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दिवस-34: गोल्डन क्रिसेंट और गोल्डन ट्राइंगल के बीच अवस्थित होने के कारण भारत मादक पदार्थों की तस्करी के प्रति संवेदनशील है। इस मुद्दे के समाधान की राह में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करते हुए भारत में मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के क्रम में की गई सरकारी पहलों का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

15 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | आंतरिक सुरक्षा

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • गोल्डन क्रिसेंट और गोल्डन ट्राइंगल के बारे में संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • ड्रग तस्करी के मुद्दे को संबोधित करने में चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • ड्रग तस्करी से निपटने के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में बताइये।
  • ड्रग तस्करी से निपटने के लिये सुझाव दीजिये।
  • उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत की भौगोलिक स्थिति दो प्रमुख ड्रग उत्पादक क्षेत्रों- गोल्डन क्रिसेंट (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान) और गोल्डन ट्रायंगल (थाईलैंड-लाओस-म्याँमार) के बीच स्थित है, जो ड्रग तस्करी और दुरुपयोग के लिये इसकी संवेदनशीलता को काफी हद तक बढ़ा देता है। अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान से मिलकर बना गोल्डन क्रिसेंट अफीम उत्पादन का एक प्रमुख वैश्विक केंद्र है, जो भारत-पाकिस्तान सीमा से निकटता के कारण जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान तथा गुजरात जैसे भारतीय राज्यों को सीधे प्रभावित करता है।

इसी तरह, गोल्डन ट्राइंगल, जिसमें लाओस, म्याँमार और थाईलैंड के कुछ हिस्से शामिल हैं, हेरोइन के उत्पादन और तस्करी के लिये जाना जाता है, अकेले म्याँमार में विश्व की 80% हेरोइन की आपूर्ति होती है। ये क्षेत्र न केवल अवैध दवाओं के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं, बल्कि भारत को पारगमन मार्ग के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं, जिससे देश की आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

मुख्य बिंदु:

भारत में मादक पदार्थों की तस्करी के मुद्दे से निपटने में चुनौतियाँ:

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और संसाधन: प्रशिक्षित कर्मियों, विशेष उपकरणों और सुविधाओं की कमी प्रभावी दवा नियंत्रण में बाधा डालती है।
    • इसमें मौजूदा कानूनों द्वारा कवर नहीं किये गए उभरते मनोवैज्ञानिक पदार्थों से निपटने के लिये अपर्याप्त संसाधन शामिल हैं।
  • उच्च मांग और सामाजिक कलंक: बड़ी आबादी के कारण दवाओं की मांग अधिक होती है, जबकि सामाजिक के कारण व्यक्ति उपचार लेने से हतोत्साहित होता है, जिससे रोकथाम और पुनर्वास के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
  • मादक पदार्थ आतंकवाद और सीमा पार तस्करी: आतंकवादी संगठनों और मादक पदार्थ तस्करी नेटवर्क के बीच जटिल अंतर्क्रियाएँ।
    • उदाहरण के लिये, मादक पदार्थों के व्यापार से प्राप्त राजस्व का 15% कश्मीर में आतंकवाद के वित्तपोषण में उपयोग किया गया तथा मादक पदार्थों एवं हथियारों की तस्करी के मार्गों का उपयोग अक्सर आतंकवादियों और तस्करों दोनों द्वारा किया गया।
  • उत्पादन और तस्करी के मार्गों में वृद्धि: म्याँमार जैसे पड़ोसी देशों में नशीली दवाओं के उत्पादन में वृद्धि, जिसने वर्ष 2023 में 1,080 मीट्रिक टन अफीम का उत्पादन किया तथा अफगानिस्तान, जहाँ तालिबान के प्रतिबंध के बावजूद अफीम उत्पादन में वृद्धि देखी गई।
    • मादक पदार्थों की तस्करी समुद्री मार्गों और अवागमन सीमाओं के माध्यम से की जाती है, जिसमें महत्त्वपूर्ण ज़ब्ती की सूचना मिली है, जिसमें वर्ष 2023 में 2,826 किलोग्राम तथा फरवरी 2024 में 3,132 किलोग्राम मादक पदार्थों की बड़ी ज़ब्ती शामिल है।
  • उभरती तस्करी तकनीकें: ड्रोन और अंडरवाटर ड्रोन जैसी उन्नत तस्करी तकनीकों का उपयोग, भारत-पाकिस्तान सीमा तथा अन्य समुद्री मार्गों पर ड्रोन द्वारा ड्रग्स ले जाने की घटनाएँ सामने आई हैं।
  • डार्क नेट और क्रिप्टोकरेंसी: ड्रग तस्करी के लिये डार्क नेट और क्रिप्टोकरेंसी का बढ़ता उपयोग।
    • वर्ष 2020, 2021 और 2022 में, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने इन तकनीकों से जुड़े 59 मामलों की जाँच की।

