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  • 11 Jul 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-4: स्वतंत्रता के बाद भारत में भूमि सुधारों के विकास पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • स्वतंत्रता के बाद के भारत में भूमि सुधारों की अवधारणा का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • भूमि सुधारों के विभिन्न चरणों पर चर्चा कीजिये।
    • भारत में भूमि सुधारों की प्रमुख उपलब्धियों और कमियों का उल्लेख कीजिये।
    • निष्कर्ष के तौर पर भारत में भू-नीति के लिये भविष्य के सुझाव लिखिये।

    भूमिका:

    बिचौलियों का उन्मूलन: इस चरण के दौरान भारत में भूमि सुधारों की शुरुआत कृषि असमानता को दूर करने, सामाजिक समानता सुनिश्चित करने और कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने के उद्देश्य से की गई थी। स्वतंत्रता के समय व्यापक गरीबी, किसानो का शोषण तथा असमान भूमि वितरण कृषि व्यवस्था की एक विशेषता थी। नई स्वतंत्र सरकार ने ग्रामीण परिदृश्य को बदलने एवं सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु भूमि सुधारों के महत्त्व पर ध्यान दिया।

    मुख्य भाग :

    स्वतंत्र भारत के बाद प्रमुख भूमि सुधार:

    • प्रारंभिक चरण (1947-1950) :
      • मिक उद्देश्य ज़मींदारों और इनामदारों जैसे बिचौलियों का उन्मूलन था, जो काश्तकारी किसानों का शोषण कर रहे थे। ज़मींदारी उन्मूलन अधिनियम एवं इसी तरह के कानून विभिन्न राज्यों में लागू किये गए।
      • विधान: राज्यों द्वारा ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिये कानून बनाए, प्रत्यक्ष रूप से किसानों को भू-स्वामित्त्व बनाया गया । उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश ज़मींदारी उन्मूलन अधिनियम, 1951, प्रथम और सबसे महत्त्वपूर्ण कानूनों में से एक था।
    • समेकित चरण (1960s-1970s)
      • भूमि सीमा अधिनियम: इन अधिनियमों का उद्देश्य भू-जोतों पर अधिकतम सीमा लगाकर अधिशेष भूमि का पुनर्वितरण करना था। अधिशेष भूमि को भूमिहीन और सीमांत किसानों के बीच वितरित किया जाना था। उदाहरण के लिये महाराष्ट्र कृषि भूमि (जोतों पर अधिकतम सीमा) अधिनियम, 1961 का उद्देश्य भूमि का पुनर्वितरण करना था।
      • काश्तकारी सुधार: इन सुधारों ने काश्तकारी की सुरक्षा प्रदान की, काश्त को विनियमित और काश्तकारों को स्वामित्त्व अधिकार प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया। पश्चिम बंगाल में ऑपरेशन बरगा (1970 के दशक के अंत में) ने बटाईदारों के अधिकारों पर सफलतापूर्वक ध्यान दिया गया, जिससे उन्हें सुरक्षा मिली तथा उत्पादकता में वृद्धि हुई।
      • हरित क्रांति: इस दौरान हरित क्रांति का आगमन भी हुआ, जिसने कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की, लेकिन भूमि वितरण और परिसंपत्ति के मुद्दों को समान रूप से संबोधित नहीं किया गया।
    • ठहराव और नीति परिवर्तन (1980-1990 के दशक):
      • कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे: भूमि सुधारों की प्रभावशीलता को कानूनी खामियों, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और प्रशासनिक बाधाओं सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ज़मींदार अक्सर बेनामी लेन-देन और भूमि अभिलेखों में हेरफेर के माध्यम से सीलिंग कानूनों से बचते थे।
      • सुधारों का स्थानांतरण: पुनर्वितरण सुधारों पर केंद्रित भूमि प्रबंधन, जोतों के समेकन और कृषि बुनियादी ढाँचे में सुधार पर स्थानांतरित हो गया।
      • आर्थिक सुधार: 1990 के दशक के आर्थिक उदारीकरण के साथ नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें कृषि का बढ़ता व्यावसायीकरण शामिल था, जो प्रत्यक्ष रूप से छोटे और सीमांत किसानों की ज़रूरतों को पूरा नहीं करता था।
    • समकालीन चरण (2000-वर्तमान) :
      • भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास: भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (LARR) अधिनियम, 2013 का उद्देश्य भूमि अधिग्रहण से प्रभावित लोगों को उचित मुआवज़ा, पुनर्वास तथा पुनर्स्थापन प्रदान करना था। इसने औद्योगीकरण की ज़रूरतों को सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करने की कोशिश की।
      • कृषि संकट और किसान आंदोलन: किसान आत्महत्या, कृषि संकट और किसान विरोध (जैसे- कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-2021 का विरोध) जैसे समकालीन मुद्दे कृषि क्षेत्र में चल रही चुनौतियों एवं व्यापक कृषि सुधार की आवश्यकताओं को दर्शाते हैं।
      • डिजिटल पहल: डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइज़ेशन प्रोग्राम (DILRMP) जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य भूमि रिकॉर्ड को आधुनिकरण करना, विवादों को कम करना और भूमि के लेन-देन में पारदर्शिता स्थापित करना है।

    निष्कर्ष:

    भारत में भूमि सुधारों ने शोषणकारी भू-स्वामित्त्व प्रणालियों को समाप्त करने, स्वामित्त्व की सुरक्षा प्रदान करने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। हालाँकि सुधारों का अपूर्ण कार्यान्वयन, क्षेत्रीय असमानताओं तथा नौकरशाही एवं राजनीतिक बाधाओं सहित काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इन कमियों को दूर करने के लिये मौजूदा कानूनों को लागू करने, लाभार्थियों का समर्थन करने और न्यायसंगत एवं सतत् भूमि प्रबंधन प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये नए सिरे से प्रयास करने की आवश्यकता है।

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