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  • 12 Aug 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस- 31: आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों की फसलें कृषि उत्पादकता के लिये संभावित लाभ प्रदान करती हैं, लेकिन इसके साथ ही इससे कुछ प्रमुख चुनौतियाँ भी प्रस्तुत होती हैं। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • GM फसलों और कृषि उत्पादकता के बारे में संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • GM फसलों के संभावित लाभों का उल्लेख कीजिये।
    • GM फसलों में समस्याओं एवं चुनौतियों का समाधान दीजिये।
    • सतत् कृषि के लिये आगे की राह सुझाइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत का कृषि क्षेत्र एक ऐसी स्थिति में है, जहाँ उत्पादकता में वृद्धि करना, विशेष रूप से सरसों जैसी तिलहन फसलों में, बढ़ती मांग को पूरा करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिये आवश्यक है। जीएम सरसों जैसी आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की शुरूआत पैदावार बढ़ाने तथा खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये एक आशाजनक समाधान प्रदान करती है, जो देश के कृषि उत्पादकता एवं खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों के अनुरूप है।

    मुख्य बिंदु:

    जीएम फसलों के संभावित लाभ:

    • उपज में वृद्धि: बीटी बैंगन और एचटी बीटी कपास जैसी जीएम फसलों से उपज में वृद्धि हो सकती है, जो बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये आवश्यक है।
      • भारत में कुल खाद्य तेल की 60% से अधिक मांग आयात के माध्यम से पूरी की जाती है, जो पिछले वित्त वर्ष में रिकॉर्ड 19 बिलियन डॉलर तक पहुँच गई है, जो घरेलू उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत पर ज़ोर देता है।
    • आर्थिक लाभ: वर्ष 1996 से 2011 तक जीएम फसलों को अपनाने के कारण दुनिया भर में किसानों की आय में 92 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई।
      • यह आर्थिक लाभ अधिक कुशल खरपतवार और कीट नियंत्रण के साथ-साथ कम उत्पादन लागत के कारण है। उदाहरण के लिये रिपोर्ट बताती है कि बीटी फसलों को अपनाने वालों के लिये लाभ में औसतन 69% की वृद्धि हुई, जिसका मुख्य कारण उत्पादकता में वृद्धि (25%) एवं कम कीटनाशक लागत (43%) थी।
    • कीट प्रतिरोधिता: बैसिलस थुरिंजिएंसिस (बीटी) जीन से तैयार जीएम फसलें, जैसे- बीटी मक्का और बीटी बैंगन, यूरोपीय मक्का बोरर जैसे कीटों के प्रति प्रतिरोधिता प्रदान करती हैं, जिससे फसल की हानि कम होती है तथा रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता न्यूनतम होती है।
      • बांग्लादेश में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा किये गए एक शोध से पता चलता है कि बीटी बैंगन किसानों के लिये शुद्ध उपज 42% अधिक थी। बीटी बैंगन किसानों ने प्रति किलोग्राम उत्पादन की लागत में 31% की कमी देखी और प्रति हेक्टेयर सकल राजस्व में 27.3% की वृद्धि देखी गई।
      • गुलाबी बॉलवर्म एक विनाशकारी कपास कीट है, जिसे बीटी कपास द्वारा प्रभावी रूप से नियंत्रित किया गया है।
    • खरपतवारनाशकों के प्रति सहनशीलता: एचटी बीटी कपास जैसी जीएम फसलों को विशिष्ट खरपतवारनाशकों के प्रति सहनशील बनाया जाता है, जिससे रसायनों के कम उपयोग के साथ खरपतवारों पर अधिक प्रभावी नियंत्रण संभव हो जाता है।
      • इससे न केवल शाकनाशी की लागत में कमी आती है, बल्कि अत्यधिक कीटनाशक उपयोग से जुड़े पर्यावरणीय प्रभाव एवं स्वास्थ्य जोखिम भी कम हो जाते हैं।
    • पर्यावरणीय तनाव के प्रति प्रतिरोध: जीएम फसलों को पर्यावरणीय चुनौतियों जैसे कि कीट, सूखा, पाला और अन्य तनावों का सामना करने के लिये विकसित किया गया है, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी लगातार फसल उत्पादन सुनिश्चित होता है।
      • वैश्विक जलवायु परिवर्तन एवं अप्रत्याशित मौसम प्रतिरूप के मद्देनज़र यह विशेषता और भी महत्त्वपूर्ण हो गई है।
    • स्थायित्त्व और निम्न कार्बन उत्सर्जन: जीएम फसलों के लिये काफी कम भूमि की आवश्यकता होती है, जो गैर-जीएम फसलों की तुलना में लगभग 10% अधिक होती है, जिससे निम्न कार्बन उत्सर्जन के साथ अधिक सतत् कृषि पद्धतियाँ अपनाई जा सकती हैं।
      • इससे खेती के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में व्यापक योगदान मिलता है।
    • उन्नत पोषण मूल्य: जीएम प्रौद्योगिकी का उपयोग फसलों की पोषण सामग्री को बेहतर बनाने के लिये किया जा सकता है, जिससे बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त होंगे।
      • यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जहाँ कुपोषण चिंता का विषय है तथा यह स्वस्थ आहार का मार्ग प्रदान करता है।
    • विदेशी निर्भरता में कमी: जीएम फसलों जैसी आनुवंशिक प्रौद्योगिकियों के साथ पौध प्रजनन कार्यक्रमों को प्रभावी करने से भारत के आयात पर, विशेष रूप से खाद्य तेलों जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिये, निर्भरता कम हो सकती है।
      • पिछले वित्तीय वर्ष में खाद्य तेलों के लिये 19 बिलियन डॉलर के आयात बिल से यह बात उजागर हुई, जो यूक्रेन पर रूस के आक्रमण जैसे वैश्विक व्यवधानों से और भी बढ़ गई। जीएम फसलें घरेलू उत्पादन को बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने की एक विधि प्रदान करती हैं।

    आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के उपयोग से संबंधित चुनौतियाँ:

    • पर्यावरणीय खतरे: जीएम पौधे अनजाने में पराग के माध्यम से संबंधित जंगली पौधों की प्रजातियों में जीन स्थानांतरित कर सकते हैं, जिससे आनुवंशिक संदूषण हो सकता है।
      • इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक जंगली प्रजातियों में कमी या विलुप्ति हो सकती है, जिससे स्थानीय जैवविविधता बाधित हो सकती है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: जीएम फसलों के आने से जैवविविधता में परिवर्तन हो सकता है, जिससे खरपतवारों की कुछ प्रजातियाँ अधिक प्रतिरोधी हो जाएंगी, जबकि अन्य प्रजातियाँ हावी या कम हो सकती हैं।
      • इस व्यवधान के कारण पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँच सकता है।
    • एलर्जी संबंधी प्रतिक्रियाएँ: जीएम खाद्य पदार्थ एलर्जी संबंधी प्रभाव पैदा कर सकते हैं, विशेष रूप से उन व्यक्तियों में जो एलर्जी से ग्रस्त होते हैं।
      • इस बात की चिंता है कि नए जीनों के प्रवेश से ऐसे प्रोटीनों का उत्पादन हो सकता है जो पारंपरिक पौधों में पाए जाने वाले प्रोटीनों की तुलना में अधिक एलर्जी पैदा करते हैं।
      • स्वास्थ्य प्रभाव: पशुओं पर किये गए प्रायोगिक अध्ययनों से पता चलता है कि जीएम खाद्य पदार्थों से स्वास्थ्य संबंधी संभावित खतरे जुड़े हैं, जिनमें वज़न बढ़ना, अग्नाशय और गुर्दे जैसे अंगों में परिवर्तन, प्रतिरक्षा प्रणाली पर विषाक्त प्रभाव तथा रक्त जैव रसायन में परिवर्तन शामिल हैं।
    • एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन: यद्यपि जीएम फसलों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन का प्रयोग काफी हद तक समाप्त हो चुका है, फिर भी पशु आहार में एंटीबायोटिक का व्यापक प्रयोग जोखिम उत्पन्न करता है।
      • ये एंटीबायोटिक्स डेयरी उत्पादों और माँस के सेवन के माध्यम से मानव शरीर में पहुँच सकते हैं, जिससे मानव पाचन तंत्र में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास की संभावना बढ़ जाती है।
    • अपर्याप्त दीर्घकालिक अध्ययन: मानव स्वास्थ्य पर जीएम खाद्य पदार्थों के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों को पूरी तरह से समझने के लिये बड़े पैमाने पर दीर्घकालिक महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययनों का अभाव है।
      • इस अनिश्चितता के कारण जीएम फसलों की सुरक्षा का निर्णायक आकलन करना कठिन हो जाता है।
    • नैतिक निहितार्थ: जीवों के जीन में संशोधन से नैतिक प्रश्न उठते हैं, जिनमें प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और आनुवंशिक इंजीनियरिंग के संभावित दीर्घकालिक परिणाम संबंधी चिंताएँ शामिल हैं।
    • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: जीएम फसलों को अपनाने से बीजों के लिये विशिष्ट जैव-प्रौद्योगिकी कंपनियों पर निर्भरता बढ़ सकती है, जिसके छोटे किसानों और खाद्य संप्रभुता पर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है।
    • जीएम फसलों के लिये आगे की राह और चुनौतियों का समाधान:
      • व्यापक जोखिम मूल्यांकन: पर्यावरण, स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जीएम फसलों के लिये विस्तृत एवं मूल्यांकन प्रोटोकॉल लागू करना।
