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16 Aug 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 3
आंतरिक सुरक्षा
दिवस-35: धन शोधन के विरुद्ध संघर्ष, एक अनवरत संघर्ष है जिसमें विकसित हो रही आपराधिक रणनीतियों की प्रतिक्रया में अनुकूलित होते रहने की आवश्यकता है। विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- धन शोधन और इसके वैश्विक प्रभाव को परिभाषित कीजिये।
- धन शोधन के खिलाफ लड़ाई में निरंतर चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- भारत में एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (AML) नीतियों का उल्लेख कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
धन शोधन एक जटिल प्रक्रिया है जिसका उपयोग व्यक्तियों और संगठनों द्वारा अवैध रूप से प्राप्त धन को छिपाने के लिये किया जाता है। इसमें कई तरह के लेन-देन के ज़रिए अवैध धन को वैध दिखाना शामिल है। IMF के अनुसार, वैश्विक धन शोधन का अनुमान विश्व सकल घरेलु उत्पाद का 2 से 5% के बीच है।
मुख्य भाग:
धन शोधन के चरण:
- प्लेसमेंट: वह प्रारंभिक चरण जहाँ अवैध धन को वित्तीय प्रणाली में शामिल किया जाता है। इसमें बैंक खातों में जमा, मुद्रा विनिमय या मूल्यवान संपत्तियों की खरीद शामिल होती है।
- लेयरिंग: जटिल वित्तीय लेन-देन के माध्यम से अवैध धन को उनके स्रोत से अलग करने की प्रक्रिया। इसमें प्रायः खातों के बीच या सीमा पार धन हस्तांतरण शामिल है ताकि उनके मूल को छिपाया जा सके।
- एकीकरण: अंतिम चरण जिसमें शोधित धन को वैध धन के रूप में अर्थव्यवस्था में पुन: शामिल किया जाता है। इसमें व्यवसायों में निवेश करना, अचल संपत्ति खरीदना या धन को वैध बनाने के अन्य तरीके शामिल होते हैं।
धन शोधन के विरुद्ध संघर्ष में उभरती चुनौतियाँ:
- क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल संपत्ति: बिटकॉइन और एथेरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसी के उदय ने धन शोधन के लिये नए मार्ग खोल दिये हैं। इन डिजिटल मुद्राओं की विकेंद्रीकृत और गुमनाम प्रकृति लेन-देन का पता लगाना तथा उनके पीछे के व्यक्तियों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण है।
- विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi) का उदय: DeFi प्लेटफॉर्म, जो बिचौलियों के बिना पियर-टू-पियर peer-to-peer) वित्तीय लेन-देन की अनुमति देते हैं।
- जटिल लेयरिंग तकनीक: अपराधी प्रायः जटिल वित्तीय संरचनाओं का उपयोग करते हैं, जैसे कि शेल कंपनियाँ, ट्रस्ट और ऑफशोर अकाउंट, कई प्रकार के लेन-देन। लेयरिंग प्रक्रिया अधिकारियों के लिये धन के प्रवाह को उनके मूल स्रोत तक वापस ट्रैक करना मुश्किल बना देती है।
- विनियामक मध्यस्थता: धन शोधन करने वाले विभिन्न देशों में विनियामक मानकों में अंतर का फायदा उठाते हैं। वे कमज़ोर AML नियंत्रण वाले देशों के माध्यम से धन प्रेषित कर सकते हैं, जिससे सख्त कानून वाले क्षेत्रों में विनियामकों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय समन्वय मुद्दे: धन शोधन एक अंतर्राष्ट्रीय अपराध है और प्रभावी प्रवर्तन के लिये देशों के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है हालाँकि कानूनी ढाँचे, प्रवर्तन क्षमताओं और राजनीतिक इच्छाशक्ति में अंतर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बाधा डाल सकता है। अपराधी प्राय: सीमा पार धन ले जाने के लिये इन मतभेदों का फायदा उठाते हैं, जिससे किसी एक देश के लिये इस मुद्दे को व्यापक रूप से संबोधित करना मुश्किल हो जाता है।
