-
10 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-3: राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति महात्मा गांधी का दृष्टिकोण मौलिक विचारों, उल्लेखनीय सामरिक कौशल और जनमानस में एक अनोखी अंतर्दृष्टि के मिश्रण से चिह्नित था। स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण :
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में गांधी की भूमिका का परिचय दीजिये।
- गांधी के दृष्टिकोण की विशेषता मौलिक विचार, सामरिक कौशल और जनता की गहरी समझ थी, चर्चा कीजिये।
- उनके तरीकों और उनकी प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने के लिये उदाहरण सहित चर्चा कीजिये।
- गांधी के अद्वितीय दृष्टिकोण को निष्कर्ष में लिखिये ।
परिचय:
महात्मा गांधी के नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक जन आंदोलन में बदल दिया, जिसमें अहिंसा, सविनय अवज्ञा और सामाजिक-आर्थिक सुधारों के सिद्धांत शामिल थे। भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उनका दृष्टिकोण वास्तव में मौलिक विचारों, सामरिक प्रतिभा एवं जनमानस में एक अनोखी अंतर्दृष्टि के मिश्रण से चिह्नित था।
मुख्य भाग :
मौलिक विचार
- अहिंसा
- दार्शनिक आधार: गांधी का अहिंसा का सिद्धांत (विशेष रूप से जैन धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म से लिया गया) उनके दार्शनिक एवं धार्मिक विश्वासों में निहित था।
- नैतिक उच्च आधार: अहिंसा के मार्ग को अपनाकर, गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नैतिक उच्च आधार प्रदान किया, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अक्सर क्रूर तरीकों के बिल्कुल विपरीत था।
- सत्याग्रह (Truth Force):
- सत्याग्रह की अवधारणा: सत्याग्रह, प्रत्यक्ष कार्रवाई के लिये गांधी का अभिनव दृष्टिकोण था, जिसमें सत्य और अहिसा पर ज़ोर दिया गया था। इसमें सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन के लिये निष्क्रिय प्रतिरोध एवं सविनय अवज्ञा को उपकरण के रूप में शामिल किया गया था।
- परिवर्तनकारी शक्ति: गांधी का मानना था कि सत्याग्रह उत्पीड़क के साथ-साथ उत्पीड़ितों को भी बदल सकता है।
- स्वराज का विचार:
- स्वतंत्रता की व्यापक अवधारणा: यह शुरू में राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक था, जिसमे गांधी ने इसका अर्थ व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वायत्तता की व्यापक अवधारणा के संदर्भ में किया।
- ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र: उन्होंने तर्क दिया कि सच्चा स्वशासन तभी प्राप्त किया जा सकता है जब सत्ता स्थानीय समुदायों को सौंपी जाए, ताकि ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को सक्षम बनाया जा सके।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता: उन्होंने विदेशी उत्पादों पर निर्भरता कम करने और स्थानीय उद्योगों को सशक्त बनाने के लिये स्वदेशी या स्वदेशी वस्तुओं एवं संसाधनों के उपयोग के विचार को बढ़ावा दिया।
- गांधी ने अपने "ग्राम स्वराज्य" के विचार में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि गाँवों को आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होना चाहिये।
- ट्रस्टीशिप: गांधी के अनुसार, जिनके पास धन है, उनका नैतिक दायित्त्व है कि वे इसका उपयोग अधिकाधिक अच्छे कार्यों के लिये करें तथा मालिक के रूप में नहीं बल्कि संरक्षक या ट्रस्टी के रूप में कार्य करें।
- इस अवधारणा का उद्देश्य बलपूर्वक पुनर्वितरण के बजाय नैतिक प्रबंधन के माध्यम से अमीर और गरीब के बीच के अंतर को कम करना था।
उल्लेखनीय सामरिक स्वभाव
- जन आंदोलन
- असहयोग आंदोलन: वर्ष 1920 में शुरू किये गए असहयोग आंदोलन ने भारतीयों को ब्रिटिश संस्थानों से अलग होने और ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिये प्रोत्साहित किया, जिससे औपनिवेशिक प्रशासन प्रभावी रूप से कमज़ोर पड़ गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन: वर्ष 1930 में शुरू किये गए इस आंदोलन में ब्रिटिश कानूनों का जानबूझकर और शांतिपूर्ण उल्लंघन शामिल था, जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया।
- संधिवार्ता और कूटनीतिकता
- गोलमेज सम्मेलन: लंदन में गोलमेज सम्मेलनों में गांधी की भागीदारी ने उनके कूटनीतिक कौशल और अपने सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश अधिकारियों के साथ बातचीत की।
- रचनात्मक कार्यक्रम: राजनीतिक आंदोलन के साथ-साथ, गांधी ने सामाजिक सुधार, ग्रामीण उत्थान और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए रचनात्मक कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया, जिसने एक स्थायी एवं आत्मनिर्भर समाज के निर्माण में मदद की।
सामूहिक मन के बारे में अद्भुत अंतर्दृष्टि
- भावनात्मक और सांस्कृतिक संबंध
- समावेशी नेतृत्व:
- गांधी की सरल जीवनशैली, पहनावा और स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल ने लोगों को आकर्षित किया तथा उन्हें एक भरोसेमंद व्यक्ति बना दिया। महात्मा गांधी का सर्वोदय दर्शन, जिसका अर्थ है "सार्वभौमिक उत्थान" या "सभी की प्रगति", न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज के लिये उनके दृष्टिकोण में एक केंद्रीय अवधारणा है।
- तात्कालिक चिंताओं का समाधान
- किसान संबंधित मुद्दे: चंपारण सत्याग्रह (1917) और खेड़ा सत्याग्रह (1918) जैसे स्थानीय संघर्षों में गांधी की भागीदारी ने किसानों की तत्काल शिकायतों पर ध्यान दिया गया, जिससे उनका समर्पण और समर्थन प्राप्त हुआ।
- सामाजिक सुधार: अस्पृश्यता के खिलाफ उनके अभियान (हरिजन आंदोलन) और महिलाओं के अधिकारों के लये व्यापक रूप से जन आंदोलन का नेतृत्व करना, जिसमे स्वतंत्रता संग्राम ने एक सामाजिक न्याय की लड़ाई के रूप में भी कार्य किया।
- संचार कौशल:
- प्रभावी वक्ता: गांधीजी के भाषण सरल होते हुए भी प्रभावशाली होते थे, जो जटिल विचारों को प्रभावी ढंग से इस तरह से व्यक्त करते थे कि वे आम लोगों के दिलों में बस जाते थे। मीडिया का उपयोग: गांधीजी ने अपने संदेश को फैलाने और जनता के साथ निरंतर संवाद बनाए रखने के लिये 'यंग इंडिया' तथा 'हरिजन' जैसे समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं का कुशलतापूर्वक उपयोग किया।
निष्कर्ष:
महात्मा गांधी का अहिंसा और नैतिक अखंडता पर ज़ोर दुनिया भर में कई मुक्ति आंदोलनों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले हिंसक तरीकों के बिल्कुल विपरीत था। उन्होंने नागरिक अधिकारों तथा स्वतंत्रता के लिये वैश्विक आंदोलनों को प्रभावित किया है। अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन में मार्टिन लूथर किंग जूनियर के नेतृत्व से लेकर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ नेल्सन मंडेला के संघर्ष तक, गांधी के सिद्धांत सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन को प्राप्त करने में नैतिक नेतृत्व तथा जन आंदोलन की शक्ति को रेखांकित करते हैं।