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  • 15 Aug 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    दिवस-34: भारत को आतंकवाद की लगातार विकसित हो रही रणनीति से प्रभावी ढंग से निपटने के क्रम में अपने आंतरिक सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करना होगा। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में आतंकवाद के बारे में संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
    • भारत के आंतरिक सुरक्षा ढाँचे में मुद्दों का उल्लेख कीजिये।
    • आंतरिक सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करने के उपाय सुझाइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वैश्विक आतंकवाद सूचकांक, 2024 के अनुसार, भारत में आतंकवाद से हुई मौतों में कमी देखी गई और वैश्विक स्तर पर इसकी रैंकिंग में सुधार हुआ तथा यह 14वें स्थान पर पहुँच गया, जो आतंकवाद से निपटने के लिये इसके निरंतर प्रयासों को दर्शाता है। हालाँकि नागरिकों पर बढ़ते हमलों और ड्रोन के उपयोग सहित आतंकवादी रणनीति में बदलाव, इन उभरते खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने हेतु भारत के लिये अपने आंतरिक सुरक्षा ढाँचे को और मज़बूत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

    मुख्य बिंदु:

    भारत की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ:

    • आतंकवाद और सीमा पार घुसपैठ: भारत को, खासकर जम्मू और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में, आतंकवाद और सीमा पार घुसपैठ से लगातार खतरा है। वर्ष 2008 के मुंबई हमलों जैसे हाई-प्रोफाइल हमले विभिन्न आतंकवादी समूहों द्वारा उत्पन्न निरंतर खतरे को उजागर करते हैं, जिनमें अलगाववादी तथा धार्मिक उग्रवाद से प्रेरित समूह भी शामिल हैं।
    • साइबर सुरक्षा खतरे: साइबर अपराध का बढ़ना एक बड़ी चुनौती है, भारत में साइबर हमलों के प्रति तेज़ी से संवेदनशीलता बढ़ती जा रही। वर्ष 2017 के WannaCry रैनसमवेयर हमले जैसी घटनाएँ हैकर्स, साइबर अपराधियों और राज्य प्रायोजित समूहों द्वारा उत्पन्न खतरे को दर्शाती हैं।
    • विद्रोह और अलगाववादी आंदोलन: भारत लंबे समय से उत्तर-पूर्व और मध्य भारत जैसे क्षेत्रों में विद्रोह तथा साथ ही नक्सली आंदोलन से जूझ रहा है। जातीय, धार्मिक और वैचारिक कारकों से प्रेरित ये विद्रोह प्रभावित क्षेत्रों को अस्थिर करना जारी रखते हैं।
    • सीमा सुरक्षा और अवैध आव्रजन: पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्याँमार जैसे देशों के साथ भारत की व्यापक सीमाएँ सीमा संबंधी सुरक्षा में चुनौतियों का कारण बनती हैं, जिसमें हथियारों, ड्रग्स और अवैध आव्रजन की तस्करी शामिल है। यह अवैध गतिविधि सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है और संसाधनों पर दबाव डालती है।
    • उभरते खतरे: नई चुनौतियों में सोशल मीडिया का उदय, डार्क नेट गतिविधियाँ और क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग शामिल है, जो संगठित अपराध, गलत सूचना अभियान और अन्य अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त, अफगानिस्तान और म्याँमार जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिरता भारत के आंतरिक सुरक्षा परिदृश्य को और जटिल बना देती है।
      • हवाई आतंकवाद, जिसमें विमान और UAVs का निर्देशित मिसाइलों के रूप में उपयोग शामिल है, प्रमुख स्थानों तथा बुनियादी ढाँचे के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न करता है, जिससे ऐसे अपरंपरागत आतंकवादी कृत्यों का आकलन करने एवं उन्हें रोकने के लिये तंत्र की आवश्यकता होती है।
      • सीमा सुरक्षा बल ने वर्ष 2024 में पाकिस्तान के साथ पंजाब की सीमा पर 125 ड्रोनों पर रोक लगाई है, जो वर्ष 2022 में 22 ड्रोन और 2023 में 107 ड्रोनों को रोकने की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।

