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  • 13 Aug 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस: 32- जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष में COP 28 के परिणाम महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन इस संदर्भ में आगे की राह चुनौतीपूर्ण और आशाजनक दोनों ही है। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
    • COP 28 के प्रमुख परिणामों की पहचान कीजिये।
    • COP 28 के परिणामों से जुड़ी प्रमुख चिंताओं पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह सुझाइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के ढाँचे के भीतर आयोजित होने वाली बैठकें हैं, जो वर्ष 1992 में स्थापित एक बहुराष्ट्रीय संधि है। हाल ही में पार्टियों का 28वाँ सम्मेलन (COP-28) दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में हुआ, जिसमें 197 देशों के प्रतिनिधियों ने ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये अपनी पहल प्रस्तुत की और भविष्य की जलवायु कार्रवाइयों पर चर्चा की।

    मुख्य बिंदु:

    COP 28 (2023) की प्रमुख उपलब्धियाँ:

    • जीवाश्म ईंधन से दूर जाना (Transitioning Away from Fossil Fuels):
      • COP28 ने ऊर्जा प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन से उपयुक्त, व्यवस्थित एवं समतामूलक तरीके से दूर जाने और इस महत्त्वपूर्ण दशक में कार्रवाई तीव्र करने का आह्वान किया है ताकि वर्ष 2050 तक ‘शुद्ध शून्य’ (Net Zero) प्राप्त किया जा सके।
    • अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (Global Goal on Adaptation- GGA):
      • वैश्विक अनुकूलन लक्ष्य अनुकूली क्षमताओं को बढ़ाने और सतत् विकास के लिये भेद्यता/संवेदनशीलता को कम करने पर केंद्रित है।
      • COP28 में यह टेक्स्ट अनुकूलन वित्त को दोगुना करने और आने वाले वर्षों में अनुकूलन आवश्यकताओं के आकलन एवं निगरानी की योजना बनाने का आह्वान करता है।
      • सकारात्मक है कि जल सुरक्षा, पारिस्थितिकी तंत्र बहाली और स्वास्थ्य पर लक्ष्यों के लिये वर्ष 2030 की एक स्पष्ट तिथि को इस टेक्स्ट में शामिल किया गया है।
    • जलवायु वित्त (Climate Finance):
      • व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) का आकलन है कि जलवायु वित्त के लिये नए सामूहिक मात्रात्क लक्ष्य (New Collective Quantified Goal- NCQG) के तहत वर्ष 2025 में धनी देशों पर विकासशील देशों का 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर बकाया होगा।
      • लक्ष्य यह है कि वर्ष 2025 से पूर्व एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित किया जाए। यह लक्ष्य प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर से शुरू होगा।
      • इसमें शमन के लिये 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर, अनुकूलन के लिये 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर और हानि एवं क्षति के लिये 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल है।
    • वैश्विक स्टॉकटेक टेक्स्ट (Global Stocktake Text):
      • ग्लोबल स्टॉकटेक(GST) वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत स्थापित एक आवधिक समीक्षा तंत्र है।
      • वैश्विक स्टॉकटेक टेक्स्ट में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के दायरे में रखने के लिये आठ कदम प्रस्तावित हैं।
      • इसमें वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता सुधार की वैश्विक औसत वार्षिक दर को दोगुना करने का आह्वान किया गया है।
      • इसमें वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर गैर-CO2 उत्सर्जन को (विशेष रूप से मीथेन उत्सर्जन सहित) व्यापक रूप से कम करने का आह्वान किया गया है।
    • हानि एवं क्षति कोष (Loss and Damage Fund):
      • सदस्य देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहे देशों को मुआवज़ा देने के उद्देश्य से हानि एवं क्षति (Loss and Damage- L&D) कोष को संचालित करने के लिये एक समझौते पर पहुँचे हैं।
      • अल्पविकसित देशों (LDCs) और छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) के लिये एक विशिष्ट प्रतिशत निर्धारित किया गया है।
      • आरंभिक रूप से हानि एवं क्षति कोष की निगरानी विश्व बैंक करेगा।
    • वैश्विक नवीकरणीय और ऊर्जा दक्षता प्रतिज्ञा (Global Renewables and Energy Efficiency Pledge):
      • प्रतिज्ञा में कहा गया है कि हस्ताक्षरकर्त्ता वर्ष 2030 तक विश्व की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को तीन गुना (कम-से-कम 11,000 गीगावॉट) करने के लिये मिलकर कार्य करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
      • इसमें वर्ष 2030 तक प्रत्येक वर्ष ऊर्जा दक्षता सुधार की वैश्विक औसत वार्षिक दर को 2% से दोगुना कर 4% से अधिक करने का भी आह्वान किया गया है।
    • COP28 के लिये वैश्विक शीतलन प्रतिज्ञा (Global Cooling Pledge):
      • इसमें हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में 66 राष्ट्रीय सरकारें शामिल हैं जो वर्ष 2050 तक वर्ष 2022 के स्तर के सापेक्ष वैश्विक स्तर पर सभी क्षेत्रों में शीतलन-संबंधी उत्सर्जन को कम-से-कम 68% कम करने के लिये मिलकर कार्य करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
    • परमाणु ऊर्जा को तीन गुना करने की घोषणा (Declaration to Triple Nuclear Energy):
      • COP28 में की गई घोषणा का लक्ष्य वर्ष 2050 तक वैश्विक परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाना है।

