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  • 14 Aug 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    दिवस- 33: भारतीय उपमहाद्वीप में बादल फटने (Cloudbursts) की प्रक्रिया एवं विद्यमानता की व्याख्या कीजिये। इस आपदा से निपटने हेतु कौन-सी आपदा प्रबंधन तकनीकें उपलब्ध हैं? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • बादल फटने को परिभाषा कीजिये।
    • भारतीय उपमहाद्वीप में बादल फटने की प्रक्रिया और घटना की व्याख्या कीजिये।
    • इस खतरे से निपटने के लिये उपलब्ध आपदा प्रबंधन तकनीकों पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, बादल फटना अचानक होने वाली भारी बारिश है, जिसमें एक घंटे से भी कम समय में 10 वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में 10 सेमी. से अधिक बारिश होती है। यह घटना आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों, खासकर हिमालय, में घटित होती हैं।

    मुख्य बिंदु:

    बादल फटने की प्रक्रिया:

    • बादल फटने की घटना तब होती है, जब उष्ण पवनें वर्षा की बूँदों को गिरने से रोकती हैं, जिससे वे बड़ी हो जाती हैं जबकि नीचे नई छोटी बूँदें बन जाती हैं।
    • इससे वायुमंडल में जल का एक महत्त्वपूर्ण संचय होता है, जो ऊपरी धाराओं के कमज़ोर होने पर आकस्मिक उत्सर्जन होता है।
    • बादल फटने की घटनाएँ प्राय: भारतीय उपमहाद्वीप के पर्वतीय क्षेत्रों में देखी जाती हैं, जिसका मुख्य कारण इस क्षेत्र की जटिल स्थलाकृति है, जो ऑरोग्राफिक लिफ्टिंग (Orographic Lifting) को सुविधाजनक बनाती है।
      • ऑरोग्राफिक लिफ्टिंग तब होती है जब पवन ऊपर उठती है और पहाड़ के पवनाभिमुख में ऊपर की ओर उठते समय शीतल हो जाती है।
      • यह प्रक्रिया बादलों के विकास और वर्षा में वृद्धि करती है क्योंकि आर्द्र पवनें पहाड़ों पर ऊपर की ओर बढ़ती हैं, जिससे मानसून की गतिशीलता तथा स्थानीय जलवायु पैटर्न इन तीव्र वर्षा घटनाओं को और अधिक प्रभावित करते हैं।

    भारतीय उपमहाद्वीप में बादल फटने की घटनाएँ:

    • भारतीय उपमहाद्वीप में यह आमतौर पर तब होता है जब मानसूनी मेघ बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उत्तर की ओर बढ़ते हैं और मैदानी क्षेत्रों से होते हुए हिमालय की ओर पहुँचते हैं, जहाँ कभी-कभी प्रति घंटे 75 मिमी. वर्षा देखी जाती है।
    • उत्तराखंड में बादल फटना (जुलाई 2021): चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में विनाशकारी बादल फटने से आकस्मिक बाढ़, भूस्खलन एवं बुनियादी ढाँचे तथा जान-माल का भारी नुकसान हुआ।
    • हिमाचल में प्रदेश बादल फटना (अगस्त 2020): कुल्लू, लाहौल-स्पीति और किन्नौर में बादल फटने से भूस्खलन तथा आकस्मिक बाढ़ की घटना हुई, जिससे सड़कें, पुल और घर क्षतिग्रस्त हो गए।

    बादल फटने के परिणाम क्या हैं?

