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दिवस- 41: आप एक आपदा-प्रवण राज्य के ज़िला कलेक्टर हैं, जो अपने लगातार भूस्खलन, वनाग्नि, बादल फटने, अचानक बाढ़ और भूकंप के लिये जाना जाता है। ये अप्रत्याशित और गंभीर प्राकृतिक आपदाएँ इस क्षेत्र के लिये चुनौतीपूर्ण हैं। हाल ही में अचानक बादल फटने से विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन से बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए तथा सड़कों, पुलों एवं विद्युत संयंत्रों सहित बुनियादी ढाँचा व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। इस आपदा में तीर्थयात्रियों, पर्यटकों, स्थानीय लोगों और कई हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों सहित 100,000 से अधिक लोग फँस गए हैं।

आपके अधिकार क्षेत्र में फँसे लोगों में वरिष्ठ नागरिक, अस्पताल में भर्ती मरीज़, महिलाएँ और बच्चे, पैदल यात्री, पर्यटक, सत्तारूढ़ पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष तथा उनका परिवार, पड़ोसी राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं स्थानीय कारागार के कैदी शामिल हैं। इस आपदा की भयावहता से उपलब्ध संसाधन नष्ट हो गए हैं ।

दिये गए परिदृश्य में:

1. बचाव कार्यों को प्राथमिकता देने के लिये आप कौन-से मानदंड अपनाएँगे और आप अपने संसाधनों का किस प्रकार से प्रयोग करेंगे?
2. आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि बचाव प्रयास कुशल हों जिससे ज़रूरतमंद सभी लोगों को समय पर सहायता प्राप्त हो सके?
3. आपके द्वारा लिये गए प्रत्येक निर्णय का आपके ज़िले के लोगों और ज़िला कलेक्टर के रूप में आपकी भूमिका पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अपनी प्राथमिकता वाली बचाव योजना के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।

23 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | केस स्टडीज़

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • इस स्थिति और इसमें शामिल ज़िला कलेक्टर के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • बचाव अभियान को प्राथमिकता देने के मानदंडों का उल्लेख कीजिये।
  • यह सुनिश्चित करने पर प्रकाश डालिये कि बचाव प्रयास समय पर और कुशल हों।
  • प्राथमिकता वाली योजना के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को बताइये।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

आपदा-प्रवण राज्य में, जहाँ अक्सर प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं, आपातकालीन स्थितियों के दौरान ज़िला कलेक्टर की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। जब अचानक बादल फटने से विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन होता है, तो बचाव कार्यों को प्राथमिकता देना एक जटिल कार्य होता है, जिसके लिये नैतिक विचारों, संसाधनों की उपलब्धता तथा विभिन्न स्थितियों की तात्कालिकता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक होता है।

मुख्य भाग:

(a) बचाव प्राथमिकता के लिये मानदंड:

  • भेद्यता और तात्कालिकता: सबसे अधिक जोखिम वाले और सहायता की तत्काल आवश्यकता वाले लोग जैसे कि बुज़ुर्ग, बीमार, महिलाएँ और बच्चों, को प्राथमिकता दीजिये।
  • पहुँच और संसाधन उपलब्धता: संसाधनों की त्वरित और अधिक प्रभावी तैनाती सुनिश्चित करने के लिये उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कीजिये जो अधिक सुलभ हैं।
  • बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक सेवाओं पर प्रभाव: उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दीजिये जहाँ बुनियादी ढाँचे को गंभीर हानि हुई है ताकि चल रहे बचाव और राहत कार्यों के लिये निरंतर पहुँच सुनिश्चित की जा सके।

बचाव प्राथमिकता का आदेश:

  • प्राथमिकता 1: वरिष्ठ नागरिक, बीमार, महिलाएँ और बच्चे
    • ये समूह सबसे अधिक भेद्य हैं और इन्हें अक्सर तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता होती है। हताहतों की संख्या कम करने के लिये उनकी सुरक्षा सर्वोपरि है।
  • प्राथमिकता 2: पैदल यात्री और पर्यटक
    • वे संभवतः एकांत या खतरनाक स्थानों पर होते हैं, जिससे वे चल रही आपदा के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • प्राथमिकता 3: सत्ताधारी पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष, परिवार और अतिरिक्त मुख्य सचिव
    • यद्यपि वे उतने भेद्य नहीं हैं, फिर भी उनका बचाव उनके राजनीतिक महत्त्व के कारण महत्त्वपूर्ण है, जो व्यापक सामाजिक स्थिरता में योगदान दे सकता है।
  • प्राथमिकता 4: स्थानीय जेल में कैदी
    • संभावित कानूनी और सुरक्षा जटिलताओं को रोकने तथा क्षेत्र में कानून तथा व्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उनका बचाव अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