    COP28 में भारत की प्रमुख गतिविधियाँ:

    • हरित ऋण पहल (Green Credit Initiative):
      • हरित ऋण पहल को स्वैच्छिक ग्रह-समर्थक कार्रवाइयों को प्रोत्साहित करने हेतु एक तंत्र के रूप में संकल्पित किया गया है जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती के लिये एक प्रभावी प्रतिक्रिया होगी।
      • यह प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने और उनका पुनरुद्धार करने के लिये बंजर/अपघटित भूमि तथा नदी जलग्रहण क्षेत्रों में वृक्षारोपण के लिये हरित ऋण जारी करने की परिकल्पना करता है।
    • उद्योग परिवर्तन के लिये नेतृत्व समूह का द्वितीय चरण (Phase II of the Leadership Group for Industry Transition- LeadIT 2.0):
      • यह समावेशी एवं न्यायसंगत उद्योग परिवर्तन, सह-विकास एवं निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और उद्योग परिवर्तन के लिये उभरती अर्थव्यवस्थाओं को वित्तीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • ग्लोबल रिवर सिटीज़ एलायंस (GRCA):
      • इसे भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत क्रियान्वित राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के नेतृत्व में COP28 में लॉन्च किया गया।
      • GRCA संवहनीय नदी-केंद्रित विकास और जलवायु प्रत्यास्थता में भारत की भूमिका को उजागर करता है।
      • यह एक मंच के रूप में ज्ञान के आदान-प्रदान, नदी-शहर जुड़ाव (river-city twinning) और सर्वोत्तम अभ्यासों के प्रसार की सुविधा प्रदान करेगा।

    संबद्ध प्रमुख चिंताएँ:

    • जीवाश्म ईंधन की चरणबद्ध समाप्ति के लिये कोई विशिष्ट समय-सीमा नहीं:
      • समझौते में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये किसी स्पष्ट और तत्काल योजना का अभाव है तथा विशिष्ट समय-सीमा या लक्ष्य के बिना जीवाश्म ईंधन से दूर जाने (‘transitioning away’) जैसी अस्पष्ट भाषा का उपयोग किया गया है।
    • वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा को तीन गुना करने पर कोई निर्दिष्ट लक्ष्य नहीं:
      • COP28 समझौता विश्व के देशों से नवीकरणीय ऊर्जा की वैश्विक स्थापित क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता में वार्षिक सुधार को दोगुना करने में योगदान करने का आह्वान करता है।
      • यह ट्रिपलिंग या तीन गुना करना एक वैश्विक लक्ष्य है और प्रत्येक देश के लिये अपनी वर्तमान स्थापित क्षमता को व्यक्तिगत रूप से तीन गुना करना अनिवार्य नहीं है। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट नहीं है कि यह ट्रिपलिंग कैसे सुनिश्चित की जाएगी।
    • अनुकूलन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कोई स्पष्ट तंत्र नहीं:
      • विकासशील देशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अनुकूलन मसौदा उनकी अपेक्षाओं से पर्याप्त कम है, क्योंकि इन उद्देश्यों को साकार करने के तरीके या इन प्रयासों को वित्तपोषित करने वाले तंत्र का कोई उल्लेख नहीं है।
    • वित्तीय प्रतिबद्धताओं पर जवाबदेही का अभाव:
      • वर्तमान में सरकारों और संस्थानों को उनकी जलवायु वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं की पूर्ति हेतु जवाबदेह ठहराने के लिये कोई स्थापित तंत्र मौजूद नहीं है।
    • जलवायु वित्त पर भिन्न-भिन्न व्याख्याएँ:
      • जलवायु वित्त प्रवाह पर डेटा को विभिन्न पद्धतियों का उपयोग कर संकलित किया जाता है और इसकी अलग-अलग व्याख्याएँ होती हैं।
      • जलवायु वित्त की दोहरी गिनती की स्थिति बन सकती है जब एक ही फंड को कई पक्षों द्वारा रिपोर्ट किया जाए; इससे वास्तविक वित्तीय प्रवाह के अति-आकलन की स्थिति बन सकती है।

    आगे की राह:

    • जलवायु वित्त लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता:
      • सभी द्विपक्षीय दाताओं को अपनी जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं की पूर्ति करनी चाहिये और अधिक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये।
      • जलवायु वित्त को राष्ट्रीय विकास योजनाओं और नीतियों में एकीकृत करने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है।
    • स्पष्ट रोडमैप और समय-सीमा:
      • प्रमुख उपलब्धियों और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये विशिष्ट समय-सीमा के साथ स्पष्ट एवं विस्तृत रोडमैप विकसित किया जाना चाहिये।
      • अंतरिम लक्ष्य स्थापित किये जाएँ जो समग्र दीर्घकालिक उद्देश्यों में योगदान करते हैं और जवाबदेही की भावना को बढ़ावा देते हैं।
    • बेहतर NDCs:
      • विश्व के देशों को अधिक महत्त्वाकांक्षी और ठोस जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों को प्रतिबिंबित करने के लिये अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDCs) को संशोधित एवं सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
      • NDCs को ऊर्जा, परिवहन, कृषि और उद्योग सहित विभिन्न कई क्षेत्रों को कवर करना चाहिये।
    • विधान और नीति समर्थन:
      • जलवायु लक्ष्यों के कार्यान्वयन का समर्थन करने वाले घरेलू विधानों एवं नीतियों को अधिनियमित एवं सशक्त करें।
      • विभिन्न क्षेत्रों में मौजूदा कानूनों और विनियमों में जलवायु संबंधी विचारों को एकीकृत करना चाहिये।
    • क्षमता निर्माण:
      • जलवायु कार्रवाइयों को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता बढ़ाने के लिये स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्षमता निर्माण में निवेश करें।
      • तकनीकी, वित्तीय और संस्थागत क्षमता का समर्थन करने के लिये प्रशिक्षण एवं संसाधन प्रदान करना चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
      • जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण, विशेष रूप से विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर, की सुविधा प्रदान की जाए।
      • विभिन्न उद्योगों में पर्यावरणीय रूप से अनुकूल समाधानों के अंगीकरण में तेज़ी लाने के लिये दुनिया के देशों के बीच अनुभव, सीखे गए सबक और सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी की जानी चाहिये।

    निष्कर्ष:

    जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष में COPs अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन आगे की राह चुनौतीपूर्ण और आशाजनक दोनों है। इसकी सफलता के लिये सामूहिक दृढ़ संकल्प, अटूट प्रतिबद्धता और यह चिह्नित किया जाना आवश्यक है कि बहुत कुछ दाँव पर लगा है। वैश्विक समुदाय निर्धारित योगदान को अपनाकर और वास्तविक साझेदारियों का निर्माण कर एक संवहनीय एवं प्रत्यास्थी भविष्य का निर्माण कर सकता है।

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