    • फ्लैश फ्लड: फ्लैश फ्लड तीव्र वर्षा के दौरान या उसके बाद जल स्तर में अचानक, स्थानीय स्तर पर होने वाली वृद्धि है।
      • अधिक वर्षा के 6 या 3 घंटे के भीतर अचानक बाढ़ आ जाती है। यह आमतौर पर तीव्र तूफान के कारण होता है, लेकिन बाँध या तटबंध टूटने और मिट्टी के धँसने से भी हो सकता है।
      • वर्षा की तीव्रता, स्थान, भूमि उपयोग, स्थलाकृति, वनस्पति, मृदा प्रकार और जल सामग्री जैसे कारक फ्लैश फ्लड की गति तथा स्थान निर्धारित करते हैं।
    • भूस्खलन: भूस्खलन किसी ढलान से नीचे की ओर चट्टान, मिट्टी या मलबे जैसी सामग्री का बड़े पैमाने पर खिसकना है। यह अचानक या लंबे समय तक धीरे-धीरे हो सकता है।
      • अधिक वर्षा, अपरदन और अपक्षय जैसे कारक भूस्खलन का कारण बन सकते हैं।
      • IIT-मद्रास के शोध के अनुसार, भारत में भूस्खलन वैश्विक मौतों का लगभग 8% है, जिसमें वर्ष 2001 से वर्ष 2021 तक 847 मौतें हुईं और हज़ारों लोग विस्थापित हुए।
      • भारत का लगभग 13.17% क्षेत्र भूस्खलन के लिये अतिसंवेदनशील है, जिसमें से 4.75% को "अत्यधिक संवेदनशील" के रूप में नामित किया गया है।
      • सिक्किम सबसे अधिक संवेदनशील राज्य है, जबकि केरल का 14% से अधिक भूभाग अत्यधिक संवेदनशील श्रेणी में है।
    • कीचड़ प्रवाह (Mudflows): यह जल प्रवाह का एक प्रकार है, जिसकी विशेषता इसका उच्च घनत्व और दलदलापन है तथा इसमें निलंबित कण एवं गाद की अधिक मात्रा होती है।
      • कीचड़ प्रवाह केवल सबसे मोटे पदार्थों का परिवहन और जमाव कर सकता है, जिससे अपरिवर्तनीय तलछट का जमाव होता है तथा यह आमतौर पर नियमित जल धाराओं जितना दूर तक नहीं बहता है।

    बादल फटने की घटना के विनाशकारी प्रभाव को कम करने के तरीके:

    • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: बादल फटने का पूर्वानुमान करने और समय पर चेतावनी देने के लिये प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ विकसित करना, ताकि लोग बचाव की तैयारी कर सकें तथा यदि आवश्यक हो तो वहाँ से निकल सकें।
    • शहरी नियोजन और बुनियादी ढाँचा: अतिरिक्त जल प्रबंधन और बाढ़ को कम करने के लिये आघात सहनीय शहरी नियोजन तथा बुनियादी ढाँचे, जैसे कि तूफानी जल निकासी प्रणालियों, प्रतिधारण तालाबों एवं हरित स्थानों में निवेश करना।
    • जलग्रहण क्षेत्रों का प्रबंधन: जलग्रहण क्षेत्रों के प्रबंधन के लिये कार्यप्रणालियों को लागू करना, जैसे मृदा अपरदन को कम करना और मृदा अंतःस्यंदन को बढ़ाना, ताकि जल प्रवाह को नियंत्रित करने तथा बादल फटने के प्रभाव को कम करने में सहायता मिल सके।
    • पुनर्वनीकरण और हरित अवसंरचना: अतिरिक्त जल को अवशोषित करने, मृदा अपरदन को कम करने और ढलानों को स्थिर करने के लिये पेड़ लगाए जाएँ तथा हरित क्षेत्र को बनाए रखने की आवश्यकता है, जिससे बादल फटने के प्रभाव को कम करने में सहायता मिलेगी।
    • जागरूकता और शिक्षा: समुदायों को बादल फटने के जोखिमों के बारे में शिक्षित करना तथा उन्हें प्रतिक्रिया और निकासी प्रक्रियाओं पर प्रशिक्षित करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे आवश्यक सावधानियाँ बरतें।
    • सतत् भूमि उपयोग अभ्यास: ऐसी भूमि उपयोग प्रथाओं को बढ़ावा देना जो बादल फटने की आशंका को कम करती हैं, जैसे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण से बचना, वनों की कटाई को नियंत्रित करना और मृदा संरक्षण उपायों को लागू करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संगठित होकर विशेष रूप से साझा नदी घाटियों में बादल फटने की घटनाओं के प्रबंधन के लिये सर्वोत्तम अभ्यास, प्रौद्योगिकी एवं संसाधनों को साझा करना।

    निष्कर्ष:

    भारत में बादल फटने की घटनाएँ अचानक और विनाशकारी प्रकृति के कारण महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती हैं। जबकि प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सामुदायिक तैयारी और लचीला बुनियादी ढाँचा उनके प्रभाव को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, पूर्वानुमान संबंधी सीमाओं तथा स्थलाकृतिक बाधाओं जैसी चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है। कमज़ोर समुदायों की रक्षा करने तथा भारतीय उपमहाद्वीप में बादल फटने के विनाशकारी प्रभावों को कम करने के लिये अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और समन्वित आपदा प्रबंधन रणनीतियों में निरंतर निवेश आवश्यक है।

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