      • नियंत्रण और पारदर्शिता: जीएम फसलों के लिये निरंतर निगरानी प्रणाली स्थापित करना और जनता का विश्वास हासिल करने के लिये संभावित जोखिमों तथा परिणामों की रिपोर्टिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
    • सावधानियाँ:
      • साक्ष्य-आधारित सुरक्षा: सुनिश्चित करें कि जीएम उत्पादों को उपभोक्ता उपयोग के लिये तभी स्वीकृत किया जाए जब सुरक्षा के पर्याप्त निर्णायक साक्ष्य हों। इसमें सावधानीपूर्वक मूल्यांकन और किसी भी महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक अनिश्चितताओं को संबोधित करना शामिल है।
      • तकनीकी अवरोध से बचना: नवाचार का समर्थन करने की आवश्यकता के साथ कुछ सावधानियाँ अपनाना, यह सुनिश्चित करते हुए कि सुरक्षा उपाय लाभकारी तकनीकी प्रगति को बाधित न करें।
    • लेबलिंग और उपभोक्ता सूचना को बेहतर बनाना:
      • स्पष्ट लेबलिंग: उपभोक्ताओं को सूचित करने के लिये जीएम खाद्य पदार्थों हेतु स्पष्ट एवं सुसंगत लेबलिंग आवश्यकताओं को विकसित करना। इसमें संशोधित प्रोटीन और बिना संशोधित प्रोटीन वाले जीएम उत्पादों के बीच अंतर करना शामिल है।
      • स्पष्ट लेबलिंग अभ्यास: उपभोक्ताओं को सूचित करने के लिये जीएम खाद्य पदार्थों के लिये स्पष्ट एवं सुसंगत लेबलिंग आवश्यकताओं को विकसित करना। इसमें संशोधित प्रोटीन वाले और बिना संशोधित प्रोटीन वाले जीएम उत्पादों के बीच अंतर करना शामिल है।
      • सार्वजनिक शिक्षा: उपभोक्ताओं को जीएम तकनीक को समझने और जीएम उत्पादों के बारे में सूचित विकल्प बनाने में मदद करने के लिये शैक्षिक पहलों में निवेश करना।
    • नैतिक और पर्यावरण संबंधी चिंताओं का समाधान:
      • नैतिक विचार: जीवन और पर्यावरणीय प्रभावों से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये नैतिक चर्चाओं तथा नीति-निर्माण एवं संतुलित समाधान खोजने के लिये विविध दृष्टिकोणों को शामिल करना।
      • पर्यावरण संरक्षण: संभावित पारिस्थितिक प्रभावों को कम करने के लिये रणनीतियों को लागू करना, जैसे जंगली पौधों की किस्मों का संरक्षण और सतत् कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना।
    • उत्तरदायी नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देना:
      • संधारणीय प्रौद्योगिकियों में निवेश: जीएम फसलों के विकास पर संधारणीयता में वृद्धि करने वाले अनुसंधान प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना तथा पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों को कम करना।
      • पेटेंटिंग और स्वामित्त्व को विनियमित: जीएम जीवों के पेटेंटिंग को विनियमित करके किसी भी प्रतिकूल प्रभाव के लिये रचनाकारों को उत्तरदायी ठहराकर आनुवंशिक संशोधनों के ज़िम्मेदार प्रबंधन को सुनिश्चित करना।

    निष्कर्ष:

    आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के उत्पादन से महत्त्वपूर्ण संभावित लाभ प्राप्त होते हैं, जिसमें कृषि उत्पादकता में वृद्धि, आयात पर निर्भरता में कमी और पर्यावरणीय दबाव के प्रति लचीलापन बढ़ाना शामिल है। हालाँकि इन लाभों का पूरी तरह से प्राप्त करने तथा साथ ही संबंधित जोखिमों को कम करने के लिये विनियामक ढाँचों को मज़बूत करना, सुविधाजनक उपाय अपनाना एवं पारदर्शी लेबलिंग व नैतिक विचारों को सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।

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