दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के सतत् विकास के लिये नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण को प्रेरित करने वाले कारकों की पहचान कीजिये।
- भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण की प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण को सुगम बनाने के लिये समाधान दीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती ऊर्जा मांगों को देखते हुए, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण भारत के सतत् विकास के लिए महत्वपूर्ण है। भारत अपनी नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) क्षमता का विस्तार करने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी यात्रा पर निकल पड़ा है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट और संभवतः वर्ष 2035 तक 1 टीडब्ल्यू है।
मुख्य बिंदु:
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण को प्रेरित करने वाले कारक:
- ऊर्जा सुरक्षा और स्वतंत्रता: भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है, जिससे वह वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा इस निर्भरता को कम करने का एक मार्ग प्रदान करती है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 तक भारत की सौर क्षमता में 85 गीगावाट की वृद्धि ने जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करना शुरू कर दिया है।
- जल की कमी: थर्मल पावर प्लांट को महत्त्वपूर्ण जल संसाधनों की आवश्यकता होती है। जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में, नवीकरणीय ऊर्जा अधिक सतत् विकल्प प्रदान करती है।
- उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का कारण आंशिक रूप से बार-बार पड़ने वाला सूखा है, जिससे ताप विद्युत उत्पादन प्रभावित होता है।
- आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर सौर ऊर्जा, पारंपरिक स्रोतों की तुलना में लागत-प्रतिस्पर्द्धी हो गई है।
- उदाहरण के लिये, दिसंबर 2020 में गुजरात ऊर्जा विकास निगम (GUVNL) (चरण XI) की 500 मेगावाट सौर परियोजनाओं की नीलामी ने 1.99 रुपए (0.025 अमेरिकी डॉलर)/kWh के न्यूनतम टैरिफ का रिकॉर्ड बनाया।
- यह आर्थिक लाभ नवीकरणीय ऊर्जा में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के निवेश को बढ़ावा दे रहा है।
- रोज़गार सृजन की क्षमता: नवीकरणीय क्षेत्र वृहत रोज़गार अवसर प्रदान करता है।
- CEEW-NRDC रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2030 तक 238 गीगावाट सौर और 101 गीगावाट नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के साथ संभावित रूप से लगभग 3.4 मिलियन रोज़गार अवसर (अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक) पैदा कर सकता है।
- सोलर मॉड्यूल के लिये PLI योजना जैसी पहलों के माध्यम से घरेलू विनिर्माण पर सरकार का ध्यान इस रोज़गार सृजन क्षमता का लाभ उठाने पर केंद्रित है।
- जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रतिबद्धताएँ: COP26 में भारत ने वर्ष 2030 तक अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन (net-zero emissions) प्राप्त करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- इन प्रतिबद्धताओं के लिये नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेज़ी से संक्रमण की आवश्यकता है। वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य इन जलवायु लक्ष्यों का प्रत्यक्ष परिणाम है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और दबाव: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में भारत के नेतृत्व और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance- GBA) तथा भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एवं जलवायु भागीदारी (India-US Clean Energy and Climate Partnership) जैसी साझेदारियों ने ज्ञान साझाकरण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को गति प्रदान की है।
- ये सहयोग निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और दबाव भी आकर्षित करते हैं।
