Mains Marathon

दिवस- 29: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से संबंधित प्रमुख अवसरों एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने हेतु कौन-सी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं? (250 शब्द)

09 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में EVs के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • भारत में EVs को अपनाने से संबंधित अवसरों एवं चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • EVs को अपनाने में तेज़ी लाने के लिये रणनीति बताइये।
  • EVs को अपनाने के लिये सरकार द्वारा की गई पहल बताइये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाना धारणीय परिवहन की दिशा में एक आशाजनक रास्ता है, जिसमें उत्सर्जन में कमी लाने के साथ ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। हालाँकि भारत में EV को अपनाने से संबंधित कई चुनौतियाँ भी हैं, जिनका समाधान किया जाना चाहिये।

अवसर:

  • पर्यावरणीय लाभ: EVs में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाने और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कर सकने की क्षमता है। जीवाश्म ईंधन इंजन से चालित वाहनों के विपरीत EVs शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं। इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि स्वच्छ हवा श्वसन एवं हृदय रोगों के जोखिम को कम करती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: चूँकि बिजली ग्रिड को ऊर्जा स्रोतों के मिश्रण (a mix of energy sources) से संचालित किया जा सकता है, जिसमें सौर एवं पवन जैसे नवीनीकरणीय स्रोत शामिल हैं, EVs स्वच्छ एवं अधिक संवहनीय ऊर्जा विकल्पों की ओर परिवहन क्षेत्र के संक्रमण का अवसर प्रदान करते हैं। यह तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से संबद्ध भेद्यता को कम करता है और जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता को कम करके ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाता है।
  • आर्थिक विकास: EV उद्योग में विनिर्माण, बैटरी उत्पादन तथा चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में नए रोज़गार सृजित करने की क्षमता है। इससे बैटरी प्रौद्योगिकी में नवाचार और बैटरी रीसाइक्लिंग से संबंधित सर्कुलर अर्थव्यवस्था के विकास के अवसर भी खुलते हैं।

चुनौतियाँ:

  • उच्च आरंभिक लागत: पारंपरिक वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की अग्रिम लागत अपेक्षाकृत अधिक है। उच्च आरंभिक लागत कई संभावित खरीदारों के लिये इसे कम वहनीय बनाती है और EVs की मांग को सीमित करती है। यह लागत अंतर मुख्य रूप से EVs में उपयोग की जाने वाली महँगी बैटरी प्रौद्योगिकी के कारण है।
  • सीमित चार्जिंग अवसंरचना: भारत में चार्जिंग अवसंरचना अभी भी विकास के आरंभिक चरण में है और प्रमुख शहरों में ही केंद्रित है। एक सुदृढ़ एवं व्यापक चार्जिंग नेटवर्क की कमी EVs मालिकों के लिये असुविधा उत्पन्न करती है, विशेष रूप से उन लोगों के लिये जो अपार्टमेंट में रहते हैं या जिनके पास समर्पित पार्किंग सुविधा नहीं है।
  • बैटरी प्रौद्योगिकी और आपूर्ति शृंखला: लिथियम-आयन बैटरी, जो EVs का एक प्रमुख घटक है, के उत्पादन के लिये विशिष्ट खनिजों एवं दुर्लभ मृदा तत्त्वों की आवश्यकता होती है। भारत वर्तमान में बैटरी निर्माण के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे आपूर्ति शृंखला संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। EVs का चार्जिंग समय पारंपरिक वाहनों में ईंधन भरने के समय से अधिक है, जो उनकी सुविधा और उपयोगिता को प्रभावित करता है।
  • सीमित मॉडल विकल्प: वर्तमान में भारत में पारंपरिक वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन मॉडल की उपलब्धता अपेक्षाकृत सीमित है। विविध उपभोक्ता प्राथमिकताओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाज़ार को वहनीय EVs सहित विभिन्न खंडों में अधिक विकल्पों की आवश्यकता है।
  • कौशल अंतराल और अनुकूलन मुद्दे: भारत में मौजूदा ऑटोमोटिव कार्यबल में EV रखरखाव के लिये आवश्यक कौशल का अभाव है जिससे इसे अपनाने में और जटिलता आ सकती है।
    • 'SIAM EV कौशल अंतराल अध्ययन' रिपोर्ट के अनुसार EV घटकों के 100 प्रतिशत स्थानीयकरण को प्राप्त करने के लिये , भारत को वर्ष 2030 तक EV से संबंधित प्रतिवर्ष 30,000 श्रमिकों को शामिल करने की आवश्यकता है, जो वर्तमान दर 15,000 प्रतिवर्ष है।

