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दिवस- 41: आप एक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (PIO) हैं, जो सूचना के अधिकार (RTI) आवेदनों के लिये ज़िम्मेदार है। आरटीआई अधिनियम, 2005 को प्रशासन में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिये बनाया गया है, जो नागरिकों को सरकारी जानकारी तक पहुँचने और अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।

हालाँकि आपके अनुभव में, आपने बड़ी संख्या में ऐसे आरटीआई आवेदन देखे हैं जो पारदर्शिता या सार्वजनिक कल्याण के बजाय व्यक्तिगत या निहित स्वार्थों से प्रेरित प्रतीत होते हैं। कुछ नागरिक संवेदनशील जानकारी तक पहुँच प्राप्त करने के लिये प्रभावशाली हितधारकों की ओर से आरटीआई दायर करते हैं जिसका उपयोग निजी लाभ के लिये किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे कुछ स्व-घोषित आरटीआई कार्यकर्त्ता भी हैं जो अक्सर सरकारी अधिकारियों को डराने या निर्णय निर्माताओं से पैसे वसूलने के प्रयास में आरटीआई दायर करते हैं।

आरटीआई अधिनियम का यह दुरुपयोग न केवल आपके विभाग के कुशल कामकाज को बाधित करता है, बल्कि इससे न्याय या आवश्यक जानकारी चाहने वालों द्वारा दायर वास्तविक आवेदनों की विश्वसनीयता तथा प्रभावशीलता भी सीमित होती है।

दिए गए परिदृश्य में:

1. आप सूचना के मौलिक अधिकार से समझौता किये बिना वास्तविक और गैर-वास्तविक आरटीआई आवेदनों के बीच अंतर करने के लिये क्या रणनीति प्रस्तावित करेंगे?
2. आपके द्वारा प्रस्तावित उपायों के संभावित लाभ और हानि क्या हैं?

23 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | केस स्टडीज़

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • स्थिति के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • प्रस्तावित रणनीति का उल्लेख कीजिये।
  • प्रस्तावित दृष्टिकोण के लाभ और हानि पर प्रकाश डालिये।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 एक महत्त्वपूर्ण विधायी उपकरण है जिसे नागरिकों को सरकारी सूचना तक पहुँच प्रदान करके पारदर्शिता, जवाबदेही और सहभागितापूर्ण लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है। एक लोक सूचना अधिकारी (PIO) के रूप में, इस अधिकार को बनाए रखने तथा प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम के दुरुपयोग से बाधित न होने का कार्य सौंपा गया है।

हालाँकि वास्तविक और गैर-वास्तविक आरटीआई आवेदनों के बीच अंतर करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है, क्योंकि व्यक्तिगत या निहित स्वार्थ वाले व्यक्तियों द्वारा इस प्रावधान का दुरुपयोग अधिनियम की विश्वसनीयता को कम कर सकता है तथा विभाग के प्रभावी कामकाज में बाधा डाल सकता है।

मुख्य बिंदु:

A. प्रस्तावित रणनीतियाँ:

  • सूचना आवेदनों के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करना:
    • RTI आवेदनों के माध्यम से मांगी जा सकने वाली जानकारी के प्रकारों को निर्दिष्ट करने वाले स्पष्ट दिशा-निर्देशों को लागू करना। इसमें उन उदाहरणों को शामिल किया जा सकता है कि जनहित क्या है और क्या तुच्छ या परेशान करने वाला माना जा सकता है।
  • बार-बार किये गए आवेदनों का सूक्ष्म परीक्षण
    • एक ही व्यक्ति या समूह की ओर से बार-बार आने वाले आवेदनों की पहचान करने और उनका परीक्षण करने के लिये एक प्रणाली लागू करना, विशेष रूप से उन आवेदनों की जो अधिकारियों को परेशान करने या गैर-सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किये गए हों।
  • प्रारंभिक मूल्यांकन का संचालन:
    • एक प्रारंभिक मूल्यांकन चरण शुरू करना, जहाँ आवेदनों की संक्षिप्त समीक्षा की जाती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि पूर्ण रूप से संसाधित किये जाने से पहले वे सार्वजनिक हित के मानदंडों को पूरा करते हैं या नहीं।
  • PIO के लिये नियमित प्रशिक्षण
    • RTI आवेदनों को प्रभावी ढंग से कैसे निपटाया जाए, इस पर PIOs के लिये नियमित प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना, ताकि नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन किये बिना गैर-वास्तविक आवेदनों की पहचान और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
  • RTI कार्यकर्त्ताओं और नागरिक समाज के साथ जुड़ें
    • वास्तविक RTI कार्यकर्त्ताओं और नागरिक समाज संगठनों के साथ संवाद स्थापित कर उनके दृष्टिकोण को समझें तथा अधिनियम के दुरुपयोग को हतोत्साहित करने के लिये मिलकर कार्य करना।

