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दिवस-37: विधि और नियमों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिये। नैतिकता उनके निर्माण को कैसे प्रभावित करती है? (150 शब्द)

19 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • विधि, नियम और नैतिकता का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • विधि और नियमों के बीच अंतर बताइये।
  • विधि और नियमों के निर्माण पर नैतिकता के प्रभाव की व्याख्या कीजिये।
  • तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

विधि और नियम समाज में व्यवस्था बनाए रखने तथा व्यवहार को निर्देशित करने के लिये आवश्यक उपकरण हैं। जबकि वे दोनों कार्यों को विनियमित करने का कार्य करते हैं, वे दायरे, अनुप्रयोग और प्रवर्तन में भिन्न होते हैं। नैतिकता, सार्वभौमिक सिद्धांतों का एक समूह, इन विनियमों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यह सुनिश्चित करती है कि वे मानवीय मूल्यों के साथ संरेखित हों और न्याय को बढ़ावा दें।

मुख्य भाग:

विधि और नियम के बीच अंतर:

पहलू

विधि

नियम

परिभाषा

विधि किसी शासकीय प्राधिकारी, जैसे संसद या विधानमंडल, द्वारा बनाई गई औपचारिक कानूनी विधि होती हैं।

दूसरी ओर, नियम विशिष्ट निर्देश या दिशा-निर्देश होते हैं जो किसी विशेष संदर्भ में व्यवहार को नियंत्रित करने के लिये संगठनों, संस्थाओं या नियामक निकायों द्वारा स्थापित किये जाते हैं।

प्रकृति

वे क्षेत्राधिकार के भीतर सभी व्यक्तियों पर बाध्यकारी होते हैं और विधिक महत्त्व रखते हैं।

विधि के विपरीत, नियमों में विधिक प्रवर्तनीयता नहीं होती है, लेकिन वे कार्यस्थलों, स्कूलों या क्लबों जैसे छोटे समूहों के सुचारु संचालन के लिये आवश्यक होते हैं।

अनुप्रयोग का दायरा

विधि का दायरा व्यापक होता है, जो किसी राष्ट्र या राज्य के सभी लोगों पर लागू होता है।

नियमों का दायरा सीमित होता है तथा वे प्रायः केवल विशिष्ट समूहों या स्थितियों पर ही लागू होते हैं।

अनुकूलन (लचीलापन)

विधि आमतौर पर कठोर होती हैं और उनमें संशोधन या निरसन के लिये एक औपचारिक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जिसमें अक्सर विधायी बहस तथा अनुमोदन शामिल होता है।

नियम अधिक लचीले होते हैं और बदलती परिस्थितियों या संगठनात्मक आवश्यकताओं के अनुरूप जारीकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा उन्हें आसानी से बदला या अद्यतन किया जा सकता है।

दंड की गंभीरता

उल्लंघन के परिणामस्वरूप कारावास या अन्य कानूनी दंड जैसे गंभीर दंड हो सकते हैं।

उल्लंघन के परिणामस्वरूप आमतौर पर कम गंभीर अनुशासनात्मक कार्रवाई होती है, जैसे- चेतावनी, ज़ुर्माना या निष्कासन।

विधि और नियमों के निर्माण पर नैतिकता का प्रभाव:

  • न्याय के मार्गदर्शक सिद्धांत: न्याय के नैतिक सिद्धांत यह सुनिश्चित करते हैं कि विधि और नियम सामाजिक असमानताओं को संबोधित करें तथा उनमें सुधार करें एवं व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करें। ये सिद्धांत मांग करते हैं कि विधि निष्पक्ष और न्यायिक हों, जो समाज के सभी सदस्यों को समान सुरक्षा तथा अवसर प्रदान कर सकें।
    • भारत में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 हाशिये पर रह रहे समुदायों के विरुद्ध भेदभाव एवं हिंसा को रोकने के लिये लागू किया गया था।
  • निष्पक्षता सुनिश्चित करना: निष्पक्षता एक नैतिक सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि विधि और नियम लगातार लागू हों तथा किसी व्यक्ति या समूह के साथ अन्यायपूर्ण तरीके से पक्षपात न किया जाए। निष्पक्षता में सभी व्यक्तियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना और जीवन के विभिन्न पहलूओं में समान व्यवहार सुनिश्चित करना शामिल होता है।
    • नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, निःशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो।
  • समानता को बढ़ावा देना: समानता एक प्रमुख नैतिक सिद्धांत है जो भेदभाव को समाप्त करने और सभी व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करने के लिये विधि तथा नियम बनाने को प्रेरित करता है।
    • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये महिला कर्मचारियों के लिये सवेतन मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर देता है।
  • मानवाधिकारों की रक्षा: मानवाधिकारों से संबंधित नैतिक सिद्धांत ऐसी विधियों का आधार हैं जो व्यक्तियों की मौलिक स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करते हैं। यह सुनिश्चित करना कि विधि मानवाधिकारों को बनाए रखते हैं, दुरुपयोग को रोकने में सहायता करती है और व्यक्तिगत अधिकारों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है।
    • मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 ने मानव अधिकारों के उल्लंघन से निपटने के लिये राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना की।
  • प्रतिस्पर्द्धी हितों में संतुलन: नैतिक सिद्धांत विधि निर्माण में प्रतिस्पर्द्धी हितों में संतुलन स्थापित करने का मार्गदर्शन करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि विधि निर्माण के समय सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सभी हितधारकों के कल्याण पर विचार किया जाए।
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 पर्यावरणीय स्थिरता और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी के बारे में नैतिक चिंताओं को दर्शाता है।
  • नैतिक दुविधाओं का समाधान: जटिल सामाजिक मुद्दों में अक्सर नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं, जिसके कारण विधि और नियमों का निर्माण या संशोधन करना पड़ता है।
    • इन दुविधाओं, जैसे कि यूथेनेसिया यानी इच्छामृत्यु या मृत्युदंड से संबंधित दुविधाओं के लिये गहन नैतिक चिंतन की आवश्यकता होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परिणामी विधि न्यायसंगत और मानवीय हों।

निष्कर्ष:

नैतिकता नैतिक मूल्यों और मानक सिद्धांतों को कानूनी ढाँचों में समाहित करके विधि तथा नियमों के निर्माण को गहराई से आकार देती है। ये नैतिक विचार सुनिश्चित करते हैं कि विधि केवल तकनीकी निर्माण नहीं हैं बल्कि एक न्यायपूर्ण समाज के मूल्यों और आकांक्षाओं को दर्शाते हैं।