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण की राह की प्रमुख बाधाएँ:
- भूमि अधिग्रहण में बाधाएँ: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये वृहद् भूमि की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये, 1 गीगावाट के सोलर प्लांट के लिये लगभग 2,000 हेक्टेयर भूमि की ज़रूरत होती है।
- हाल के संघर्षों में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में चरागाह भूमि पर अतिक्रमण कर रहे बड़े सौर पार्कों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन जैसी घटनाएँ शामिल हैं।
- ये मुद्दे विकास आवश्यकताओं और स्थानीय सामुदायिक अधिकारों के बीच के जटिल अंतर्संबंध को उजागर करते हैं।
- वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं खासकर छोटी कंपनियों और स्टार्टअप के लिये के लिये वित्तपोषण प्राप्त करना एक चुनौती बना हुआ है। नवाचार को बढ़ावा देने और परियोजनाओं को आगे बढ़ाने हेतु किफायती पूंजी तक पहुँच आवश्यक है।
- विश्लेषण के अनुसार, भारत को अपने मौजूदा सौर और पवन ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये वर्ष 2023 और 2030 के बीच 293 बिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।
- अंतराल और भंडारण संबंधी चुनौतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की परिवर्तनशील प्रकृति के कारण बड़े पैमाने पर भंडारण समाधान की आवश्यकता होती है।
- हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2030 तक भारत को 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लागत-कुशल एवं विश्वसनीय एकीकरण के लिये 38 गीगावाट के चार-घंटे बैटरी भंडारण क्षमता और 9 गीगावाट के तापीय संतुलन बिजली परियोजनाओं की आवश्यकता होगी।
- वर्ष 2021 में भारतीय सौर ऊर्जा निगम (Solar Energy Corporation of India) द्वारा पहली बार पेश वृहत-स्तरीय बैटरी भंडारण निविदा (1000 MWh) आगे की ओर एक कदम है, लेकिन इसका विस्तार करना एक चुनौती बनी हुई है।
- ग्रिड एकीकरण और स्थिरता के मुद्दे: जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा का प्रवेश बढ़ता जाता है, ग्रिड स्थिरता एक प्रमुख चिंता का विषय बन जाती है।
- उदाहरण के लिये, तमिलनाडु में पवन ऊर्जा उत्पादन के आरंभ में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जहाँ TANGEDCO (Tamil Nadu Generation and Distribution Corporation) ने ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उत्पादन में कटौती की है।
- गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा पूर्वानुमान तथा समय-निर्धारण विनियमों का कार्यान्वयन इस समस्या के समाधान की दिशा में एक कदम है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
- भू-राजनीतिक संसाधन निर्भरता: भारत का नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण मुख्य रूप से लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों पर निर्भर करता है, जो मुख्य रूप से कुछ देशों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिये:
- चीन विश्व के 80% दुर्लभ मृदा तत्त्वों का प्रसंस्करण करता है।
- कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य वैश्विक स्तर पर निष्कर्षित कोबाल्ट के 70% की आपूर्ति करता है।
- यह निर्भरता भारत की नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में कमज़ोरियाँ पैदा करती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक संप्रभुता पर संभावित रूप से असर पड़ता है।
- ई-अपशिष्ट और जीवन-अंत प्रबंधन: सौर पैनलों और बैटरियों की बड़े पैमाने पर तैनाती के साथ ई-अपशिष्ट (E-waste) प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IREA) के अनुसार, अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत सौर पैनल अपशिष्ट का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक बन जाएगा।
- भारत में वर्तमान में सौर पैनल पुनर्चक्रण के लिये एक व्यापक नीति का अभाव है, हालाँकि MNRE ने वर्ष 2022 में नियमों का मसौदा तैयार किया था।