    भारत के आंतरिक सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करना:

    • उन्नत खुफिया और निगरानी: आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिये खुफिया क्षमताओं को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
      • केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय, साथ ही AI, ड्रोन और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकियों से निगरानी एवं प्रतिक्रिया को बढ़ावा मिल सकता है।
        • उदाहरण के लिये, भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) साइबर खतरों से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है तथा निरंतर तकनीकी प्रगति की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण: नियमित क्षमता निर्माण कार्यक्रम और उन्नत हथियारों तथा आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञता के साथ सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण आवश्यक है।
      • विशेष इकाइयों की स्थापना और साइबर सुरक्षा उपायों को अपनाना महत्त्वपूर्ण है, खासकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए। वामपंथी उग्रवाद के प्रति सरकार का बहुआयामी दृष्टिकोण, सुरक्षा, विकास और अधिकार-आधारित रणनीतियों को मिलाकर, एक समग्र प्रतिक्रिया के महत्त्व को दर्शाता है।
    • विधायी सुधार और नीतिगत ढाँचा: उभरते खतरों से निपटने के लिये विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) जैसे आतंकवाद विरोधी कानूनों को अद्यतन करना आवश्यक है।
      • वर्ष 2011 में राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (NCTC) की स्थापना से एजेंसियों के बीच समन्वय में सुधार हुआ है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाने तथा ऐसे कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिये अधिक सुधारों की आवश्यकता है।
    • आतंकवाद-रोधी समन्वय में सुधार: राष्ट्रीय और राज्य सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय महत्त्वपूर्ण है।
      • एक पृथक आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय (MoIS) तथा पूर्णत: क्रियाशील NCTC की स्थापना की सिफारिश से आतंकवाद-रोधी प्रयासों के प्रति अधिक केंद्रित तथा एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित होगा।
        • सरकार ने वास्तविक समय पर खुफिया जानकारी के प्रसार हेतु राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया तथा बेहतर समन्वय की निरंतर आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
    • पुलिस बलों में क्षमता निर्माण: प्रशिक्षित पुलिस कर्मियों की कमी आंतरिक सुरक्षा संकटों में प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ताओं की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है।
      • बेहतर प्रशिक्षण कार्यक्रम, साइबर विशेषज्ञों की कमी को दूर करना तथा यह सुनिश्चित करना कि पुलिस बलों के पास आधुनिक उपकरण हों, आवश्यक हैं।
        • राज्य पुलिस बल में प्रति 100,000 जनसंख्या पर 220 अधिकारियों की संख्या का प्रस्तावित विस्तार, ज़मीनी स्तर पर मज़बूत सुरक्षा उपस्थिति की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
    • क्षेत्रीय चुनौतियों के प्रति व्यापक दृष्टिकोण: उग्रवाद, सीमा पार आतंकवाद और अवैध प्रवासन से निपटने हेतु बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है।
      • जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी के दावों के बावजूद सरकार के प्रयास निरंतर सतर्कता की आवश्यकता को उजागर करते हैं। इसके अतिरिक्त, उत्तर-पूर्व जैसे क्षेत्रों में अवैध प्रवास तथा मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के लिये बेहतर खुफिया जानकारी, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और क्षेत्रीय विकास पहलों को शामिल करते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष:

    भारत की उभरती आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों के लिये सक्रिय और अनुकूल दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें उन्नत प्रौद्योगिकी, विधायी सुधार और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को एकीकृत करना शामिल है। सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण और खुफिया समन्वय को बढ़ाकर, भारत उभरते खतरों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है, जिससे पारंपरिक और नए युग की सुरक्षा चिंताओं के सामने दीर्घकालिक स्थिरता तथा अनुकूलता सुनिश्चित हो सके।

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