नशीली दवाओं की तस्करी से निपटने के लिये सरकारी पहल

  • विधायी उपाय:
    • स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985: स्वापक औषधियों और मन:प्रभावी पदार्थों के उत्पादन, कब्ज़े, बिक्री, खरीद, परिवहन, भंडारण तथा उपभोग पर प्रतिबंध लगाता है।
  • नशीली दवाओं की मांग में कमी के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (2018-2025):
    • निवारक शिक्षा और जागरूकता सृजन।
    • नशीली दवाओं पर निर्भर व्यक्तियों की पहचान, परामर्श, उपचार और पुनर्वास।
    • सरकार और गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से सेवा प्रदाताओं के लिये प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण।
  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष:
    • NDPS अधिनियम के तहत निम्नलिखित को वित्तपोषित करने के लिये बनाया गया:
      • अवैध तस्करी का मुकाबला करना।
      • नशीली दवाओं के दुरुपयोग को नियंत्रित करना।
      • नशा करने वाले लोगों की पहचान कर उनका इलाज और पुनर्वास करना।
      • नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकना।
      • नशीली दवाओं के दुरुपयोग के विरुद्ध सार्वजनिक शिक्षा।

नशा मुक्त भारत अभियान (2020):

  • भारत को नशा मुक्त बनाने का लक्ष्य:
    • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) द्वारा आपूर्ति में कमी लाने के प्रयास।
    • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा आउटरीच, जागरूकता और मांग में कमी लाना।
    • स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से उपचार और पुनर्वास।
  • भारतीय तटरक्षक बल की पहल:
    • मादक पदार्थों की ज़ब्ती के लिये पड़ोसी देशों (श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश) की सुरक्षा एजेंसियों और तट रक्षकों के साथ सहयोग।
    • हाल ही में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास 2,160 किलोग्राम मेथामफेटामाइन की ज़ब्ती।
  • अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और अभिसमय:
    • भारत निम्नलिखित पर हस्ताक्षरकर्त्ता है:
      • नारकोटिक ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1961)।
      • साइकोट्रॉपिक पदार्थों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1971)।
      • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों में अवैध तस्करी के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)।
      • ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (2000)।

आगे की राह:

  • उन्नत प्रवर्तन और कानूनी उपाय:
    • सीमा पार तस्करी नियंत्रण को मज़बूत करना और नशीली दवाओं के प्रवर्तन में सुधार करना।
    • नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों को रोकने के लिये NDPS अधिनियम, 1985 के तहत सख्त दंड लगाने पर विचार करना।
  • मांग में कमी और जन जागरूकता:
    • अभियानों और गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ाएँ तथा नशीली दवाओं की लत से जुड़े कलंक को कम करने हेतु कार्य करना।
      • नशीली दवाओं की लत वाले लोगों को अपराधी के रूप में नहीं बल्कि सहायता की आवश्यकता वाले पीड़ित के रूप में पहचानना।
  • एकीकृत दृष्टिकोण और सामाजिक-आर्थिक समाधान:
    • स्कूल के पाठ्यक्रम में नशीली दवाओं के बारे में शिक्षा और उचित परामर्श प्रदान करना।
    • सभी एजेंसियों के बीच प्रयासों का समन्वय करना और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के मूल कारणों को दूर करने के लिये अधिक रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के तौर पर, मादक पदार्थों के तस्करों और आतंकवादी संगठनों की बदलती रणनीति के साथ मादक पदार्थों के तस्करी से निपटने के लिये भारत के प्रयासों को ज़ोर देना चाहिये। कानूनी ढाँचों को मज़बूत करना, फोरेंसिक क्षमताओं को बढ़ाना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में सुधार करना मादक पदार्थों की आपूर्ति शृंखलाओं तथा वित्तीय नेटवर्क को बाधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

लक्षित कानून और क्षेत्रीय समन्वय सहित एक व्यापक जोखिम-शमन दृष्टिकोण राष्ट्रीय सुरक्षा तथा मादक पदार्थों की तस्करी की जटिल चुनौती से निपटने के लिये आवश्यक है।