौशल का उपयोग कर सकता है, जिससे अनैतिक मांगों के खिलाफ सामूहिक रुख तैयार हो सकता है।
- प्रेरणा: ईआई नैतिक सिद्धांतों का पालन करने के लिये आंतरिक प्रेरणा को बढ़ावा देता है, भले ही समझौता करने के लिये बाहरी दबावों का सामना करना पड़े। यह दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
- पर्यावरणीय नैतिकता और सतत् विकास के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के कारण, एक पर्यावरण अधिकारी अपने वरिष्ठों के दबाव के बावजूद, किसी हानिकारक परियोजना को मंज़ूरी देने से इंकार कर सकता है।
विवेक के संकट का उदाहरण:
- मैं एक कंपनी में टीम लीडर था और मुझे एक ऐसे कर्मचारी के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिये कहा गया जो हमेशा से ही वफादार और मेहनती रहा है। हालाँकि इस कर्मचारी ने हाल ही में एक ऐसी गलती की जिससे कंपनी को काफी पैसे का नुकसान हुआ। प्रबंधन ने मनोबल बनाए रखने के लिये सकारात्मक समीक्षा देने का सुझाव दिया, लेकिन मैं जानता था कि गलती के बारे में सच बोलना कंपनी की अखंडता और भविष्य के लिये ज़रूरी था।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता से संकट का निपटन:
- आत्म-जागरूकता: मैंने अपनी भावनाओं को पहचाना और ईमानदारी तथा वफ़ादारी के बीच चुनाव करने में जो असहजता महसूस की, उसकी पहचान करना। इस आंतरिक संघर्ष को समझने से मुझे स्थिरता में मदद मिली।
- आत्म-नियंत्रण: आवेगपूर्ण तरीके से प्रतिक्रिया करने के बजाय, मैंने दोनों विकल्पों के निहितार्थों के बारे में सोचने के लिये समय लिया। साथ ही मैंने भावनाओं से प्रभावित होकर जल्दबाज़ी में कोई निर्णय लेने से परहेज किया।
- सहानुभूति: मैंने कर्मचारी की भावनाओं और दृष्टिकोणों पर विचार किया, यह समझते हुए कि नकारात्मक समीक्षा का उनके करियर पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। मैंने कंपनी की पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता के प्रति भी सहानुभूति जताई।
- सामाजिक कौशल: मैंने कर्मचारी और प्रबंधन दोनों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद किया। मैंने परिस्थिति को बहुत ही नाज़ुक ढंग से समझाया, कर्मचारी के योगदान को स्वीकार किया एवं साथ ही होने वाली गलती तथा उसके परिणामों पर भी चर्चा की।
- प्रेरणा: मैंने कंपनी की अखंडता को बनाए रखने और ईमानदारी का वातावरण बनाने के दीर्घकालिक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित (यहाँ तक कि अल्पकालिक चुनौतियों का सामना करने पर भी) रखा।
समाधान: मैंने अपने मूल्यांकन में ईमानदार रहने का फैसला किया। मैंने कर्मचारी के पिछले योगदानों को स्वीकार कर उन्हें गलतियों से सीखने के तरीके सुझाए, उनके सुधार के लिये समर्थन की पेशकश की। इस दृष्टिकोण ने कंपनी के नैतिक मानकों को बनाए रखा, साथ ही कर्मचारी के प्रति निष्पक्ष भी रहा, यह दर्शाता है कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता नैतिक सिद्धांतों का त्याग किये बिना विवेक के संकट को हल करने में कैसे मदद कर सकती है।