Mains Marathon

दिवस-37: नैतिक मूल्यों की हानि अच्छे जीवन को धन और शक्ति के बराबर मानने से होती है। टिप्पणी करें। (150 शब्द)

19 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • संक्षेप में बताइये कि "अच्छा जीवन" क्या होता है।
  • अच्छे जीवन को धन और शक्ति के बराबर मानने के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
  • अच्छे जीवन को समझने के वैकल्पिक तरीके सुझाइये।
  • तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय

"अच्छे जीवन" की अवधारणा को पारंपरिक रूप से सद्गुणों, नैतिक जीवन और व्यक्तिगत संतुष्टि से जोड़ा गया है। हालाँकि समकालीन समाज में, इस अवधारणा को धन और शक्ति की खोज के साथ जोड़ा जाता है। इस बदलाव ने महत्त्वपूर्ण सामाजिक और नैतिक परिणामों को जन्म दिया है।

मुख्य भाग:

अच्छे जीवन को धन और शक्ति के बराबर मानने के प्रभाव

  • नैतिक मूल्यों का क्षरण
    • भ्रष्टाचार: धन और शक्ति की खोज के परिणामस्वरूप अक्सर व्यापक भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है।
      • उदाहरण के लिये, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2010) और कोयला घोटाला (2012) जैसे हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार घोटाले दर्शाते हैं कि वित्तीय लाभ की चाह किस प्रकार अनैतिक व्यवहार को जन्म दे सकती है।
    • कॉर्पोरेट कदाचार: सत्यम घोटाला (2009) जैसे कॉर्पोरेट कदाचार से यह स्पष्ट होता है कि वित्तीय सफलता की चाहत किस प्रकार धोखाधड़ी के तरीकों को जन्म दे सकती है।
  • सामाजिक असमानता पर प्रभाव
    • धन असमानता: धन संचय पर ध्यान केंद्रित करने से भारत में आय असमानता बढ़ गई है। धनी अभिजात वर्ग और गरीब लोगों के बीच असमानता बढ़ गई है, जिसमें सबसे अमीर व्यक्ति पर्याप्त आर्थिक लाभ का आनंद ले रहे हैं जबकि आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी से जूझ रहा है।
      • विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% तथा 22% हिस्सा है। निम्न 50% लोगों का हिस्सा घटकर 13% रह गया है।
    • आर्थिक विस्थापन: बड़े पैमाने की अवसंरचना परियोजनाएँ, जैसे कि उच्च स्तरीय आवासीय परिसरों या औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण, अक्सर स्थानीय समुदायों के विस्थापन और आर्थिक रूप से कम सुविधा प्राप्त लोगों की आजीविका के हानि का कारण बनती हैं।
    • विधिक और विनियामक विफलताएँ: धनी व्यक्ति विधिक परिणामों से बचने के लिये अपने प्रभाव का उपयोग कर सकते हैं, जैसा कि कई हाई-प्रोफाइल मामलों में देखा गया है, जहाँ प्रभावशाली व्यक्तियों के विरुद्ध विधिक कार्रवाई में देरी हुई है या समझौता किया गया है।
  • मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
    • तनाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि: धन और प्रतिष्ठा की निरंतर खोज ने व्यक्तियों में तनाव एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ा दिया है।
      • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की।
    • सामाजिक विखंडन: व्यक्तिगत उपलब्धियों और आर्थिक स्थिति पर ज़ोर देने से सामुदायिक बंधन तथा सामाजिक सामंजस्य समाप्त हो सकता है, क्योंकि व्यक्ति सामूहिक कल्याण के बजाय अपने व्यक्तिगत लाभ पर अधिक ध्यान केंद्रित करने लगते हैं।

अच्छा जीवन और नैतिक जीवन:

    • सद्गुण नैतिकता एवं अच्छा जीवन: सद्गुण नैतिकता की दार्शनिक परंपरा में, विशेष रूप से अरस्तू द्वारा व्यक्त की गई, अच्छा जीवन साहस, संयम, ज्ञान और न्याय जैसे गुणों के विकास के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। एक सद्गुण जीवन वह है जहाँ कार्य तर्क द्वारा निर्देशित होते हैं और अधिक-से-अधिक अच्छे के साथ संरेखित होते हैं, जिससे यूडेमोनिया (eudaimonia)- समृद्धि एवं प्रसन्नता की स्थिति प्राप्त होती है।
  • अच्छे जीवन के प्रमुख घटकों में शामिल हैं:
    • प्रसन्नता एवं कल्याण: ऐसा जीवन जो संतुष्टि एवं तृप्ति प्रदान करता हो।
    • नैतिक अखंडता: नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों के अनुसार जीवन जीना।
    • व्यक्तिगत विकास: निरंतर आत्म-सुधार और ज्ञान की खोज।
    • मज़बूत संबंध: परिवार, मित्रों और समुदाय के साथ सार्थक संबंध स्थापित करना।
    • उद्देश्य एवं अर्थ: ऐसी गतिविधियों में शामिल होना जो उद्देश्य और पूर्ति की भावना में योगदान देती हैं।
    • सामाजिक ज़िम्मेदारी: एक अच्छा जीवन दूसरों की भलाई के साथ भी संबंधित होता है।

निष्कर्ष:

अच्छे जीवन को धन और शक्ति के बराबर मानने से नैतिक मूल्यों की हानि होती है, जिसका प्रभाव व्यक्तिगत व्यवहार तथा सामाजिक मानदंडों दोनों पर पड़ता है। जैसा कि महात्मा गांधी ने सटीकता से कहा था, "स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में स्वयं को खो देना।" सफलता को नैतिक विचारों में शामिल करने के लिये पुनर्परिभाषित करने और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने से, समाज अच्छे जीवन की अधिक संतुलित एवं संतुष्टिदायक अवधारणा की दिशा में कार्य कर सकता है।