दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- लॉर्ड कर्जन द्वारा वर्ष 1905 में किये गए बंगाल विभाजन का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- बंगाल विभाजन ने अनजाने में राजनीतिक अशांति और राष्ट्रवादी आंदोलनों को तीव्र कर दिया, चर्चा कीजिये।
- बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन के दौरान विरोध और राजनीतिक संगठन के तरीकों ने भविष्य के स्वतंत्रता आंदोलनों को कैसे प्रभावित किया, चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष में चर्चा कीजिये कि कर्जन के विभाजन के अनपेक्षित परिणाम तो थे, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में एक एकीकृत और दृढ़ प्रयास का मार्ग प्रशस्त किया।
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परिचय :
वर्ष 1905 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में जाना जाता है। विभाजन ने बंगाल को मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल और असम तथा हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल में विभाजित कर दिया। लॉर्ड कर्जन द्वारा विभाजन के लिये दिया गया आधिकारिक तर्क बंगाल के प्रांत को दो छोटी, अधिक प्रबंधनीय इकाइयों में विभाजित करके प्रशासनिक दक्षता में सुधार करना करना था।
मुख्य भाग:
तत्काल प्रतिक्रियाएँ और विरोध
- व्यापक विरोध (1903-05):
- विभाजन का बंगाली समाज के सभी वर्गों, जिनमें राजनेता, बुद्धिजीवी, छात्र और आम लोग शामिल थे, ने कड़ा विरोध किया। इसके लिये सरकार को याचिकाएँ, सार्वजनिक बैठकें, ज्ञापन तथा हितबादी, संजीबनी और बंगाली जैसे समाचार-पत्रों के माध्यम से प्रचार-प्रसार के तरीके अपनाए गए।
- स्वदेशी आंदोलन (1905-08):
- स्वदेशी आंदोलन विभाजन की प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया के रूप में उभरा, जिसने भारतीय निर्मित वस्तुओं के उपयोग और ब्रिटिश उत्पादों के बहिष्कार तथा आर्थिक राष्ट्रवाद तथा आत्मनिर्भरता की भावना को बढ़ावा दिया, जिसके फलस्वरूप स्वदेशी उद्योगों एवं उद्यमों की स्थापना हुई।
भारतीय राष्ट्रवाद पर दीर्घकालिक प्रभाव
- भारतीयों में एकता और एकजुटता:
- कई भारतीय नेताओं और राष्ट्रवादियों ने विभाजन को हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देकर बढ़ती राष्ट्रवादी भावना को विभाजित एवं कमज़ोर करने के प्रयास के रूप में देखा।
- विभाजन विरोधी आंदोलन ने क्षेत्रीय और सांप्रदायिक मतभेदों से परे भारतीयों के बीच एकता तथा एकजुटता की भावना को बढ़ावा दिया।
- उग्र राष्ट्रवाद का उदय :
- उग्रवादी नेता: विभाजन को रोकने के लिये उदारवादियों के तरीकों की विफलता के कारण बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे उग्रवादी नेताओं का उदय हुआ, जिन्होंने अधिक कट्टरपंथी एवं टकरावपूर्ण तरीकों से स्वराज प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाया।
- रणनीति में बदलाव: याचिकाओं और अपीलों से ध्यान हटाकर जन-आंदोलन, प्रत्यक्ष कार्रवाई तथा आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे अधिक उग्र राष्ट्रवादी आंदोलनों की नींव रखी गई।
- वर्ष 1911 में निरस्तीकरण: क्रांतिकारी आतंकवाद के खतरे को रोकने के लिये मुख्य रूप से वर्ष 1911 में बंगाल के विभाजन को रद्द करने का निर्णय लिया गया।
- भावी आंदोलनों के लिये प्रेरणा :
- असहयोग और सविनय अवज्ञा: विभाजन-विरोधी आंदोलन और स्वदेशी आंदोलन के दौरान विकसित की गई पद्धतियाँ तथा रणनीतियाँ बाद के आंदोलनों जैसे असहयोग आंदोलन (1920-22) एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) के लिये प्रेरणा का स्रोत बनीं।
- जन भागीदारी: विभाजन-विरोधी प्रदर्शनों में समाज के व्यापक वर्ग की भागीदारी ने आंदोलनों का आधार तैयार किया, जो बाद के आंदोलनों की विशेषता थी।
- स्वदेशी संस्कृति का पुनरुत्थान: विभाजन और स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय कला, साहित्य तथा संस्कृति के पुनरुत्थान को जन्म दिया, जिसमें स्वदेशी परंपराओं एवं मूल्यों के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।
- शैक्षणिक संस्थान: राष्ट्रवादी शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा परिषद तथा बंगाल नेशनल कॉलेज जैसे नए शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की गई।
- तकनीकी शिक्षा के लिये बंगाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की गई तथा छात्रों को उच्च शिक्षा के लिये जापान भेजने हेतु धन एकत्रित किया गया।
निष्कर्ष:
कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन और उसके बाद की घटनाओं ने भारतीयों के बीच क्षेत्रीय तथा सांप्रदायिक विभाजनों से परे एक मज़बूत राष्ट्रीय पहचान बनाने में मदद की। विभाजन के आस-पास की घटनाओं ने भारतीयों की राजनीतिक भावना एवं लामबंदी में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने अंततः पूर्ण स्वतंत्रता के लिये संघर्ष का मंच तैयार किया।