(b) कुशल बचाव प्रयास सुनिश्चित करना:

यह सुनिश्चित करने के लिये कि बचाव प्रयास कुशल और समय पर हों:

  • एक केंद्रीय कमांड सेंटर स्थापित करना:
    • सभी बचाव कार्यों का समन्वय करने के लिये एक केंद्रीय कमांड सेंटर स्थापित करना, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सेना, पुलिस और आपदा प्रतिक्रिया टीमों सहित विभिन्न एजेंसियों के बीच सूचना का सुचारु रूप से प्रवाह हो।
  • प्राथमिकता पर आधारित संसाधनों की तैनाती करना:
    • संसाधनों को व्यवस्थित रूप से आवंटित करना, सबसे कमज़ोर समूहों के आवास वाले क्षेत्रों से शुरुआत करना। सबसे दुर्गम क्षेत्रों में लोगों को एयरलिफ्ट करने के लिये हेलीकॉप्टर का उपयोग करना।
  • वास्तविक समय की निगरानी और संचार:
    • वास्तविक समय में स्थिति की निगरानी के लिये ड्रोन और GPS जैसी तकनीक का उपयोग करना। बचाव दलों के साथ निरंतर संचार बनाए रखना और बदलती परिस्थितियों के आधार पर आवश्यकतानुसार योजनाओं को समायोजित करना।
  • सार्वजनिक संचार और पारदर्शिता:
    • विश्वास बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि गलत सूचना न फैले, बचाव प्रयासों के बारे में नियमित रूप से जनता तथा मीडिया को अपडेट करना। फँसे हुए व्यक्तियों को यह स्पष्ट निर्देश दीजिये कि सहायता आने तक कैसे सुरक्षित रहा जा सकता है ।

(c) प्राथमिकता बचाव योजना के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव:

सकारात्मक प्रभाव:

  • जीवन बचाना:
    • सबसे भेद्य समूहों को प्राथमिकता देने से यह सुनिश्चित होता है कि सबसे बड़े जोखिम वाले लोगों को पहले सहायता मिले, जिससे हताहतों की संख्या कम हो।
  • जनता का विश्वास और सामाजिक स्थिरता:
    • पारदर्शी और सुसंचारित बचाव प्रयास प्रशासन में जनता का विश्वास बढ़ाते हैं, जिससे संकट के दौरान अधिक सामाजिक स्थिरता आती है।
  • कुशल संसाधन उपयोग:
    • सबसे पहले सुलभ क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने से संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है, जिससे समग्र प्रतिक्रिया में तीव्रता आती है।

नकारात्मक प्रभाव:

  • राजनीतिक दबाव और आलोचना:
    • राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की तुलना में भेद्य समूहों को प्राथमिकता देने से राजनीतिक संस्थाओं की आलोचना बढ़ सकती है।
  • नैतिक दुविधाएँ:
    • कुछ समूहों, जैसे कि कैदियों को बाद में बचाव के लिये छोड़ना नैतिक चिंताओं और संभावित कानूनी मुद्दों को उठा सकता है।
  • संसाधनों का अत्यधिक उपयोग:
    • आपदा के पैमाने को देखते हुए, कम पहुँच वाले क्षेत्रों तक पहुँचने में देरी हो सकती है, जिससे उन समूहों के लिये जोखिम बढ़ सकता है।

निष्कर्ष:

इस पैमाने की आपदा के प्रबंधन में, निर्णय लेने की प्रक्रिया को नैतिक सिद्धांतों, आवश्यकता की तात्कालिकता और संसाधनों की व्यावहारिक सीमाओं द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये। जॉन रॉल्स का न्याय का सिद्धांत, जो निष्पक्षता और भेद्य लोगों की सुरक्षा पर ज़ोर देता है, सुझाव देता है कि सबसे अधिक जोखिम वाले लोगों के बचाव को प्राथमिकता देना सार्वजनिक सेवा की नैतिक ज़िम्मेदारी के साथ संरेखित है। इन कारकों को संतुलित करने से यह सुनिश्चित होता है कि बचाव अभियान न केवल कुशल हैं बल्कि ज़िला कलेक्टर की भूमिका की अखंडता को भी बनाए रखते हैं।