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दिवस- 29: भारत में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर होने वाले व्यय से संबंधित हाल की प्रवृत्तियों एवं चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इस क्षेत्र में धारणीय वित्तपोषण सुनिश्चित करने हेतु संभावित उपाय बताइये। (250 शब्द)

09 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में अनुसंधान एवं विकास पर संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • भारत में हाल के रुझान बताइये।
  • भारत में अनुसंधान एवं विकास व्यय में चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • उन चुनौतियों से निपटने के लिये आगे की राह सुझाइये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

हाल ही में भारत के वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में देश के अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने के लिये 1 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए। यह निवेश वैज्ञानिक क्षमताओं को आगे बढ़ाने के लिये एक मज़बूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान’ का नया नारा राष्ट्रीय विकास में अनुसंधान को एकीकृत करने पर सरकार के उद्देश्य पर और ज़ोर देता है।

मुख्य बिंदु:

भारत में अनुसंधान एवं विकास व्यय के रुझान

शैक्षणिक प्रतिभा उत्पादन

  • PhD पीढ़ी: भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 40,813 विद्यार्थी Ph.D करते है, जो अमेरिका और चीन के बाद वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है।
  • शोध आउटपुट: वर्ष 2022 में 300,000 से अधिक प्रकाशनों के साथ भारत शोध आउटपुट में तीसरे स्थान पर रहा है।

पेटेंट अनुदान

  • वैश्विक रैंकिंग: भारत ने वर्ष 2022 में 30,490 पेटेंट प्रदान करने के साथ विश्व स्तर पर छठा स्थान हासिल किया, जो एक उभरते नवाचार परिदृश्य को दर्शाता है।

सरकारी वित्त पोषण आवंटन:

  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश: वर्ष 2020-21 में भारत ने अनुसंधान एवं विकास में 17.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया।
  • सरकारी क्षेत्र का हिस्सा: अनुसंधान एवं विकास निधि का 54% (9.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर) सरकारी क्षेत्र को आवंटित किया गया है।
  • प्रमुख एजेंसियाँ: प्रमुख आवंटनों में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (30.7%), अंतरिक्ष विभाग (18.4%), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (12.4%) और परमाणु ऊर्जा विभाग (11.4%) शामिल हैं।

भारत में अनुसंधान एवं विकास व्यय में चुनौतियाँ

सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कम R&D निवेश:

  • भारत के R&D में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जहाँ अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (Gross Expenditure on Research and Development- GERD) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो वर्ष 2010-11 में 6,01,968 मिलियन रुपए से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 12,73,810 मिलियन रुपए हो गया।
  • GDP सकल घरेलू उत्पाद :, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में R&D निवेश के महज 0.64% होने के साथ भारत चीन (2.4%), जर्मनी (3.1%), दक्षिण कोरिया (4.8%) और संयुक्त राज्य अमेरिका (3.5%) जैसी प्रमुख विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से बहुत पीछे है।

निजी क्षेत्र द्वारा कम योगदान:

  • सरकारी बनाम निजी क्षेत्र: भारत में GERD मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र द्वारा संचालित होता है, जिसमें केंद्र सरकार (43.7%), राज्य सरकारें (6.7%), उच्च शिक्षा संस्थान (8.8%) और सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग (4.4%) शामिल हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान निजी क्षेत्र के उद्योगों का योगदान मात्र 36.4% रहा।
  • निजी क्षेत्र का पिछड़ापन: भारत में निजी उद्योगों का योगदान कई अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है। लगभग 6.2 बिलियन डॉलर के योगदान के साथ भारतीय व्यवसाय देश के GERD के 37% का प्रतिनिधित्व करते हैं। चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसी अग्रणी नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाओं में R&D वित्तपोषण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (>70%) निजी उद्योगों से प्राप्त होता है।

आवंटित निधि का कम उपयोग:

  • वर्ष 2022-2023 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSSs)/परियोजनाओं पर अपने अनुमानित बजट आवंटन का केवल 72% उपयोग किया, जबकि DST ने केवल 61% आवंटन का उपयोग किया। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (DSIR), जिसे CSSs के लिये सबसे कम आवंटन प्राप्त होता है, ने अपने आवंटन का 69% खर्च किया।
  • कम-आवंटन की ही तरह इस कम-उपयोग के कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन यह संवितरण की मंज़ूरी में जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं, परियोजनाओं का मूल्यांकन करने या स्पष्ट उपयोग प्रमाण-पत्रों की क्षमता की कमी, वित्त मंत्रालय द्वारा विज्ञान क्षेत्र के वित्तपोषण को प्राथमिकता की कमी या विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा अनुरोधित धनराशि के लिये योजना या कार्यान्वयन रणनीति की अपर्याप्तता का संकेत हो सकता है।

राज्य सरकारों द्वारा पर्याप्त धन आवंटन का अभाव:

  • RBI की ‘राज्य वित्त: वर्ष 2023-24 के बजट का एक अध्ययन’ शीर्षक रिपोर्ट में राज्य सरकारों के R&D व्यय पर एक समर्पित खंड शामिल किया गया था। अध्ययन में 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 10 को शामिल किया गया, जिसका अर्थ है कि अनुसंधान अधिकांश राज्यों के लिये प्राथमिकता का विषय नहीं है। अधिकांश राज्यों में अनुसंधान पर वार्षिक व्यय पर्याप्त कम भी था (औसतन GSDP का 0.09%), हालाँकि राजस्थान इस मामले में सबसे आगे रहा।

भारत में अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण बढ़ाने के लिये उठाए गए आवश्यक कदम