संभावित लाभ और नुकसान

  • सूचना संबंधी आवेदनों के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करना
    • लाभ: यह सुनिश्चित करता है कि आवेदन RTI अधिनियम के मूल उद्देश्य के अनुरूप हों, जिससे तुच्छ आवेदनओं में कमी आए और वास्तविक सार्वजनिक चिंताओं पर ध्यान केंद्रित हो।
    • नुकसान: अत्यधिक सख्त दिशा-निर्देश विधि पूर्वक पूछताछ के दायरे को सीमित कर सकते हैं तथा उन्हें प्रतिबंधात्मक माना जा सकता है।
  • बार-बार किये गए आवेदनों का उन्नत परीक्षण:
    • लाभ: यह उत्पीड़न और दुरुपयोग को रोकने में मदद करता है, साथ ही बार-बार किये जाने वाले वैध आवेदनों को उचित तरीके से संबोधित करने की अनुमति प्रदान करता है।
    • नुकसान: यदि पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से इसका निपटन नहीं किया गया तो पक्षपात या भेदभाव के आरोप लग सकते हैं।
  • प्रारंभिक मूल्यांकन का संचालन
    • लाभ: इससे अप्रमाणिक आवेदनों की शीघ्र पहचान हो जाती है तथा वास्तविक अनुरोधों के प्रसंस्करण में आसानी होती है।
    • नुकसान: वैध आवेदनों के प्रसंस्करण समय में देरी हो सकती है और सूचना तक पहुँच में एक अतिरिक्त कानूनी बाधा के रूप में इसे चुनौती दी जा सकती है।
  • PIO के लिये नियमित प्रशिक्षण
    • लाभ: पारदर्शिता और दक्षता के बीच संतुलन बनाने के लिये पीआईओ को जानकारी प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि आरटीआई अधिनियम को अपेक्षित रूप से लागू किया जाए।
    • नुकसान: अकेले प्रशिक्षण से प्रणालीगत मुद्दों का समाधान नहीं हो सकता है तथा इसके लिये महत्त्वपूर्ण समय एवं संसाधनों की आवश्यकता हो सकती है।
  • RTI कार्यकर्त्ताओं और नागरिक समाज के साथ जुड़ना:
    • लाभ: इससे सहयोगात्मक वातावरण को बढ़ावा मिलता है, जहाँ अधिनियम का सम्मान तथा उचित तरीके से इसका उपयोग किया जाता है, जिससे इसकी विश्वसनीयता बनाए रखने में मदद मिलती है।
    • नुकसान: निहित स्वार्थ वाले लोगों को इससे रोका नहीं जा सकता है और अगर सावधानी से प्रबंधन नहीं किया गया तो कुछ हद तक समझौता हो सकता है।

निष्कर्ष:

सूचना के अधिकार को दुरुपयोग की रोकथाम के साथ संतुलित करना RTI अधिनियम की अखंडता को बनाए रखने के लिये आवश्यक है। स्पष्ट दिशा-निर्देश, बढ़ी हुई जाँच और नागरिक समाज के साथ जुड़ने जैसी सुविचारित रणनीतियों को लागू करके, लोक सूचना अधिकारी यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अधिनियम सार्वजनिक हित में कार्य करता रहे, साथ ही तुच्छ और परेशान करने वाले आवेदनों को कम-से-कम किया जा सके।

जैसा कि जॉन स्टुअर्ट मिल ने कहा कि, "स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करना", लेकिन इस स्वतंत्रता का प्रयोग दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करने से बचने के लिये ज़िम्मेदारी से किया जाना चाहिये। इस तरह से आरटीआई अधिनियम के दुरुपयोग को प्रतिबंधित करना मिल के क्षति सिद्धांत के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक हित और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करना है।