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दिवस-34: नक्सलवाद केवल कानून एवं व्यवस्था की समस्या नहीं है; यह एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है जिसके समाधान हेतु समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

15 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | आंतरिक सुरक्षा

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • नक्सलवाद के बारे में संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • यह एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा कैसे है और नक्सलवाद के क्या कारण हैं, समझाइये।
  • नक्सलवाद के मुद्दे के समाधान हेतु उपाय और दृष्टिकोण सुझाइये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में वर्ष 1967 के विद्रोह से शुरू हुआ नक्सलवाद केवल कानून व्यवस्था की समस्या नहीं बल्कि सशक्त सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को दर्शाता है। शुरुआत में कानू सान्याल और जगन संथाल के नेतृत्व में भूमि पुनर्वितरण के लिये संघर्ष के बाद यह पूर्वी भारत में व्यापक विद्रोह के रूप में विकसित हो गया है।

माओवादी विचारधारा में निहित यह आंदोलन गहन आर्थिक असमानताओं और सामाजिक अन्याय को उजागर करता है। नक्सलवाद से जुड़ा असंतोष और हिंसा प्रणालीगत असमानता तथा बहिष्कार से उपजी है, जिसे इस स्थायी मुद्दे के समाधान हेतु समग्र विकास एवं समावेशन प्रयासों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये।

मुख्य बिंदु:

नक्सलवाद के कारण

सामाजिक-आर्थिक कारक:

  • गरीबी और विकास का अभाव: नक्सलवाद उच्च गरीबी और अविकसित क्षेत्रों में पनपता है।
    • आदिवासी (स्वदेशी) और दलित (निम्न जाति) समुदाय अक्सर सामाजिक बहिष्कार तथा स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच का अनुभव करते हैं, जिससे उनमें असंतोष बढ़ता है और वे नक्सलवादी विचारधारा के प्रति अधिक ग्रहणशील होते हैं।
  • भूमि अधिकार संबंधी विवाद: खनन और विकास परियोजनाओं के कारण आदिवासियों को उनकी पारंपरिक भूमि से बेदखल किया जा रहा है, जिससे उनके मन में अन्याय की भावना उत्पन्न हुई है। नक्सली इन विवादों का फायदा उठाकर खुद को हाशिये पर पड़े लोगों का चैंपियन बताते हैं और अपने हितों को आगे बढ़ाते हैं।
  • शक्तिशाली संस्थाओं द्वारा शोषण: आदिवासी समुदायों का अक्सर ज़मींदारों, साहूकारों और खनन कंपनियों द्वारा शोषण किया जाता है। नक्सली स्वयं को इस शोषण के विरुद्ध रक्षक के रूप में पेश करते हैं और प्रभावित लोगों से समर्थन प्राप्त करते हैं।
  • जातिगत भेदभाव: दलित, जो प्रणालीगत सामाजिक और आर्थिक हाशिये पर हैं, नक्सलवाद की ओर आकर्षित हो सकते हैं क्योंकि यह जातिगत पदानुक्रम को चुनौती देता है तथा अधिक न्यायसंगत सामाजिक व्यवस्था का समर्थन करता है।

राजनीतिक कारक:

  • कमज़ोर शासन और बुनियादी ढाँचे की कमी: नक्सलवाद उन क्षेत्रों में व्याप्त है, जहाँ सरकार की उपस्थिति कमज़ोर है तथा बुनियादी ढाँचे की कमी है, जैसे खराब सड़कें और संचार नेटवर्क। इससे नक्सली अपेक्षाकृत आसानी से और न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ कार्य कर सकते हैं।
  • प्रशासन की ओर से कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं: यहाँ तक ​​कि जब सुरक्षा बल किसी क्षेत्र पर नियंत्रण कर लेते हैं, तो उसके बाद प्रशासनिक अनुवर्ती कार्रवाई और आवश्यक सेवाओं के प्रावधान की कमी के कारण लोगों में लगातार शिकायतें बनी रहती हैं।
  • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अक्सर एक अलगाव होता है, राज्य सरकारें कभी-कभी नक्सलवाद को मुख्य रूप से एक केंद्रीय मुद्दा मानती हैं तथा सक्रिय उपाय करने में विफल रहती हैं।
  • लोकतंत्र से मोहभंग: नक्सली इस धारणा का फायदा उठाते हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था उनकी ज़रूरतों और शिकायतों को दूर करने में विफल रही है तथा बदलाव के लिये एक वैकल्पिक हिंसक रास्ता अपनाते हैं।

