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दिवस- 28: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को आगे बढ़ाने के लिये भारत द्वारा प्रयुक्त मुख्य रणनीतियों की सूची बनाइये। देश में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये PPP मॉडल के अनुप्रयोग का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

08 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी की अवधारणा का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • PPP को बढ़ावा देने में शामिल प्रमुख तंत्रों और PPP के प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
  • PPP में शामिल चुनौतियों और मुद्दों को बताइये।
  • चुनौतियों से निपटने के लिए आगे का रास्ता सुझाइये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) सरकारी एजेंसियों और निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच सहयोगात्मक व्यवस्था है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क, पार्क तथा कन्वेंशन सेंटर जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का वित्तपोषण, निर्माण एवं संचालन करना है। निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता और संसाधनों का लाभ उठाकर, PPP परियोजनाओं को पूरा करने में तेज़ी ला सकते हैं तथा उन परियोजनाओं को साकार करने में मदद कर सकते हैं जो वित्तीय या रसद बाधाओं के कारण अन्यथा अव्यवहारिक हो सकती हैं।

मुख्य बिंदु:

भारत में पीपीपी को बढ़ावा देने के प्रमुख तंत्र

  • सार्वजनिक निजी भागीदारी मूल्यांकन समिति (PPPAC):
    • केंद्रीय क्षेत्र की PPP परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिये शीर्ष निकाय है।
    • वित्त वर्ष 2015 से 2024 तक 2.4 लाख करोड़ रुपए की कुल लागत वाली 77 परियोजनाओं की सिफारिश की गई।
  • व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) योजना:
    • वित्तीय रूप से अव्यवहार्य लेकिन सामाजिक/आर्थिक रूप से वांछनीय PPP परियोजनाओं का समर्थन करता है।
    • वित्त वर्ष 2015 से 2024 तक ₹64,926.1 करोड़ की लागत वाली 57 परियोजनाओं के लिये सैद्धांतिक स्वीकृति और ₹25,263.8 करोड़ की लागत वाली 27 परियोजनाओं के लिये अंतिम स्वीकृति प्रदान की गई है।
    • वित्त वर्ष 2015 से 2024 तक कुल ₹5,813.6 करोड़ (केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों का हिस्सा) की व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण की स्वीकृति।
  • भारत अवसंरचना परियोजना विकास निधि योजना:
    • PPP परियोजनाओं के विकास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • वित्त वर्ष 2023 से 2025 के लिये ₹150 करोड़ के कुल परिव्यय के साथ नवंबर 2022 में अधिसूचित किया गया।
    • 28 प्रस्तावों को मंज़ूरी प्रदान की गई।
  • अन्य सहायक उपकरण:
    • राज्य PPP इकाइयों, परियोजना मूल्यांकन और कार्यान्वयन मोड चयन के लिये संदर्भ मार्गदर्शिकाएँ विकसित की गई।
    • वेब-आधारित टूलकिट, पोस्ट-अवॉर्ड अनुबंध प्रबंधन उपकरण और परियोजना प्रायोजकों के लिये आकस्मिक देयता दिशा-निर्देश जारी करना।

सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के मॉडल

  • बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT ): BOT मॉडल के तहत एक निजी साझेदार को निर्दिष्ट अवधि (20 या 30 वर्ष की रियायत अवधि) के लिये एक परियोजना के वित्तीयन, निर्माण और संचालन के लिये रियायत दी जाती है, जिसमें निजी साझेदार उपयोगकर्त्ता शुल्क या सुविधा का उपयोग करने वाले ग्राहकों से टोल के माध्यम से निवेश की भरपाई करता है और इस प्रकार एक निश्चित मात्रा में वित्तीय जोखिम उठाता है।
  • बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO):
    • इस मॉडल में नवनिर्मित सुविधा का स्वामित्व निजी पार्टी के पास रहेगा। पारस्परिक रूप से नियमों और शर्तों पर सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदार परियोजना द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की 'खरीद' करने पर सहमति बनाई जाती है।
  • बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOOT):
    • BOOT के इस प्रकार में समय पर बातचीत के बाद परियोजना को सरकार या निजी ऑपरेटर को स्थानांतरित कर दिया जाता है। BOOT मॉडल का उपयोग राजमार्गों और बंदरगाहों के विकास के लिये किया जाता है।
  • बिल्ड-ओन-लीज़-ट्रांसफर (BOLT):
    • इस मॉडल में सरकार निजी साझेदार को सार्वजनिक हित की सुविधाओं के निर्माण हेतु कुछ रियायतें देती है, साथ ही इसके डिज़ाइन, स्वामित्व, सार्वजनिक क्षेत्र के पट्टे का अधिकार भी देती है।
  • डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट (DBFO):
    • इस मॉडल में अनुबंधित अवधि के लिये परियोजना के डिज़ाइन, उसके विनिर्माण, वित्त और परिचालन का उत्तरदायित्व निजी साझीदार पर होता है।
  • लीज़-डेवलप-ऑपरेट (LDO):
    • इस प्रकार के निवेश मॉडल में या तो सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के पास नवनिर्मित बुनियादी ढाँचे की सुविधा का स्वामित्व बरकरार रहता है और निजी प्रमोटर के साथ लीज़ समझौते के रूप में भुगतान प्राप्त किया जाता है। इसका पालन अधिकतर एयरपोर्ट सुविधाओं के विकास में किया जाता है।

PPP से संबंधित मुद्दे:

  • मौजूदा अनुबंधों में विवाद:
    • PPP परियोजनाओं को अक्सर अनुबंध की शर्तों से संबंधित विवादों का सामना करना पड़ता है, जिससे देरी होती है और लागत बढ़ जाती है। बार-बार पुनर्वार्ता होती है, जिसमें फर्म कम राजस्व या बढ़ी हुई लागत का हवाला देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक संसाधनों का दोहन होता है। दिल्ली-गुड़गाँव एक्सप्रेस-वे परियोजना भारत में इन मुद्दों को दर्शाती है।
  • पूंजी की अनुपलब्धता:
    • कई PPP परियोजनाओं को पर्याप्त धन प्राप्त करने में कठिनाई होती है, जिसके कारण वृद्धि रुक ​​जाती है तथा परियोजनाएँ अधूरी रह जाती हैं। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अक्सर अपने बुनियादी ढाँचे के ऋण पोर्टफोलियो में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का उच्च हिस्सा होता हैं, जिससे वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है।
  • विनियामक बाधाएँ:
    • PPP परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण में अक्सर महत्त्वपूर्ण विनियामक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे परियोजना में देरी होती है और लागत बढ़ जाती है।
    • भारत सरकार का PPP को प्रभावी ढंग से विनियमित करने का खराब रिकॉर्ड है, जिससे अकुशलता और परियोजना में विफलताएँ देखने को मिलती हैं।
  • राजनीतिक और क्रोनी पूंजीवाद:
    • मेट्रो परियोजनाएँ और अन्य बड़े पैमाने की PPP परियोजनाएँ अक्सर क्रोनी कैपिटलिज्म का केंद्र बन जाती हैं, जहाँ निजी कंपनियाँ ज़मीन तथा संसाधन एकत्रित करने के लिये अपने संबंधों का इस्तेमाल करती हैं।
    • कई PPP परियोजनाएँ "राजनीतिक रूप से जुड़ी हुई फर्मों" द्वारा चलाई जाती हैं जो अनुबंध हासिल करने के लिये राजनीतिक संबंधों का लाभ उठाती हैं, जिससे निष्पक्षता और पारदर्शिता पर चिंताएँ पैदा होती हैं।
  • वैश्विक स्तर पर मिश्रित प्रदर्शन:
    • शोध अध्ययनों से पता चलता है कि दुनिया भर में PPP का प्रदर्शन मिश्रित रहा है, जिसमें सफलता और विफलता की डिग्री अलग-अलग रही है। आलोचकों का तर्क है कि PPP केवल एक "भाषा का खेल" है जिसका उपयोग सरकारें प्रत्यक्ष निजीकरण से बचने के लिये करती हैं, खासकर तब जब निजीकरण या सेवाओं को अनुबंध पर देने के खिलाफ राजनीतिक प्रतिरोध मौजूद हो।
  • नैतिक जोखिम और अवसरवादी व्यवहार:
    • PPP फर्मों के अवसरवादी व्यवहार से नैतिक जोखिम उत्पन्न होते हैं, क्योंकि यह अक्सर अपने लाभ को अधिकतम करने के लिये अनुबंधों से लाभ उठाने की कोशिश में रहते हैं।
    • इससे PPP के वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाधा आती है, जिससे लोगों का विश्वास कम हो जाता है।