  • निजी क्षेत्र के सहयोग को प्रोत्साहित करना:
    • दक्षता के मामले में भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र के अपने लाभ हैं, लेकिन निजी उद्यमों की मज़बूत संलग्नता और मज़बूत उद्योग-अकादमिक सहयोग से और अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है जहाँ ज्ञान हस्तांतरण की सुविधा मिलेगी तथा नवाचार को बढ़ावा प्राप्त होगा।
    • वर्ष 2013 की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (Science, Technology, and Innovation Policy) में कहा गया है कि GERD को GDP के 2% तक बढ़ाना कुछ समय से एक राष्ट्रीय लक्ष्य रहा है। वर्ष 2017-2018 के आर्थिक सर्वेक्षण के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी रूपांतरण संबंधी अध्याय में भी इसे दोहराया गया।
    • निजी निवेश के लिये प्रोत्साहन, जिसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDIs) में ढील, कर छूट और उत्पादों के लिये स्पष्ट नियामक रोडमैप शामिल हैं, निवेशकों का विश्वास बनाने में मदद करेंगे।
  • GDP के प्रतिशत के रूप में R&D व्यय में वृद्धि करना:
    • वर्ष 2021 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के सदस्य देशों ने R&D पर औसतन GDP का 2.7% व्यय किया। अमेरिका तथा यूके ने पिछले एक दशक से लगातार अपने GDP का 2% से अधिक R&D पर व्यय किया है।
      • इसलिये कई विशेषज्ञों ने भारत से आह्वान किया है कि वह विकास पर सार्थक प्रभाव डालने के लिये विज्ञान क्षेत्र में R&D पर वर्ष 2047 तक प्रत्येक वर्ष अपने GDP का कम से कम 1% (लेकिन आदर्शतः 3%) व्यय करे।
  • भारत में उच्च शिक्षा संस्थाओं (HEIs) के लिये बढ़ी हुई भूमिका सुनिश्चित करना:
    • भारत में HEIs समग्र R&D निवेश में तुलनात्मक रूप से मामूली भूमिका निभाते हैं, जहाँ इनका योगदान 8.8% (1.5 बिलियन डॉलर) है।
    • यह स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है कि R&D में उद्योग का योगदान बढ़ाना एक जटिल मुद्दा है जिसका कोई एक समाधान नहीं है।
    • चुनौतियों का समाधान करने और HEIs के माध्यम से भारत की आर्थिक वृद्धि एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये R&D की क्षमता को ‘अनलॉक’ करने के लिये विविध हितधारकों को संलग्न करने वाला एक बहु-आयामी दृष्टिकोण आवश्यक है।
  • भारत की विनिर्माण वास्तविकता और आकांक्षाओं के बीच के अंतराल को दूर करना:
    • भारत की प्रौद्योगिकीय एवं विनिर्माण आकांक्षाएँ इसके R&D परिदृश्य में परिवर्तनकारी बदलाव पर निर्भर हैं।
    • राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति (NDTSP) जैसी पहलें तकनीकी प्रगति और नवाचार के प्रति एक मज़बूत प्रतिबद्धता का संकेत देती हैं। यह नीति भारत के R&D पारिस्थितिकी तंत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने की क्षमता रखती है।
    • हाल में अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) अधिनियम, 2023 का अधिनियमन विकास की आधारशिला के रूप में अनुसंधान एवं नवाचार को उत्प्रेरित करने के प्रति सरकार के समर्पण को रेखांकित करता है।
  • आवंटित निधियों का उचित उपयोग निर्दिष्ट करना:
    • केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने लगातार अपने बजट का कम उपयोग किया है।
    • R&D के लिये निर्धारित धनराशि के कम खर्च और कम उपयोग का शमन करना स्पष्ट रूप से प्राथमिक कदम होगा। इसके लिये R&D व्यय को राजनीतिक प्राथमिकता देने तथा इसे भारत की विकास यात्रा के एक प्रमुख, अपूरणीय तत्त्व के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है।
  • राज्य सरकारों के माध्यम से व्यय को प्राथमिकता देना:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के R&D व्यय को विशेष रूप से राज्य स्तर पर बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे राज्य विश्वविद्यालयों में अनुसंधान सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा, जिससे फिर अनुसंधानकर्त्ताओं को यह स्वतंत्रता प्राप्त होगी कि वे स्थानीय रूप से प्रासंगिक समस्याओं अधिक कार्य कर सकेंगे।
    • व्यय को इस सीमा तक बढ़ाने की भी आवश्यकता है कि उपयुक्त नीतियों के साथ यह प्रयोगशाला से कारखाने तक अनुसंधान संबंधी लगातार बनी रहती बाधाओं को दूर करे। इस प्रवाह के बिना नवाचार का कोई महत्त्व नहीं होगा और यह निम्न-गुणवत्तापूर्ण प्रगति तक ही सीमित रहेगा।

निष्कर्ष:

भारत में R&D व्यय को बढ़ाने, अनुसंधान, नवाचार एवं उद्यमिता के लिये रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करने और निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी प्रयास जारी हैं। जबकि भारत का R&D क्षेत्र उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में GDP के प्रतिशत के रूप में R&D पर देश का कम निवेश चिंता का विषय बना हुआ है। NDTSP और ANRF अधिनियम, 2023 के साथ ही संयुक्त अंतरिम बजट (2024-25) निजी क्षेत्र के नेतृत्व में अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने (विशेष रूप से उभरते हुए उद्योगों में) की भारत की प्रतिबद्धता के बारे में सकारात्मक संकेत प्रदान करता है।