अंगीकरण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने हेतु रणनीतियाँ:

  • EV वाहनों की खरीद को प्रोत्साहित करना: "बैटरी लीज-टू-ऑन" योजना जैसे कार्यक्रमों को लागू करने से उपभोक्ताओं को बैटरी को अलग से लीज पर लेने की सुविधा देकर EV की शुरुआती लागत को कम किया जा सकता है। यह दृष्टिकोण EV को आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों के साथ अधिक किफायती और प्रतिस्पर्द्धी बना सकता है।
    • EV निर्माण कंपनी एथर के सह-संस्थापक के अनुसार - उद्योग को आगे बढ़ने के लिये FAME जैसी योजना की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश करना: विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशनों के नेटवर्क का विस्तार करना और "चार्ज ऐज यू पार्क" जैसी पहलों को बढ़ावा देना। जहाँ पार्किंग स्थल मीटर चार्जिंग पॉइंट के रूप में हों जिससे EV को उपयोग करने के लिये अधिक सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
  • स्थानीय स्तर पर विनिर्माण का समर्थन करना: राष्ट्रीय परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण मिशन जैसी सरकारी पहलों के माध्यम से बैटरी के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने से लागत में कमी आने के साथ इसके आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • हाइब्रिड प्रणाली को बढ़ावा देना: सब्सिडी के मामले में EV और हाइब्रिड वाहनों को समान रूप से संदर्भित करने से एक संतुलित दृष्टिकोण मिल सकता है, क्योंकि वर्तमान में हाइब्रिड वाहन भारतीय संदर्भ में लागत एवं उत्सर्जन के मामले में एक व्यावहारिक समाधान प्रदान करते हैं।

EVs अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी पहलें

  • फेम योजना द्वितीय (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles- FAME scheme II) : यह EVs निर्माताओं और खरीदारों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है। इन प्रोत्साहनों में सब्सिडी, कर छूट, अधिमान्य वित्तपोषण (preferential financing) तथा सड़क कर एवं पंजीकरण शुल्क से छूट शामिल हैं।
  • परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Transformative Mobility and Battery Storage): यह EVs के अंगीकरण के लिये एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने और भारत में गिगा-स्केल बैटरी निर्माण संयंत्रों की स्थापना को समर्थन देने का लक्ष्य रखता है।
  • ‘वाहन स्क्रैपिंग नीति’ (Vehicle Scrappage Policy): यह पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग और नए इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • ‘गो इलेक्ट्रिक अभियान’ (Go Electric campaign): इसका उद्देश्य EVs और EVs चार्जिंग अवसंरचना के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
  • EV30@30 अभियान: भारत विश्व के उन कुछ देशों में से एक है जो वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन करता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 नए वाहनों की बिक्री में कम-से-कम 30% के इलेक्ट्रिक वाहन होने को सुनिश्चित करना है।
  • विद्युत मंत्रालय ने चार्जिंग अवसंरचना पर अपने संशोधित दिशा-निर्देशों (MoP Guidelines) में निर्धारित किया है कि 3 किमी. के ग्रिड में और राजमार्गों के दोनों किनारों पर प्रत्येक 25 किमी. पर कम-से-कम एक चार्जिंग स्टेशन मौजूद होना चाहिये।
  • आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने भी मॉडल भवन उपनियम, 2016 में संशोधन किया है जहाँ आवासीय एवं वाणिज्यिक भवनों में EVs चार्जिंग सुविधाओं के लिये पार्किंग स्पेस के 20% को अलग रखने को अनिवार्य बनाया गया है।

निष्कर्ष: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में अवसर तथा चुनौतियाँ दोनों ही हैं। इन चुनौतियों पर काबू पाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये कि इलेक्ट्रिक वाहन भारत के धारणीय परिवहन भविष्य की आधारशिला बन जाए, रणनीतिक सरकारी नीतियाँ, बुनियादी ढाँचे में निवेश तथा अभिनव वित्तपोषण मॉडल आवश्यक हैं।