विजय केलकर समिति की प्रमुख सिफारिशें:

  • PPP अनुबंधों पर पुनर्विचार:
    • राजकोषीय लाभों की तुलना में सेवा वितरण को प्राथमिकता देना, जोखिम आवंटन में सुधार करना तथा व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण का कुशलतापूर्वक उपयोग करना।
  • भारत में बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक निजी भागीदारी की त्वरित आवश्यकता:
    • जनसांख्यिकीय और बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों के लिये PPP मॉडल को बेहतर बनाना तथा बेहतर दक्षता के लिये कार्यान्वयन चुनौतियों का समाधान करना।
  • जोखिम साझाकरण को पुनः संतुलित करना:
    • परिष्कृत मॉडलिंग, पूर्ण पारदर्शिता और सूचित पुनर्वार्ता के साथ प्रभावी जोखिम प्रबंधन सुनिश्चित करना।
  • विरासत संबंधी मुद्दों का समाधान:
    • जटिल मुद्दों के लिये विश्वसनीय तंत्र स्थापित करना साथ ही रुकी हुई परियोजनाओं को रद्द करने पर विचार करना।
  • शासन और नीति को मज़बूत करना:
    • क्षेत्र-विशिष्ट रूपरेखाएँ विकसित करना, राष्ट्रीय PPP नीति को अंतिम रूप प्रदान करना और बड़ी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • संस्थागत क्षमता का निर्माण:
    • स्पष्ट निर्णय लेने के लिये कानूनों में संशोधन, हितधारक क्षमता का निर्माण करना तथा स्वतंत्र PPP विनियामकों की स्थापना करना।
  • वित्त का विस्तार करना:
    • बैंक जोखिम मूल्यांकन में सुधार करना, परियोजना मुद्रीकरण को बढ़ावा देना और बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण हेतु ज़ीरों कूपन बॉण्ड को प्रोत्साहित करना।
  • अनुबंध प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित करना:
    • विवादों को हल करने और क्षेत्र-विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मॉडल रियायत समझौतों को अपडेट करना।
  • विशिष्ट क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना:
    • प्रमुख क्षेत्रों में सफल PPP मॉडल का निर्माण करना और विनियामक स्पष्टता के साथ शहरी क्षेत्र के PPP को प्रोत्साहित करना।
  • PPP को आगे बढ़ाना:
    • PPP मार्गदर्शन के लिये एक उत्कृष्टता संस्थान की स्थापना करना और मध्यम आय के जाल से बचने के लिये एकीकृत विकास सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष:

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) में बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ाने की महत्त्वपूर्ण क्षमता है, खासकर बड़े पैमाने की परियोजनाओं में जैसे कि पारगमन प्रणाली जो गतिशीलता में सुधार करती है तथा भूमि उपयोग को प्रभावित करती है। नीति आयोग द्वारा "75 में नए भारत के लिये रणनीति" का उद्देश्य निवेश दरों को बढ़ाना है, जो सार्वजनिक और निजी दोनों निवेशों को बढ़ावा देने वाले उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। विजय केलकर समिति की सिफारिशों के अनुसार PPP तंत्र पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित तथा एक मज़बूत ढाँचा में सरकारी भागीदारी को कम कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय विकास में निजी क्षेत्र के योगदान को बढ़ावा मिल सकता है।