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11 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-4: भारत की स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक वर्षों के दौरान गुटनिरपेक्षता को देश की विदेश नीति का एक मूलभूत तत्त्व बना दिया। इस कथन के संदर्भ में 1947-64 के बीच दो प्रमुख शक्तियों के साथ भारत के संबंधों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- गुटनिरपेक्षता की अवधारणा और भारत की विदेश नीति में इसके महत्त्व का परिचय दीजिये।
- वर्ष 1947-64 के बीच दो प्रमुख शक्तियों के साथ भारत के संबंधों का विश्लेषण कीजिये।
- भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और शीत युद्ध की गतिशीलता को नेविगेट करने की क्षमता पर गुटनिरपेक्षता के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष नीति की प्रभावशीलता पर विचार करते हुए निष्कर्ष लिखिये।
भूमिका :
स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक वर्षों में गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत भारत की विदेश नीति का केंद्र बिंदु था। शीत युद्ध के भू-राजनीतिक तनावों के बीच, भारत ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में दो प्रमुख शक्तियों - संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी ब्लॉक और सोवियत संघ के नेतृत्व वाले पूर्वी ब्लॉक से स्वतंत्रता बनाए रखने की कोशिश की।
मुख्य भाग :
गुटनिरपेक्षता की अवधारणा:
गुटनिरपेक्षता एक विदेश नीति रणनीति है जो किसी देश के किसी भी प्रमुख शक्ति समूह के साथ औपचारिक रूप से गठबंधन न करने के निर्णय पर ज़ोर देती है। इसके बजाय, यह अंतर्राष्ट्रीय मामलों में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, तटस्थता और स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए एक स्वतंत्र रुख बनाए रखने का प्रयास करता है। गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों में शामिल हैं:
- संप्रभुता के लिये परस्पर सम्मान: प्रत्येक राष्ट्र को अन्य राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिये।
- गैर-आक्रामकता: राज्यों को आक्रामकता और संघर्ष से बचना चाहिये तथा विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाना चाहिये।
- गैर-हस्तक्षेप: राष्ट्रों को अन्य राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
- समानता और पारस्परिक लाभ: अंतर्राष्ट्रीय संबंध समानता और पारस्परिक लाभ पर आधारित होने चाहिये।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: राष्ट्रों को अपनी राजनीतिक या आर्थिक व्यवस्था की परवाह किये बिना शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिये प्रयास करना चाहिये।
पश्चिमी ब्लॉक के साथ भारत के संबंध (1947-1964) :
- प्रारंभिक संबंध और सहायता
- आर्थिक और तकनीकी सहायता: शुरुआती वर्षों में भारत ने आर्थिक और तकनीकी सहायता के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ काम किया। पॉइंट फोर प्रोग्राम जैसे कार्यक्रमों ने भारत को अपने विकास लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये तकनीकी विशेषज्ञता और वित्तीय सहायता प्रदान की।
- उम्मीदें और निराशाएँ: भारत को अपने आर्थिक विकास और रणनीतिक आवश्यकताओं के लिये पश्चिमी ब्लॉक से समर्थन की उम्मीद थी। हालाँकि भारत को अक्सर निराशा का ही सामना करना पड़ता था, खासकर जब अमेरिका द्वारा सैन्य और रणनीतिक मामलों में पाकिस्तान का पक्ष लिया था।
- संबंधों में तनाव
- कोरियाई युद्ध: कोरियाई युद्ध (1950-1953) के दौरान भारत के तटस्थ रुख ने गुटनिरपेक्षता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को उज़ागर किया, लेकिन अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव पैदा किया, जिससे साम्यवादी शक्तियों के खिलाफ मज़बूत समर्थन की उम्मीद थी।