- बड़े पैमाने पर पुनर्चक्रण सुविधाओं का अभाव पर्यावरणीय जोखिम पैदा करता है।
नवीकरणीय ऊर्जा की ओर सुगम संक्रमण सुनिश्चित करने के उपाय:
- भूमि पट्टा क्रांति (Land Leasing Revolution): भारत भूमि अधिग्रहण संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये ‘सौर खेती’ (Solar Farming) मॉडल को लागू कर सकता है:
- दीर्घकालिक भूमि पट्टा कार्यक्रम शुरू किया जाए जहाँ भूमि पर किसानों का स्वामित्व बना रहे और वे नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से स्थिर आय अर्जित करें।
- वित्तीय सहायता में वृद्धि: कम ब्याज दर पर ऋण और गारंटी प्रदान करने वाले समर्पित नवीकरणीय ऊर्जा कोषों का निर्माण निवेश को प्रोत्साहित कर सकता है और परियोजना विकास का समर्थन कर सकता है। जलवायु वित्त अंतर को कम करने के लिये भारत को संप्रभु धन कोष, वैश्विक पेंशन, निजी इक्विटी और बुनियादी ढाँचा कोषों से वैश्विक हरित पूंजी के तेज़ी से बढ़ते पूल का दोहन करने की आवश्यकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा विशेष आर्थिक क्षेत्र (RE-SEZs): नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास के लिये सुव्यवस्थित विनियमन और प्रोत्साहन के साथ समर्पित क्षेत्रों की स्थापना से भारत में संक्रमण की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है।
- ये RE-SEZs कच्चे माल के प्रसंस्करण से लेकर तैयार उत्पाद संयोजन तक संपूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा पारितंत्र का निर्माण करेंगे।
- फ्लोटिंग सोलर क्रांति (Floating Solar Revolution): भारत जलाशयों, झीलों और तटीय क्षेत्रों पर बड़े पैमाने पर फ्लोटिंग सोलर परियोजनाओं का विकास कर अपने विशाल जलीय स्थान का दोहन कर सकता है।
- इस उपाय से मूल्यवान भूमि का संरक्षण होगा और जल वाष्पीकरण एवं शैवाल वृद्धि में कमी आएगी।
- कोयला से स्वच्छ ऊर्जा की ओर कार्यबल का संक्रमण: नवीकरणीय ऊर्जा रोज़गार के लिये कोयला क्षेत्र के श्रमिकों को पुनः प्रशिक्षित करने हेतु ‘ग्रीन कॉलर’ पहल का शुभारंभ किया जाए।
- वैकल्पिक रोज़गार सृजित करने के लिये कोयला-निर्भर क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण केंद्र स्थापित किये जाएँ।
- ब्लॉकचेन-संचालित विकेंद्रीकृत ऊर्जा व्यापार: ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर पीयर-टू-पीयर ऊर्जा व्यापार प्लेटफॉर्मों को लागू करने से भारत के ऊर्जा बाज़ार में क्रांति आ सकती है।
- यह प्रणाली प्रोज्यूमर्स (prosumers) को अतिरिक्त ऊर्जा प्रत्यक्षतः पड़ोसियों या ग्रिड को बेचने में सक्षम बनाएगी, जिससे समग्र ग्रिड लचीलेपन की वृद्धि होगी।
- लघु-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण को प्रोत्साहित करने के रूप में यह कदम देश भर में वितरित ऊर्जा संसाधन परिनियोजन में तेज़ी ला सकता है।
- अपशिष्ट से ऊर्जा सर्कुलर पार्क (Waste-to-Energy Circular Parks): एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा उत्पादन प्रतिष्ठानों या अपशिष्ट से ऊर्जा सर्कुलर पार्क का सृजन दोनों ही क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
- ये उद्यान विभिन्न अपशिष्ट क्षेत्रों के प्रबंधन के लिये अवायवीय पाचन, गैसीकरण और पायरोलिसिस जैसी विभिन्न प्रौद्योगिकियों का संयोजन करेंगे।
निष्कर्ष:
भारत ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, मई 2024 तक इसकी स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 191 गीगावाट करने का लक्ष्य है, जिसमें 85 गीगावाट सौर ऊर्जा शामिल है। इस वृद्धि को राष्ट्रीय सौर मिशन, पवन ऊर्जा नीति, फेम इंडिया योजना और नवीकरणीय खरीद दायित्त्व जैसी लक्षित नीतियों तथा योजनाओं द्वारा बढ़ावा मिला है। इन नीतियों और योजनाओं का प्रभावी ढंग से लाभ उठाकर भारत नवीकरणीय ऊर्जा में सुगम बदलाव को सुगम बना सकता है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिये ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास तथा पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित होगी।