अतिरिक्त कारक:

  • वैश्वीकरण: वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव, विशेष रूप से कॉर्पोरेट हितों के लिये भूमि अधिग्रहण के कारण होने वाले विस्थापन ने असंतोष को बढ़ावा दिया है तथा नक्सलवाद के लिये समर्थन बढ़ाया है।
  • भौगोलिक और परिचालन संबंधी चुनौतियाँ: नक्सली समूह दूर-दराज़ के घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहते हैं, जहाँ अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण सुरक्षा बलों के लिये उन्हें ट्रैक करना और प्रभावी ढंग से उनका मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है।
  • नक्सलवाद को समाप्त करने को लेकर भ्रम: नक्सलवाद को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है, और इस बात पर बहस होती है कि इसे मुख्य रूप से एक सामाजिक मुद्दे के रूप में या सुरक्षा खतरे के रूप में निपटाया जाना चाहिये।

भारत में नक्सलवाद का समग्र समाधान:

  • बातचीत करना: सरकार और नक्सलवादियों के बीच औपचारिक रूप से बातचीत करना।
    • शिकायतों के समाधान के लिये अनुकूल शर्तों पर बातचीत करना तथा शांतिपूर्ण समाधान निकालना, समकालीन हथियारों में मौजूदा गिरावट तथा विश्वासघात की घटनाओं में कमी का लाभ उठाना।
  • आर्थिक और राजनीतिक प्रोत्साहन: बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करके जनजातीय समुदायों के लिये आर्थिक तथा राजनीतिक सुरक्षा बढ़ाना।
    • बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के माध्यम से नक्सली समर्थन के विकल्प की पेशकश करने से उनका आधार कमज़ोर हो सकता है।
  • स्थानीय स्तर पर निर्देशित निगरानी: मौसमी प्रारूप और भौगोलिक सीमाओं के बारे में स्थानीय ज्ञान का लाभ उठाते हुए, नक्सली गतिविधियों की समुदाय आधारित निगरानी को लागू करना।
    • बिना किसी प्रतिकूल परिणाम के प्रभावी स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये सलवा जुडूम जैसे पुराने तरीकों को आधुनिक और परिष्कृत बनाना।
  • बहुआयामी दृष्टिकोण: एक व्यापक रणनीति अपनाएँ जिसमें सामाजिक-आर्थिक विकास, संवाद और लक्षित सैन्य कार्रवाई शामिल हो।
    • बल का संतुलित उपयोग बनाए रखते हुए बेहतर सेवाओं और बुनियादी ढाँचे के माध्यम से नक्सलवाद के मूल कारणों को दूर करने पर राष्ट्रीय संसाधनों को केंद्रित करना।
      • SAMADHAN रणनीति वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिये भारत सरकार द्वारा अपनाया गया एक व्यापक दृष्टिकोण है, जो स्मार्ट नेतृत्व, आक्रामक रणनीति, प्रेरणा और प्रशिक्षण, कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी, डैशबोर्ड-आधारित KPI (मुख्य प्रदर्शन संकेतक), प्रौद्योगिकी का उपयोग, प्रत्येक ज़िले के लिये कार्य योजना और वित्तपोषण तक पहुँच पर केंद्रित है।
  • संघीय सहयोग को मज़बूत करना: एक सुसंगत राष्ट्रीय रणनीति सुनिश्चित करने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय में सुधार करना।
    • दोनों स्तरों की सरकारों को नक्सलवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये संसाधन जुटाने, खुफिया जानकारी साझा करने और विकास कार्यक्रमों को लागू करने के लिये मिलकर कार्य करना चाहिये।

निष्कर्ष:

नक्सलवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये भारत को एक समग्र रणनीति अपनानी चाहिये, जो सामाजिक-आर्थिक विकास, सार्थक संवाद और लक्षित सुरक्षा उपायों को एकीकृत करती हो। प्रणालीगत असमानताओं को दूर करके और समावेशी शासन को बढ़ावा देकर, सरकार स्थायी शांति और स्थिरता बना सकती है। असंतोष को रचनात्मक भागीदारी में बदलने और विद्रोही विचारधाराओं के आकर्षण को कम करने के लिये यह बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक होगा।