- अमेरिका-पाकिस्तान गठबंधन: अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के साथ SEATO एवं CENTO जैसे सैन्य गठबंधन स्थापित किए गये, जिससे संबंधों में और भी तनाव उत्पन्न हुआ। इन गठबंधनों को भारत की सुरक्षा तथा क्षेत्रीय स्थिरता के लिये खतरा माना गया।
- राजनयिक जुड़ाव और सहायता
- आइज़नहावर की यात्रा: तनाव के बावजूद, कूटनीतिक संबंध जारी रहे। वर्ष 1959 में राष्ट्रपति आइज़नहावर की भारत यात्रा एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जो द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये चल रहे प्रयासों को दर्शाती है।
- खाद्य सहायता और पीएल-480 समझौता: अमेरिका ने पीएल-480 खाद्य सहायता कार्यक्रम सहित पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदान की, जिससे भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिली।
पूर्वी ब्लॉक के साथ भारत के संबंध (1947-1964)
- प्रारंभिक जुड़ाव और वैचारिक समानता
- प्रारंभिक राजनयिक संबंध: भारत ने स्वतंत्रता के तुरंत बाद सोवियत संघ के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। दोनों देशों ने आर्थिक और राजनीतिक विचारों के आधार पर सहकारी संबंध बनाने में आपसी रुचि साझा की।
- वैचारिक समानता: भारत के मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल और राज्य के नेतृत्व वाले विकास के सोवियत मॉडल के बीच एक वैचारिक समानता थी। इस समानता ने घनिष्ठ संबंधों एवं सहयोग को बढ़ावा दिया।
- समर्थन और सहायता
- आर्थिक और सैन्य सहायता: सोवियत संघ ने भारत को महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान की। भिलाई स्टील प्लांट जैसी प्रमुख औद्योगिक परियोजनाएँ सोवियत संघ की सहायता से स्थापित की गईं, जिससे भारत का औद्योगिक आधार मज़बूत हुआ।
- राजनीतिक समर्थन: सोवियत संघ ने अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर खास तौर पर कश्मीर मुद्दे और गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों के संदर्भ में भारत का समर्थन किया। इस राजनीतिक समर्थन ने विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर भारत के रुख को मज़बूत किया।
- चुनौतियाँ और व्यावहारिकता:
- भारत-चीन युद्ध: वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। युद्ध के दौरान सोवियत संघ का तटस्थ रुख भारत के लिये निराशाजनक था। हालाँकि युद्ध के बाद, सोवियत संघ ने भारत के रणनीतिक महत्त्व को पहचानते हुए समर्थन फिर से शुरू कर दिया।
- संबंधों को संतुलित करना: भारत ने अपने गुटनिरपेक्ष रुख को बनाए रखते हुए सोवियत संघ के साथ अपने संबंधों को कुशलतापूर्वक संतुलित किया। शीत युद्ध की जटिल गतिशीलता को नियंत्रित करने में यह संतुलन कार्य महत्त्वपूर्ण था।
परिणाम और प्रभाव:
- भारत के नेतृत्व को मज़बूत करना: दोनों शक्ति ब्लॉकों के साथ बातचीत के माध्यम से भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को मज़बूत किया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत के नेतृत्व ने इसे नए स्वतंत्र और विकासशील देशों की एक प्रमुख आवाज़ के रूप में स्थापित किया।
- रणनीतिक स्वायत्तता: गुटनिरपेक्षता नीति ने भारत को रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने और शीत युद्ध में शामिल होने से बचने में सक्षम बनाया। इस स्वायत्तता ने भारत को अनावश्यक बाहरी प्रभाव के बिना स्वतंत्र विदेशी तथा घरेलू नीतियों को आगे बढ़ाने की अनुमति प्रदान की।
- आर्थिक और सैन्य विकास: भारत ने अपने संतुलित दृष्टिकोण से पर्याप्त आर्थिक एवं सैन्य लाभ प्राप्त किये। औद्योगिक और सैन्य क्षेत्रों में सोवियत संघ के समर्थन के साथ मिलकर भारत के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
निष्कर्ष:
वर्ष 1947 से 1964 तक दो प्रमुख शक्ति ब्लॉकों के साथ भारत की भागीदारी और स्वतंत्रता के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन भारत की मुख्य विशेषता थी। गुटनिरपेक्ष नीति ने भारत के संप्रभु एवं गुटनिरपेक्ष रुख की नींव रखी, जो आज भी उसकी विदेश नीति को प्रभावित करती है।