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दिवस-34: आतंकवाद के खिलाफ भारत के संघर्ष में विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) को अक्सर दोधारी तलवार के रूप में देखा जाता है। इस अधिनियम के गुण एवं दोषों का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

15 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | आंतरिक सुरक्षा

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) के बारे में संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • आतंकवाद के खिलाफ भारत के संघर्ष में विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) के गुणों का उल्लेख कीजिये।
  • UAPA की कमियों पर प्रकाश डालिये।
  • आतंकवाद के खिलाफ भारत के संघर्ष में विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम UAPA के लिये आगे की राह सुझाइये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA), 1967 भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा को खतरा पहुँचाने वाली गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने के लिये बनाया गया था। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को राष्ट्रव्यापी अन्वेषण के लिये सशक्त बनाने वाला यह अधिनियम आतंकवाद का सामना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि इसके कड़े प्रावधानों ने संभावित दुरुपयोग और मानवाधिकार चिंताओं को बढ़ा दिया है।

मुख्य बिंदु:

UAPA के लाभ:

  • प्रभावी आतंकवाद-रोधी उपकरण: UAPA आतंकवाद में शामिल व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे केंद्र सरकार को किसी भी गतिविधि को गैर-कानूनी घोषित करने की अनुमति मिल जाती है।
    • यह अधिनियम सरकार को व्यक्तियों और संगठनों दोनों को आतंकवादी घोषित करने की अनुमति प्रदान करता है। वर्ष 2019 के संशोधन द्वारा इस शक्ति को और मज़बूत किया गया है।
  • निवारक निरोध: UAPA गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल संदिग्ध व्यक्तियों के लिये निवारक निरोध (Preventive Detention) की अनुमति प्रदान करता है। समर्थकों का तर्क है कि संभावित खतरों के साकार होने से पहले इन्हें रोकने के लिये यह प्रावधान आवश्यक है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जहाँ औपचारिक परीक्षण या ट्रायल के लिये पर्याप्त साक्ष्य नहीं भी हो सकते हैं।
  • वैश्विक संरेखण और प्रयोज्यता: UAPA भारत के आतंकवाद-रोधी कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाता है और भारतीय तथा विदेशी दोनों नागरिकों पर लागू होता है, भले ही अपराध विदेश में किया गया हो।
    • इस अधिनियम में मृत्युदंड और आजीवन कारावास सहित कठोर दंड का प्रावधान है।
  • अलगाव से परे विस्तारित दायरा: प्रारंभ में अलगाव और परित्याग पर केंद्रित UAPA का दायरा वर्ष 2004 में आतंकवादी कृत्यों को शामिल करने के लिये व्यापक कर दिया गया, जिससे राष्ट्रीय अखंडता हेतु खतरों की एक विस्तृत शृंखला से निपटने में इसकी प्रभावशीलता बढ़ गई है।

UAPA के दोष:

  • आतंकवादी कृत्यों की अस्पष्ट परिभाषा:
    • UAPA "आतंकवादी कृत्यों" की एक अतिव्यापक और अस्पष्ट परिभाषा प्रदान करता है, जो गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करने की अनुमति देता है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा नहीं कर सकते हैं। यह व्यापक परिभाषा दुरुपयोग की संभावना को बढ़ाती है।
  • ज़मानत से इनकार:
    • UAPA की धारा 43(D)(5) के तहत आरोपी व्यक्तियों के लिये ज़मानत प्राप्त करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि अगर पुलिस प्रथम दृष्टया सबूत पेश करती है तो यह रिहाई को रोकता है। यह प्रावधान स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को कमज़ोर करता है, क्योंकि ज़मानत एक बुनियादी सुरक्षा है।
  • राज्य का अतिक्रमण और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन:
    • यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति, निरायुध सम्मेलन और संगम या संघ निर्माण की स्वतंत्रता जैसे मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह असहमति एवं विरोध को अपराध घोषित करता है और इसका इस्तेमाल सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्त्ताओं, पत्रकारों, छात्रों तथा अल्पसंख्यकों के लिये किया जा सकता है।
  • संघवाद को कमज़ोर करना:
    • UAPA के प्रावधान केंद्र सरकार को राज्य प्राधिकारियों को दरकिनार करते हुए आतंकवाद के मामलों को अपने हाथ में लेने की अनुमति देते हैं, जो संघीय ढाँचे को कमज़ोर कर सकता है क्योंकि भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत 'पुलिस' राज्य का विषय है।
  • निम्न दोषसिद्धि दर और न्यायिक अतिक्रमण:
    • सज़ा दर में कमी (लगभग 18%) न्याय सुनिश्चित करने में UAPA की अप्रभावीता को उजागर करती है। इसके अतिरिक्त, 2019 का संशोधन सरकार को न्यायिक समीक्षा के बिना व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने की अनुमति प्रदान करता है, जो उचित प्रक्रिया और संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है।

UAPA के लिये आगे की राह:

  • चयनात्मक अनुप्रयोग और अधिकार संरक्षण: UAPA का उपयोग मौलिक अधिकारों के संरक्षण को ध्यान में रखकर अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिये।
    • विवादों को सुलझाने के लिये वार्तालाप को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • स्पष्टता में सुधार: शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, असहमतिपूर्ण राय और वैचारिक अभिव्यक्ति जैसी संवैधानिक रूप से संरक्षित गतिविधियों को बाहर करने के लिये “गैरकानूनी गतिविधि” तथा “आतंकवादी कृत्य” की परिभाषा को सीमित करना। वर्तमान परिभाषाएँ अस्पष्ट, व्यापक और व्यक्तिपरक हैं तथा इनका उपयोग किसी भी ऐसे कार्य को आपराधिक बनाने के लिये किया जा सकता है जिसे सरकार अवांछनीय या धमकी युक्त मानती है।
    • असहमति अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मुक्त भाषण के अधिकार की एक अनिवार्य विशेषता है जैसा कि मकबूल फिदा हुसैन बनाम राजकुमार पांडे (2008) में प्रतिपादित किया गया है।
  • स्वतंत्र समीक्षा और ज़मानत संबंधी स्पष्टता: UAPA के तहत सरकारी निर्णयों के लिये एक निष्पक्ष समीक्षा तंत्र स्थापित करना तथा ज़मानत के प्रावधानों को स्पष्ट करना, ताकि निर्दोषता की धारणा पर ज़ोर दिया जा सके, साथ ही मनमाने ढंग से ज़मानत देने से इनकार किया जा सके।
    • हाल ही में जलालुद्दीन खान बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कानूनों के तहत भी ज़मानत संबंधी नियम होने चाहिये और जेल अपवाद स्वरुप होना चाहिये।

निष्कर्ष:

UAPA के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राज्य सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना एक जटिल चुनौती बनी हुई है। राज्य, न्यायपालिका और नागरिक समाज के लिये यह सुनिश्चित करने में सहयोग करना महत्त्वपूर्ण है कि इस अधिनियम को विवेकपूर्ण तरीके से लागू किया जाए, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाए और साथ ही आतंकवाद का प्रभावी ढंग से निपटान किया जाए।