दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय रेलवे प्रणाली और वर्तमान संरचना का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- रेलवे प्रणाली के समक्ष आने वाली समस्याओं का उल्लेख कीजिये।
- उन समस्याओं के समाधान के लिये आगे की राह सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक भारतीय रेलवे भारत के आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी के लिये महत्त्वपूर्ण है। घनी आबादी वाले देश में इसके महत्त्व और वंदे भारत ट्रेनों की सफल शुरुआत तथा विद्युतीकरण में प्रगति जैसी उल्लेखनीय उपलब्धियों के बावजूद, रेलवे को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
इनमें लगातार नीतिगत बदलाव, रेलवे नेटवर्क के विस्तार की अधूरी योजनाएँ और पुराना बुनियादी ढाँचा शामिल है, जिसने दुखद दुर्घटनाओं में योगदान दिया है- वर्ष 1995 से अब तक सात बड़ी दुर्घटनाएँ हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 1,600 से अधिक लोगों की मौतें हुईं है।
मुख्य भाग:
भारतीय रेलवे से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- दुर्घटनाएँ और ट्रेनों का पटरी से उतरना: अवसंरचना के कमज़ोर रखरखाव और पुरानी पड़ चुकी संपत्तियों के कारण बार-बार दुर्घटना, ट्रेन के पटरी से उतरने तथा ट्रेनों के बीच टकराव जैसी घटनाएँ सामने आती रहती हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की हालिया रिपोर्ट में सिग्नल विफलताओं और रेल फ्रैक्चर (rail fractures) की चिंताजनक प्रवृत्ति के बारे में गंभीर चिंता जताई गई है, जो दुर्घटनाओं में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
- वित्तीय निष्पादन में चुनौतियाँ: भारतीय रेलवे को अपने वित्तीय निष्पादन में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ विशेष रूप से इसके लाभदायक माल ढुलाई खंड और घाटे में चल रहे यात्री खंड के बीच तीव्र अंतराल पाया जाता है।
- CAG की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में यात्री सेवाओं में 68,269 करोड़ रुपए की भारी हानि को उजागर किया गया था, जिसकी भरपाई माल यातायात से होने वाले मुनाफे से की जानी थी।
- बेहद धीमी यात्रा: मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों की औसत गति 50-51 किमी. प्रति घंटा बनी हुई है, जो ‘मिशन रफ्तार’ के तहत किये गए वादे से कम है।
- यह धीमी गति समय को लेकर संवेदनशील यात्राओं के लिये रेल यात्रा को अनाकर्षक बना देती है, विशेषकर जब इसकी तुलना द्रुत सड़क एवं हवाई यात्रा विकल्पों से की जाती है।
- सेमी-हाई स्पीड वाले ‘वंदे भारत’ रेलगाड़ियों के प्रवेश के साथ फिलहाल पर्याप्त गति सुधार की अपेक्षा आलीशान आंतरिक साज-सज्जा को प्राथमिकता दी गई है और यह धीमी यात्रा अवधि के मूल मुद्दे को हल करने में विफल रही है।
- उभरती प्रौद्योगिकियों का धीमा एकीकरण: भारतीय रेलवे उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उनका लाभ उठाने में अपेक्षाकृत सुस्त रही है, जिससे इसकी कार्यकुशलता, सुरक्षा और ग्राहक अनुभव को समृद्ध करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न हुई है।
- उदाहरण के लिये, ट्रेनों की टक्कर को रोक सकने की संभावित क्षमता के बावजूद भारत में कवच प्रणाली की तैनाती की गति मंद रही है।
- अब तक, इसे दक्षिण मध्य रेलवे में केवल 1,465 किमी. ट्रैक और 139 इंजनों पर स्थापित किया गया है।
- अतिरिक्त 3,000 किमी. के लिये अनुबंध प्रदान कर दिए गए हैं, लेकिन तैनाती अभी भी लंबित है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल में निहित चुनौतियाँ: भारतीय रेलवे को अवसंरचना विकास, परिचालन और सेवा वितरण के लिये PPP मॉडल का प्रभावी ढंग से लाभ उठाने में संघर्ष करना पड़ा है, जिससे निजी पूंजी तथा विशेषज्ञता जुटाने में बाधा उत्पन्न हुई है।
- ‘भारत गौरव’ के माध्यम से निजी रेलगाड़ी परिचालन की शुरुआत को राजस्व-साझाकरण मॉडल, परिचालन स्वायत्तता और नियामक अनिश्चितताओं से संबंधित चिंताओं के कारण पर्याप्त निजी भागीदारी आकर्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- अप्रभावी परिसंपत्ति उपयोग और रखरखाव रणनीतियाँ: भारतीय रेलवे को रोलिंग स्टॉक, अवसंरचना और भूमि संसाधनों सहित अपनी विशाल परिसंपत्ति आधार के उपयोग को अनुकूलित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप अकुशलता एवं निम्न उपयोग की स्थिति बनी है।
भारत में रेलवे क्षेत्र में सुधार के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
- एकीकृत मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स समाधान: माल और यात्रियों के कुशल डोर-टू-डोर आवागमन के लिये रेल, सड़क एवं हवाई परिवहन मोड को सहजता से संयोजित करने वाले एकीकृत लॉजिस्टिक्स समाधानों का विकास करना।
- इंटरमॉडल कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने और लास्ट-माइल संबंधी अकुशलताओं को कम करने के लिये प्रमुख औद्योगिक संकुलों एवं शहरी केंद्रों के पास लॉजिस्टिक्स पार्क और मल्टीमॉडल हब स्थापित करना।
- नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण:
- भारतीय रेलवे को स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों (जैसे- सौर, पवन और बायोमास) की ओर ले जाने के लिये एक व्यापक नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति विकसित करना।
- ट्रैक्शन और गैर-ट्रैक्शन उद्देश्यों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु स्टेशनों की छतों, खाली भूमि खंडों और रेलवे पटरियों के किनारे बड़े पैमाने पर सौर पैनलों की स्थापना करना।
- रोलिंग स्टॉक्स और ऑक्जिलरी पावर यूनिट (APU) के लिये बैटरी-इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन फ्यूल सेल प्रौद्योगिकियों की तैनाती की संभावनाएँ तलाशना, ताकि रेलवे के कार्बन फुटप्रिंट और पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके।
- इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम (ITS):
- ‘कवच’ के माध्यम से उन्नत आईटीएस समाधानों (जैसे रियल-टाइम यातायात प्रबंधन प्रणाली, स्वचालित ट्रेन नियंत्रण प्रणाली और इंटेलिजेंट सिग्नलिंग सिस्टम) को लागू करना, ताकि नेटवर्क क्षमता को इष्टतम किया जा सके और सुरक्षा में सुधार किया जा सके।
- भारत जर्मनी के ‘ड्यूश बान’ (Deutsche Bahn) से प्रेरणा ग्रहण कर सकता है, जो अपनी समयनिष्ठता और परिचालन दक्षता के लिये प्रसिद्ध है।
- भूमि विकास से मूल्य अधिग्रहण करना:
- रेलवे स्टेशनों के निकट भूमि परिसंपत्तियों का उपयोग मॉल या कार्यालय स्थलों जैसी वाणिज्यिक विकास परियोजनाओं के लिये किया जाना, जिससे टिकट बिक्री से परे भी राजस्व के स्रोत उत्पन्न किये जा सकें।
- ‘डिजिटल ट्विन्स’ और ‘प्रीडिक्टिव एनालिटिक्स’ का लाभ उठाना:
- सिमुलेशन, परीक्षण और अनुकूलन के लिये वर्चुअल प्रतिकृतियों के निर्माण के लिये अवसंरचना, रोलिंग स्टॉक तथा परिचालन प्रणालियों सहित संपूर्ण रेलवे नेटवर्क के डिजिटल ट्विन्स (Digital Twins) का विकास करना।
- डेटा-संचालित निर्णय-निर्माण और अग्रसक्रिय जोखिम प्रबंधन को सक्षम करने के लिये डिजिटल ट्विन्स एवं प्रीडिक्टिव एनालिटिक्स को निर्णय समर्थन प्रणालियों के साथ एकीकृत किया जाना।
रेलवे सुरक्षा की वृद्धि के लिये विभिन्न समितियों की सिफारिशें:
- काकोदकर समिति (2012):
- एक संविधिक रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना करना।
- सुरक्षा परियोजनाओं के लिये 5 वर्ष की अवधि के लिये 1 लाख करोड़ रुपए के साथ एक गैर-व्यपगत राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (RRSK) का गठन करना।
- ट्रैक रखरखाव और निरीक्षण के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
- मानव संसाधन विकास और प्रबंधन को बढ़ाना।
- स्वतंत्र दुर्घटना जाँच सुनिश्चित करना।
- बिबेक देबरॉय समिति (2014):
- रेल बजट को आम बजट से अलग करना।
- गैर-प्रमुख गतिविधियों की आउटसोर्सिंग करना।
- ‘भारतीय रेलवे अवसंरचना प्राधिकरण’ की स्थापना करना।
- विनोद राय समिति (2015):
- सांविधिक शक्तियों के साथ एक स्वतंत्र ‘रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण’ की स्थापना करना।
- निष्पक्ष जाँच के लिये ‘रेलवे दुर्घटना जाँच बोर्ड’ का गठन करना।
- रेलवे परिसंपत्तियों के स्वामित्व और रखरखाव के लिये एक पृथक रेलवे अवसंरचना कंपनी की स्थापना करना।
- रेलवे कर्मचारियों के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन योजना लागू करना।
- राकेश मोहन समिति (2010):
- भारतीय GAPP (Generally Accepted Accounting Principles) के अनुरूप बनाने के लिये लेखांकन प्रणाली में सुधार करना।
- लंबी दूरी एवं अंतर-शहर परिवहन, गति उन्नयन और यात्री सेवाओं के लिये हाई-स्पीड रेल गलियारों पर ध्यान केंद्रित करना।
- उद्योग संकुलों और प्रमुख बंदरगाहों तक कनेक्टिविटी में सुधार करना।
- प्रमुख नेटवर्क केंद्रों पर लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करना।
निष्कर्ष:
भारतीय रेलवे, भारत की परिवहन प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो सुरक्षा संबंधी चिंताओं, वित्तीय अक्षमताओं और धीमी प्रौद्योगिकी अपनाने जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। हाल की दुर्घटनाएँ और वित्तीय घाटे आधुनिकीकरण तथा रणनीतिक सुधारों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं। समिति की सिफारिशें स्वतंत्र सुरक्षा निकायों, बेहतर परिसंपत्ति प्रबंधन तथा बेहतर वित्तीय निगरानी का समर्थन करती हैं। इन मुद्दों पर काबू पाने के लिये, भारतीय रेलवे को एकीकृत रसद, नवीकरणीय ऊर्जा समाधान और उन्नत प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इन रणनीतियों को लागू करने से दक्षता, सुरक्षा और सेवा की गुणवत्ता में वृद्धि हो सकती है, जिससे रेलवे की एक भरोसेमंद परिवहन नेटवर्क के रूप में भूमिका मज़बूत होगी।