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26 Aug 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 43: वर्तमान संदर्भ में यह उद्धरण आपके लिये किस प्रकार प्रासंगिक है?
"केवल उसी सिद्धांत के अनुसार कार्य करो जिसके द्वारा आप एक ही समय में यह इच्छा कर सकते हो कि यह एक सार्वभौमिक नियम बन जाए।" - इमैनुअल कांट (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उद्धरण की व्याख्या संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये।
- वर्तमान संदर्भ में उद्धरण के अर्थ और प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
इमैनुअल कांट का कथन, "केवल उसी सिद्धांत के अनुसार कार्य करो जिसके द्वारा आप एक ही समय में यह इच्छा कर सकते हो कि यह एक सार्वभौमिक नियम बन जाए," कांटियन नैतिकता में ऐसे मौलिक सिद्धांत को रेखांकित करता है जिसे श्रेणीबद्ध अनिवार्यता के रूप में जाना जाता है। यह सिद्धांत बल देता है कि किसी को केवल उन सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिये जिन्हें बिना किसी विरोधाभास के सार्वभौमिक रूप से लागू किया जा सकता है। संक्षेप में, यह कथन यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि कार्य सार्वभौमिक सिद्धांतों (ऐसे कार्य जिनका पालन कोई व्यक्ति सभी से करवाना चाहेगा) पर आधारित हों।
मुख्य भाग:
वर्तमान संदर्भ में उद्धरण का अर्थ और प्रासंगिकता:
- नीति-निर्माण:
- राजनीति में सार्वभौमिक प्रयोज्यता वाली नीतियों के विकास के लिये कांट का सिद्धांत अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भ्रष्टाचार को रोकने के लिये मानदंड और मानक स्थापित करने वाले भ्रष्टाचार विरोधी ढाँचे को डिज़ाइन करने से यह सुनिश्चित होता है कि ऐसी नीतियाँ निष्पक्ष हों तथा वैश्विक स्तर पर उनका समर्थन किया जा सके।
- कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व:
- कांट का सिद्धांत कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व का मार्गदर्शन करता है तथा व्यवसायों से ऐसी प्रथाओं को अपनाने का आग्रह करता है जिन्हें सार्वभौमिक रूप से लागू किया जा सके।
- अपने परिचालन में धारणीय प्रथाओं तथा निष्पक्ष व्यापार को अपनाने वाली कंपनियाँ व्यावसायिक नैतिकता के एक ऐसे मॉडल में योगदान दे रही हैं जिसे वैश्विक स्तर पर अपनाया जा सकता है, जिससे नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव कम हो सकते हैं।
- नैतिक उपभोक्तावाद:
- नैतिक उपभोक्तावाद में नैतिक विचारों (जैसे कि उत्पादों का लोगों, पशुओं और पर्यावरण पर प्रभाव) के आधार पर निर्णय लेना शामिल है।
- नैतिक उपभोक्तावाद का उदय कांट के सिद्धांत के अनुरूप है, क्योंकि इसमें उपभोक्ताओं और व्यवसायों को ऐसे विकल्प चुनने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है जिन्हें सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जा सके।
- विविधता का सम्मान:
- समावेशी और सम्मानजनक प्रथाओं को बढ़ावा देने से सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा मिलता है तथा यह सुनिश्चित होता है कि सभी संस्कृतियों के साथ सम्मान एवं गरिमा के साथ व्यवहार किया जाए, जिससे सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य मानक को बढ़ावा मिलता है।
- सांस्कृतिक प्रथाओं का उनकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता के आधार पर मूल्यांकन करना, कांट के सिद्धांत के अनुरूप है।
- वैश्विक मानवाधिकार:
- कांट का सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार प्रयासों का आधार है।
- जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते जैसे समझौते पर्यावरण और मानव अधिकारों की रक्षा के क्रम में सार्वभौमिक मानकों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं तथा यह विचार प्रतिबिंबित करते हैं कि साझा चुनौतियों से निपटने के लिये ऐसे मानकों को वैश्विक स्तर पर लागू किया जाना चाहिये।
- डेटा गोपनीयता और नैतिकता:
- प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कांट का सिद्धांत डेटा के नैतिक संचालन का मार्गदर्शन करता है। डेटा गोपनीयता के लिये सार्वभौमिक मानकों को लागू करना (जैसे कि सामान्य डेटा सुरक्षा विनियमन (GDPR) में), यह सुनिश्चित करता है कि डेटा सुरक्षा प्रथाएँ सार्वभौमिक रूप से लागू हों और वैश्विक स्तर पर व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करें।
- समावेशी शिक्षा:
- कांट के सिद्धांत को शैक्षिक नीतियों और प्रथाओं पर लागू किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इससे सार्वभौमिक पहुँच तथा निष्पक्षता को बढ़ावा मिल सके।
- भारत में निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE) 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा को अनिवार्य बनाकर इस सिद्धांत को मूर्त रूप देता है।
- स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुँच:
- सार्वभौमिकता का सिद्धांत स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयासों का समर्थन करता है।
- भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) और आयुष्मान भारत योजना इस सिद्धांत का उदाहरण हैं।
निष्कर्ष:
इमैनुअल कांट का सार्वभौमिकता का सिद्धांत परस्पर संबंधित और विविधतापूर्ण विश्व में नैतिक निर्णय निर्माण का एक प्रकाशस्तंभ बना हुआ है। जैसे-जैसे समाज विकसित होते हैं और जटिल चुनौतियों का सामना करते हैं, वैसे ही इस बात को बल मिलता है कि हमारे कार्य तथा नीतियाँ वैश्विक स्तर पर न्यायसंगत एवं धारणीय हों। सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुसार अपने विकल्पों को संरेखित करने से हम एक ऐसे विश्व को बढ़ावा दे सकते हैं जहाँ निष्पक्षता, सम्मान और ज़िम्मेदारी जैसे मूल्य सर्वोपरि हों।