- धन शोधन विरोधी (AML) विनियमों में एकरूपता का अभाव: विभिन्न क्षेत्रों में एकसमान AML विनियमों की कमी के कारण अपराधियों को कमज़ोर प्रवर्तन वाले देशों में धन शोधन के अवसर मिलते हैं। यह असंगति वैश्विक वित्तीय संस्थानों के लिये एक समान AML नीति को लागू करना चुनौतीपूर्ण बनाती है, क्योंकि उन्हें अलग-अलग विनियामक वातावरण में कार्य करना पड़ता है।
- प्रवर्तन के लिये सीमित संसाधन: कई देशों, खासकर छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों में, AML विनियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये संसाधनों की कमी हो सकती है। इसमें विनियामक निकायों के लिये अपर्याप्त निधि, उन्नत तकनीकों तक सीमित पहुँच और धन शोधन गतिविधियों का पता लगाने तथा जाँच करने के लिये प्रशिक्षित कर्मियों की कमी शामिल है।
- डेटा साझाकरण और सुरक्षा: प्रभावी AML प्रयासों के लिये अक्सर संस्थानों और सीमाओं के बीच जानकारी साझा करने की आवश्यकता होती है। हालाँकि इस डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना और इसे उल्लंघनों से बचाना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
भारत में एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (AML) के लिये उपाय:
- धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002: भारत में धन शोधन निवारण का प्राथमिक कानून, जिसका उद्देश्य धन शोधन को रोकना और शोधित धन से प्राप्त संपत्ति को अधिग्रहीत करना था।
- वित्तीय खुफिया इकाई-भारत (FIU-IND): एक सरकारी एजेंसी जो संदिग्ध वित्तीय लेन-देन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, उसका विश्लेषण करने और प्रसार करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- तस्कर और विदेशी मुद्रा छलसाधक (संपत्ति समपहरण) अधिनियम, 1976: इसमें तस्करों और विदेशी मुद्रा छलसाधकों द्वारा अवैध रूप से अर्जित संपत्तियों के लिये दंड तथा उससे संबंधित मामलों को शामिल किया गया है।
- स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985: इसमें स्वापक औषधियों के अवैध व्यापार में प्रयुक्त या उससे प्राप्त संपत्ति के लिये दंड का प्रावधान है।
- नो योर कस्टमर (KYC) मानदंड: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी दिशा-निर्देश, जिसके तहत वित्तीय संस्थानों द्वारा अपने ग्राहकों की पहचान सत्यापित करना सुनिश्चित करके धन शोधन को रोका जाता है।
- प्रवर्तन निदेशालय (ED): वित्त मंत्रालय के अधीन एक कानून प्रवर्तन एजेंसी जिसका कार्य धन शोधन समेत आर्थिक अपराधों की जाँच करना है।
- वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के साथ भारत का संबंध: FATF वैश्विक धन शोधन और आतंकवादी वित्तपोषण निगरानी संस्था है, जिसकी स्थापना वर्ष 1989 में पेरिस में विकसित देशों की G-7 बैठक के दौरान की गई थी।
- भारत वर्ष 2006 में ‘पर्यवेक्षक (Observer)’ के दर्जे के साथ इसमें शामिल हुआ और वर्ष 2010 में FATF का पूर्ण सदस्य बन गया।
निष्कर्ष:
धन शोधन के विरुद्ध संघर्ष एक सतत् चुनौती है। जैसे-जैसे अपराधी नई तकनीकें विकसित करते हैं और उन्नत तकनीकों का लाभ उठाते हैं, नियामकों तथा वित्तीय संस्थानों को आगे रहने के लिये अपनी रणनीतियों को निरंतर बदलना चाहिये। वैश्विक वित्तीय प्रणालियों की जटिलता, धन शोधन की अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति के साथ मिलकर, एक समन्वित और अभिनव दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हालाँकि इसमें महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, इस खतरे का तात्पर्य है कि धन शोधन के विरुद्ध संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है, जिसके लिये निरंतर सतर्कता और अनुकूलन की आवश्यकता है।